लंबे वक्त तक खांसी की चपेट में रहें तो हो जाएं सावधान.. काली खांसी का हो सकता है असर

मार्च-अप्रैल के महीने में मौसम बदलने के साथ ही लोगों को सर्दी-खांसी-बुखार जैसी बीमारियों का सामना करना पड़ता है. इस बार काली खांसी ने भी लोगों को काफी परेशान कर रखा है. काली खांसी यानि व्हूपिंग कफ या पर्टुसिस वो बीमारी है जिसका असर सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि चीन, अमेरिका, ब्रिटेन, फिलीपींस, नीदरलैंड, आयरलैंड जैसी जगहों पर भी हो रहा है. सार्वजनिक स्वास्थ्य एजेंसी यानि पीएचए ने बताया कि उत्तरी आयरलैंड में काली खांसी के मामलों में काफी बढ़ोतरी हुई है.
इस साल की शुरुआत से अब तक उत्तरी आयरलैंड में ऐसे करीब 769 मामलों की पुष्टि हुई, जिसके बाद पीएचए की तरफ से गर्भवती महिलाओं और छोटे बच्चों के माता-पिता से पर्टुसिस वैक्सीन लगवाने का निवेदन किया गया. पीएचए ने बताया कि कोविड और लॉकडाउन के वक्त लोग दूरी बरतते थे और मास्क का उपयोग करते थे जिससे काली खांसी का प्रकोप कम होने लगा था, लेकिन धीरे-धीरे लोग फिर से सफाई और मास्क जैसी चीज़ों से थोड़े दूर होने लगे तो ये बीमारी फिर अपना जाल फैलाने लगी.
काली खांसी बहुत खतरनाक होती है और कई बार ये जानलेवा भी साबित होती है. इसकी चपेट में बच्चे जल्दी आ जाते हैं. इसके शुरुआती लक्षण खांसी, बुखार या नाक बहना हो सकते हैं. अगर कुछ दिनों बाद भी तबीयत में सुधार ना हो, उल्टी जैसा महसूस हो, सांस लेने में दिक्कत होने लगे तो डॉक्टर की सलाह ले लेना उचित रहता है. भूख ना लगना और वजन कम होना भी काली खांसी के लक्षण हो सकते हैं.
किस तरह का इन्फेक्शन
काली खांसी एक तरह का बैक्टीरियल इन्फेक्शन होती है जिसमें नाक और गला खासतौर पर प्रभावित होता है. ये बैक्टीरिया हवा के जरिए फैलते हैं और जब कोई संक्रमित व्यक्ति खांसता या छींकता है तो उसके आस-पास के लोगों के संक्रमित होने का खतरा हो जाता है. ये चूंकि संक्रमण से होने वाली बीमारी है तो इसमें अतिरिक्त सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है.
क्या है इलाज
डॉक्टर इसके लिए एंटी-एलर्जिक या एंटीबायोटिक दवाई देते हैं. इससे बचने का सबसे बेहतर तरीका वैक्सीनेशन है. छोटे बच्चों के लिए डीटीएपी मतलब डिप्थीरिया, टेटनस और पर्टुसिस और वयस्कों के लिए टीडीएपी यानि टेटनस, डिप्थीरिया और पर्टुसिस जैसे टीके इस बीमारी को रोकने में मददगार साबित हो सकते हैं.

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