विदेशों दवाओं के भारत में क्लिनिकल ट्रायल की नहीं होगी जरूरत, सरकार ने जारी किया आदेश

केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक नया आदेश जारी किया है. इसके मुताबिक दुनियां के 5 देशों औऱ यूरोपीय यूनियन के किसी भी देश में यदि किसी दवा का क्लिनिकल ट्रॉयल होता है और उस दवा को वहां के रेगुलेट्री अथॉरिटी की मंजूरी मिलती है तो उस दवा को भारतीय बाजार में सीधे प्रयोग में लाया जा सकता है. इसके लिए न्यू ड्रग एंड क्लिनिकल ट्रॉयल रूल 2019 के रूल 101 में बदलाव किया गया है. केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का मानना है कि देसी कम्पनियों के सरकार के इस फैसले का बेसब्री से इंतजार था. साथ ही इससे गंभीर बीमारियों की दवा भी आसानी से उपलब्ध हो पाएगी.
स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों का दावा है कि सरकार के इस फैसले से दवाओं के रेगुलेट्री प्रोसेस में जो रिसोर्स खर्च होता था उसमें बचत होगी, जिसका उपयोग किसी और काम में किया जा सकता है. दावा यह भी किया जा रहा है कि भारतीय दवा उद्योग वॉल्यूम से वैल्यू की ओर बढ रहा है ऐसे में सरकार का यह कदम मील का पत्थर साबित होगा. सरकार ने इस बात का भी दावा किया है कि जो कोई भी दवा विदेश से भारत आएगी वह दवा भारतीय भौगोलिक परिस्थितियों के अनूकूल होगी. इसके साथ ही जो भी नई बेहतर दवा बन रही है उस दवा को तत्काल प्रभाव से भारत में मंजूरी मिल जाएगी
किन देशों की दवाओं को इजाजत
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों की मानें तो यूके, यूएस, आस्ट्रेलिया, जापान, कनाडा और ईयू के देशों से आने वाली दवाओं को देसी क्लिनिकल ट्रायल से नहीं गुजरना होगा. वहां के देश में कोई भी दवा यदि क्लिनिकल ट्रॉयल से गुजर चुकी है तो उसे भारत में फिर ट्रॉयल से नहीं गुजरना होगा. स्वास्थ्य मंत्रालय का दावा है कि ऐसा करने से दवाओं के उपयोग और रिसोर्स में काफी सुगमता आएगी.
इन बीमारियों में होगा फायदा
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का दावा है कि केन्द्र सरकार के इस फैसले से
दुर्लभ बीमारियों के लिए औषधियाँ(Orphan Drugs for rare diseases)
जीन और सेलुलर थेरेपी उत्पाद (Gene and cellular therapy products)
महामारी की स्थिति में उपयोग की जाने वाली नई दवाएं (New drugs used in pandemic situation)
विशेष रक्षा उद्देश्यों के लिए उपयोग की जाने वाली नई दवाएं फायदा होगा.
(New drugs having significant therapeutic advance over the current standard care)
रिसर्च में होगी सुविधा
केद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों की मानें तो सरकार के इस फैसले से भारत में दवाओं पर हो रहे रिसर्च में काफी मदद मिलेगी. दावा इस बात का किया जा रहा है कि कई दवाओंं के लिए भारतीय कम्पनियों को विदेशी दवाओं का इंतजार करना पड़ता था. खासकर गंभीर बीमारियों की दवाओं की बात करें जिनमें कैंसर और रेयर डिजीज शामिल है. यदि इस तरह की दवा भारत में आसानी से उपलब्ध होगी तो रिसर्च में आसानी होगी और इसका देसी वर्जन जल्द से जल्द बनाया जा सकेगा.
सस्ती होगी दवा
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों की मानें तो सरकार के इस फैसले से दवाओँ की सुगमता से उपलब्धता भी होगी. मसलन कई ऐसी दवा है खासकर गंभीर बीमारियों के जिसके लिए स्पेशल परमीशन लेनी पड़ती है विदेश से भारत लाने के लिए. ऐसी दवाओं की भारत में आसानी से उपलब्धता हो पाएगी. इसके साथ ही विदेश की कम्पनियों के साथ भारत का यदि करार होता है तो दवाओं का भारतीय कम्पनियों के साथ विदेशी कम्पनी का करार होगा और उसका उत्पादन भी भारत में ही होगा जिससे कि यह दवाएं काफी सस्ती हो जाएगी.
कम समय में आएगी दवा
आज से पहले किसी भी पेटेंट दवा को जब भारत में लाया जाता था तब यहां उस दवा का क्लिनिक ट्रॉयल होता था. इस प्रोसेस से दवा को गुजरने में लगभग पांच से बीस वर्षों का समय लग जाता था. अब लम्बे इंतजार करने की आवश्यकता नहीं है. अब दुनियां के 6 देशों में यदि कोई नई दवा को मंजूरी मिलती है तो वह सीधे भारतीय बाजार में भी उपलब्ध हो पाएगी.
एक्सपर्ट्स का कहना है कि सरकार के इस फैसले से भारत में मौजूद घरेलू और विदेशी दवा कंपनियों को काफी फायदा हो सकता है. अब भारत में ट्रायल के बिना ही दवाओं को मंजूरी मिल जाएगी. इससे ट्रायल में लगने वाले समय की बचत होगी और जरूरी दवाएं मरीज को सही समय पर मिल पाएगी.

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