रेटिंग एजेंसी एसएंडपी ने भारत की रेटिंग में नहीं किया बदलाव, इस वजह से लिया ये फैसला

एक तरफ जहां भारत तेजी से ग्रोथ दर्ज करते हुए तरक्की की नई कहानी लिख रहा है, वहीं दूसरी तरफ इस रेटिंग एजेंसी ने भारत को लेकर एक बैड न्यूज दे दी है. रेटिंग एजेंसी एसएंडपी ने कहा है कि वह भारत की साख बढ़ाने का फैसला लेने से पहले नई सरकार की नीतियों के अलावा अगले एक-दो साल तक राजकोषीय आंकड़ों पर भी नजर रखना जरूरी है. उसके बाद ही रेटिंग में कोई बदलाव करना संभव होगा. एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स ने इसी सप्ताह भारत के आर्थिक परिदृश्य को ‘स्टेबल’ कैटगरी से बदलकर ‘पॉजिटिव’ कर दिया था, लेकिन उसने भारत की सॉवरेन रेटिंग को ‘बीबीबी-‘ पर बरकरार रखा है जो कि सबसे निचली निवेश-योग्य रेटिंग है. भारत इसमें बदलाव करने की उम्मीद कर रहा है.
नई सरकार से एजेंसी को है ये उम्मीद
इसके साथ ही रेटिंग एजेंसी को उम्मीद है कि देश में बनने वाली कोई भी नई सरकार ग्रोथ को लेकर बनाई गई नीतियों, बुनियादी ढांचे में निवेश और राजकोषीय सशक्तीकरण को लेकर प्रतिबद्धता को जारी रखेगी. एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स के विश्लेषक यीफर्न फुआ ने एक वेबिनार में कहा कि अगले दो वर्षों में हम बारीकी से देखेंगे कि सरकार राजकोषीय मजबूती की तय राह पर बनी रहती है या नहीं. हम अगले एक-दो वर्षों तक यह देखेंगे कि राजकोषीय आंकड़े किस तरह के आते हैं और ऐसा होता है तो इससे रेटिंग में सुधार होगा.
ये है लक्ष्य
राजकोषीय मजबूती की योजना के तहत सरकारी खर्च और रेवेन्यू के बीच का अंतर यानी राजकोषीय घाटे को मार्च, 2026 तक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 4.5 प्रतिशत पर लाने का लक्ष्य रखा गया है. राजकोषीय घाटे के मार्च, 2025 के अंत में 5.1 प्रतिशत रहने का अनुमान है. फुआ ने कहा कि एक बार जब उच्च बुनियादी ढांचे के निवेश का प्रभाव महसूस किया जाता है और अड़चनें दूर हो जाती हैं, तो भारत की दीर्घकालिक वृद्धि क्षमता आठ प्रतिशत तक रह सकती है. उन्होंने कहा कि 1991 में आर्थिक उदारीकरण के बाद से अलग-अलग दलों और गठबंधनों के शासन के बावजूद भारत में लगातार उच्च जीडीपी वृद्धि दर रही है.

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