संगठन बड़ा या सरकार…जब इस लड़ाई में चली गई बीजेपी के 2 मुख्यमंत्रियों की कुर्सी

भारतीय जनता पार्टी में संगठन बड़ा या सरकार? उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के बयान पर सियासी गलियारों में चर्चाओं का दौर जारी है. पार्टी के भीतर और बाहर लोग केशव प्रसाद मौर्य का इस बयान का अलग-अलग मायने निकाल रहे हैं. हालांकि, यह पहली बार नहीं है, जब बीजेपी के भीतर से इस तरह की बातें उठी हो. बीजेपी गठन के बाद से अब तक सरकार और संगठन के झगड़े में 2 मुख्यमंत्रियों की कुर्सी तक जा चुकी है.
इनमें पहला नाम यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह तो दूसरा नाम मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर का है. दोनों की कुर्सी जाने की कहानी को विस्तार से पढ़ते हैं…
पहले कहानी यूपी के ही कल्याण सिंह की
1997 में बीजेपी की सहयोग से मुख्यमंत्री बनीं मायावती ने जब रोटेशन के आधार पर इस्तीफा देने से इनकार कर दिया, तब कल्याण सिंह मुखर हो उठे. बीजेपी ने पहले बीएसपी से समर्थन वापस लिया और फिर निर्दलीय और बीएसपी के बागी विधायकों के सहारे सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया. राज्यपाल ने कल्याण सिंह का दावा स्वीकार भी कर लिया और इस तरह कल्याण सिंह 21 सितंबर 1997 को दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बन गए.
उस वक्त कहा गया कि कल्याण सिंह के इस कदम से बीजेपी हाईकमान खासकर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई खफा थे. पीएम मायावती को ही मुख्यमंत्री रहने देने के पक्ष में थे. हालांकि, समय बीतता गया और 1999 का लोकसभा चुनाव आ गया. चुनाव प्रचार के दौरान कल्याण सिंह ने एक बयान दे दिया, जिसने बीजेपी के भीतर की लड़ाई को बीच मैदान में ला दिया. कल्याण ने कहा कि अटल बिहारी को प्रधानमंत्री बनने के लिए पहले सांसद बनना पड़ेगा.
वाजपेई उस वक्त यूपी की राजधानी लखनऊ से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे थे. खुद तो वाजपेई इस चुनाव में जीत गए, लेकिन यूपी में बीजेपी की करारी हार हो गई. हार के बाद कई नेताओं ने कल्याण सिंह के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. पार्टी नेताओं ने सिंह पर संगठन की अनदेखी और सरकार में अपने महिला मित्र कुसुम राय (जिन्हें कल्याण सिंह ने माता सीता का दर्जा दिया था) को तरजीह देने का आरोप लगाया.
कल्याण कैबिनेट में शामिल मंत्री देवेंद्र नाथ भोले ने सरकार के रवैए से नाराज होकर मंत्रिपद से इस्तीफा दे दिया.
शुरू में कल्याण सिंह अपने समर्थक विधायकों के दम पर इन मुद्दों को नजरअंदाज करते रहे, लेकिन अंत में बीजेपी हाईकमान ने उन्हें हटाने का फैसला कर लिया. कल्याण सिंह की जगह पर पार्टी ने राम प्रकाश गुप्ता को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया. कल्याण पार्टी के इस फैसले के विरोध में खड़े हो गए, जिसके बाद दिल्ली से पार्टी ने प्रमोद महाजन को लखनऊ भेजा.
प्रमोद महाजन के जाने के बाद कल्याण सिंह इस्तीफा देने को मान गए. इस्तीफा देते हुए उन्होंने पार्टी पर ब्राह्मणवादी होने का आरोप लगाया. बाद के दिनों में अनुशासनहीनता के आरोप में कल्याण सिंह को पार्टी से भी बाहर कर दिया गया.
बाबूलाल गौर को भी देना पड़ा इस्तीफा
यह कहानी नवंबर 2005 की है. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे बाबूलाल गौर. उन्हें उमा भारती का करीबी माना जाता था. अगस्त 2004 में उमा की जगह पर ही उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली थी, लेकिन पार्टी के भीतर उनको लेकर सबकुछ ठीक नहीं था.
पार्टी संगठन का कहना था कि बाबूलाल गौर किसी की सुनते नहीं हैं और आने वाले चुनाव में इसका नुकसान हो सकता है. मध्य प्रदेश के सियासी गलियारों में उस वक्त बाबूलाल गौर को बुलडोजर मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली थी.
गौर बुलडोजर के सहारे अतिक्रमण हटाने का आदेश देते थे. उनका यह फैसला खूब लोकप्रिय भी हो रहा था, लेकिन उनके काम की स्टाइल ने संगठन की टेंशन बढ़ा दी थी. इसी बीच मध्य प्रदेश की सक्रिय राजनीति में उमा भारती की एंट्री हो गई.
सियासी गलियारों में खबरें उड़ने लगी कि भारती ने गौर को सीएम कुर्सी छोड़ने के लिए कहा है. इसी बीच गौर ने भारती के खासमखास सुनील नायक को कैबिनेट से हटा दिया. इसके बाद मध्य प्रदेश में बीजेपी की संगठन और सरकार का विवाद तुल पकड़ लिया.
हाईकमान ने बीच बचाव की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली. आखिर में बीजेपी हाईकमान की तरफ से अरुण जेटली पर्यवेक्षक बनाकर भोपाल भेजे गए. जेटली ने जो सुलह का फॉर्मूला निकाला, उसके मुताबिक गौर को पहले कुर्सी से हटाया गया और फिर उनकी जगह शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाया गया.

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