विवाद, राजनीति और ओवैसी की एंट्री… शिमला की संजौली मस्जिद की पूरी कहानी
मौसम का तापमान 15 डिग्री होने के बावजूद हिमाचल की राजधानी शिमला का सियासी पारा चढ़ा हुआ है. वजह है शिमला की संजौली चौराहे स्थित एक मस्जिद. साल 2010 से विवादों में घिरी इस मस्जिद को अब गिराने की मांग की जा रही है. यह मांग कोई और नहीं बल्कि सरकार में बैठे लोग ही कर रहे हैं. मामले ने इसलिए भी तूल पकड़ लिया है क्योंकि कांग्रेस पार्टी हिमाचल की सरकार में है, जो धर्मनिरपेक्षता और सबके धार्मिक अधिकार की रक्षा की बात कहती है.
हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने मस्जिद के विवाद में आने के लिए राहुल गांधी पर निशाना साधा है. ओवैसी का कहना है कि कांग्रेस हिंदुत्व का चोला ओढ़कर मोहब्बत की दुकान चला रही है.
इस स्टोरी में संजौली मस्जिद और उसके पूरे राजनीतिक विवाद को विस्तार से समझते हैं…
पहले संजौली मस्जिद के बारे में
हिमाचल की राजधानी शिमला में एक जगह है- संजौली. यह इलाका हिमाचल विधानसभा की दो सीटों (शिमला सदर और कुसुमटी) से घिरा हुआ है. संजौली चौराहे पर ही एक मस्जिद है. पहले यह मस्जिद एक मंजिला थी लेकिन अब 5 मंजिला है.
मस्जिद के निर्माण को लेकर 2 बातें कही जा रही हैं. मुस्लिम संगठनों का कहना है कि यह मस्जिद 1950 से पहले की है. वहीं हिंदू संगठनों का कहना है कि इसका निर्माण 1996 के आसपास हुआ है.
मुस्लिम संगठनों ने कहा है कि मस्जिद वक्फ की जमीन पर बनी है. जबकि सरकार के मंत्री अनिरुद्ध सिंह का कहना है कि मस्जिद का निर्माण जिस जमीन पर किया गया है वो हिमाचल सरकार की है.
संजौली मस्जिद का मामला कोर्ट में है
2010 में संजौली मस्जिद का मामला कोर्ट में गया. स्थानीय पत्रकार शांतनु शुक्ला के मुताबिक अवैध निर्माण का मामला है. अब तक केस में 46 सुनवाई हो चुकी हैं. वक्फ और मस्जिद से जुड़े स्थानीय लोग इस मामले में प्रतिवादी हैं.
सरकार के मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने विधानसभा में बताया कि इस मामले में कई नोटिस दिए गए हैं लेकिन मस्जिद की तरफ से सही तरीके से जवाब नहीं दिया जा रहा है. मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा है कि 15 दिन में इस मामले का निदान नहीं हुआ तो एक्शन लिया जाएगा.
सूत्रों के मुताबिक, पूरा विवाद मस्जिद के कंस्ट्रक्शन को लेकर है. स्थानीय प्रशासन का कहना है कि बिना परमिशन लिए 5 मंजिला इमारत खड़ी की गई है. सरकार के मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा है कि मामला धार्मिक नहीं है. यह वैध और अवैध का मामला है.
मस्जिद विवादों में क्यों और कैसे आ गया?
विवाद की कहानी दो गुटों की लड़ाई से शुरू हुई. 4 दिन पहले 4 मुस्लिम युवकों ने संजौली बाजार के एक स्थानीय दुकानदार यशपाल को पीट दिया. कहा जा रहा है कि पिटाई की वजह से उसके सिर में 14 टांके लगे. शुरुआत में पुलिस पिटाई करने वाले युवकों पर कोई सख्त कार्रवाई नहीं की, जिससे स्थानीय लोग गुस्से में आ गए.
