रूस-यूक्रेन के वॉर जोन में दिखता है भारत के लिए प्यार, TV9 संवाददाता की आंखों-देखी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 8-9 जुलाई को रूस के दौरे पर होंगे. मास्को में प्रधानमंत्री मोदी की मुलाकात रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से होनी है. दोनों नेताओं की बैठक में भारत और रूस के संबंधों की समीक्षा होगी और कई नये समझौते होंगे. रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद भले ही मोदी और पुतिन की आमने-सामने वाली यह दूसरी मुलाकात हो, लेकिन दोनों ही नेता फोन और वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये लगातार संपर्क में रहे हैं और रूस-यूक्रेन युद्ध पर ही चर्चा होती रही है.
राष्ट्रपति पुतिन से होने वाली मुलाकात से कुछ दिनों पहले ही प्रधानमंत्री मोदी ने यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लादिमीर जेलेंस्की से जी-7 सम्मेलन के दौरान इटली में भेंट की थी. प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपति जेलेंस्की से भी बातचीत के जरिये समाधान निकालने की सलाह दी थी. इतिहास से लेकर अब तक भारत के निष्पक्ष और संतुलित नीति का ही परिणाम है कि रूस और यूक्रेन के युद्धक्षेत्र में जहां दोनों देशों के सैनिक एक-दूसरे के खून के प्यासे हैं, वो भी भारत को लेकर बेहद आत्मीय भाव रखते हैं.
खारकीव फ्रंटलाइन पर सैनिक देख रहे थे हिंदी फिल्में
रूस-यूक्रेन युद्ध क्षेत्र की ग्राउंड रिपोर्टिंग के दौरान जब टीवी9 संवाददाता मनीष झा खारकीव के फ्रंटलाइन पर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि वहां गड्डे और बंकर में मौजूद रूसी सैनिक एक हिंदी फिल्म देख रहे थे. उनसे परिचय होने के बाद काफी देर तक भारत के बारे में, बॉलीवुड सिनेमा और भारतीय खाने को लेकर चर्चा होती रही. यह पहला वाकया नहीं था जब सैनिकों के बीच भारत को लेकर ऐसा उत्साह देखने को मिला. रूस-यूक्रेन युद्ध में भयानक लड़ाई के लिए चर्चित रहे इलाके- अवदीविका, बाखमुत और मारियोपोल में भी अक्सर ऐसा अनुभव मिला.
कई बार तो सैनिकों से जैसे ही मेरी मुलाकात होती तो सैनिक डिस्को डांसर फिल्म के गाने ‘जिमी जिमी आ जा आ जा’ गाते हुए मेरा स्वागत करते. फिर शुरू होताहै भारत से जुड़े तमाम किस्सों को लेकर गप्पें. दर्जनों सैनिक अपने भारत दौरे के अनुभव बताते हैं. कई युवा सैनिक जो युद्ध में तैनात थे उन्होंने कहा कि युद्ध खत्म होते ही वो सबसे पहले भारत घूमने जाएंगे. गोवा से लेकर हिमाचल प्रदेश, दिल्ली और आगरा से लेकर बनारस एवं जयपुर तक, रूस-यूक्रेन के फ्रंटलाइन पर दोनों ही तरफ के सैनिकों में भारत को लेकर एक अजीब किस्म का रोमांच है.
अगर मैं भारतीय पत्रकार ना होता तो शायद जीवित नहीं होता
रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग का तीसरा साल चल रहा है. इस दौरान युद्ध का मुख्य केंद्र रहे डोनबास समेत दूसरे इलाकों में टीवी9 संवाददाता मनीष झा को लगभग एक साल तक गुजारने का मौका मिला. तबाही और बमबारी के बीच युद्ध के अलग-अलग मौर्चे से ग्राउंड रिपोर्टिंग करना बहुत ही चुनौतीपूर्ण था. माइनस बाईस डिग्री तापमान में हथियारों के भंडार में रात गुजारने के समय शरीर में एक अजीब गर्मी महसूस होता था. दुश्मन सेना की तरफ से लगातार चल रही गोलीबारी और हर पल ड्रोन के हमले का डर मन में समाया रहता था. सब कुछ भगवान की मर्जी पर छोड़ रखा था. सुरक्षा के हिसाब से अति संवेदनशील इलाकों में आते जाते हमेशा एक बात का डर था कि ना जाने कब कौन सा सेना का अफसर या इंटेलिजेंस का अधिकारी टीवी9 टीम की मौजूदगी पर ऐतराज जताया.
युद्ध के दौरान ऐसा होने का खतरा हमेशा बना रहता है. जब भी कोई संकट आया तो यह जानते ही हम लोग भारत से हैं उनका रवैया तुरंत बदल जाता था. भारत के प्रति सम्मान के अलावे सबसे बड़ी बात थी भारत और भारतीयों को लेकर भरोसा. दोनों ही तरफ की सेना के अधिकारी और जवान इस बात से निश्चिंत थे कि भारतीय पत्रकार होने के नाते न केवल हम निष्पक्ष रहेंगे बल्कि सुरक्षा से जुड़ी बातों को दूसरी तरफ कभी उजागर नहीं करेंगे. डोनेत्स्क में एक रूसी सेना के अधिकारी की जबान से निकली बात किसी ईश्वरीय संदेश से कम नहीं था कि महादेव और गणेश जी उनके सैनिकों की रक्षा करते हैं और मेरी भी रक्षा करेगें