3 दिन पहले स्थानीय लोगों ने इसको लेकर प्रदर्शन किया. लोगों की मांग थी कि पिटाई करने वाले युवकों पर हत्या की कोशिश में केस दर्ज किया जाए. पुलिस जब तक लोगों को आश्वासन देती, तब तक मामले में सियासी तड़का लग गया और पूरे विवाद के केंद्र में मस्जिद आ गई.
मस्जिद विवाद में राजनीतिक तड़का कैसे लगा?
3 दिन पहले जब हिंदू संगठनों की तरफ से संजौली में प्रदर्शन किया जा रहा था, तब उस प्रदर्शन में कांग्रेस के भी कुछ पार्षद थे. इसे देखकर शिमला सदर के विधायक हरीश जनार्था भड़क गए. जनार्था का कहना था कि विरोध करने वाले कुसुमटी के लोग हैं और जानबूझकर उनके क्षेत्र को अशांत किया जा रहा है. कहा जाता है कि जनार्था ने विरोध करने के लिए अपने पार्षदों को फटकार भी लगाई.
जब कांग्रेस के ही कुसुमटी से विधायक और सरकार में मंत्री अनिरुद्ध सिंह को इसके बारे में जानकारी मिली तो अनिरुद्ध पूरे विवाद को विधानसभा ले गए. अनिरुद्ध ने सरकार से इस पर कार्रवाई की मांग भी की है. पूरे विवाद में राजनीतिक तड़का लगने की 3 वजहें बताई जा रही है.
1. अनिरुद्ध सिंह मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के मित्र हैं, जबकि हरीश जनार्था प्रदेश अध्यक्ष प्रतिभा सिंह गुट के माने जाते हैं. जनार्था की बगल की सीट से प्रतिभा के बेटे विक्रमादित्य विधायक हैं. विक्रमादित्य लगातार खुद की छवि हिंदुत्व नेता के रूप में बना रहे हैं. अयोध्या में राम मंदिर पर उन्होंने कांग्रेस पार्टी के स्टैंड से इतर जाकर बयान दिया था. कहा जा रहा है कि इंटरनल पॉलिटिक्स में एक-दूसरे को पछाड़ने के लिए अनिरुद्ध ने इस मुद्दे को हथियार बना लिया है.
2. हिमाचल प्रदेश में हिंदुओं की आबादी 95 प्रतिशत है, जबकि यहां पर मुसलमान करीब 2.1 प्रतिशत हैं. हिंदू बाहुल्य होने की वजह से इसे देवभूमि भी कहा जाता है. राजधानी शिमला में 2.93 प्रतिशत मुसलमान हैं. मुसलमानों की सबसे ज्यादा आबादी शिमला सदर में ही है. यहां पर लंबे वक्त से अप्रवासी मुस्लिमों का मुद्दा उठता रहा है.
3. कहा जा रहा है कि बीजेपी भी इस मुद्दे पर एक्टिव हो रही थी और इससे सरकार की मुश्किलें बढ़ जातीं. इसलिए सरकार के मंत्री ही इस मुद्दे पर फ्रंटफुट पर आ गए. मंत्री के फ्रंटफुट पर आने से बीजेपी इस मामले से बाहर हो चुकी है. हालांकि, बीजेपी को लोग इस मस्जिद का विरोध जरूर कर रहे हैं.
स्थानीयता का मुद्दा भी यहां पर भारी
मस्जिद विवाद में स्थानीयता का मुद्दा भी भारी है. हिमाचल प्रदेश में लंबे वक्त से यह मुद्दा हावी है. वहां के स्थानीय लोगों का कहना है कि बाहर से लोग आकर हमारी जमीनों पर कब्जा जमा रहे हैं. विपक्ष में रहते कांग्रेस और बीजेपी इस मुद्दे को कई बार उठा चुकी है.
स्थानीय लोगों का कहना है कि हिमाचल में प्रवासियों की वजह से बेरोजगारी बढ़ी है. हिमाचल प्रदेश आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के आंकड़ों के अनुसार दिसंबर 2023 तक हिमाचल में पंजीकृत बेरोजगारों की संख्या करीब 7.5 लाख थी.