सत्ता की आस या तंज…. अखिलेश यादव के मानसून ऑफर के पीछे की क्या है असल सियासत?
उत्तर प्रदेश की राजनीति में इन दिनों बीजेपी में शह और मात का खेल चल रहा है. लोकसभा चुनाव नतीजे आने के बाद से बीजेपी में बैठकों का दौर जारी है. सीएम योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के बीच अंतर्विरोध की चर्चा तेज है. सरकार से बड़ा संगठन बताने वाले केशव प्रसाद मौर्य दिल्ली में आलाकमान से मुलाकात कर लखनऊ लौटकर शांत हैं. यूपी बीजेपी में मचे घमासान के बीच सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने बिना नाम लिए केशव प्रसाद मौर्य को पर तंज कसते हुए कहा कि मानसून ऑफर है, 100 लाओ और सरकार बनाओ.
अखिलेश यादव ने पहली बार केशव प्रसाद मौर्य को निशाने पर नहीं लिया बल्कि 2017 के बाद से ही उन्हें अपने निशाने पर लेते रहे हैं. बीजेपी कार्यसमिति के दूसरे दिन केशव प्रसाद मौर्य ने दिल्ली में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात किया था. पीएम मोदी और अमित शाह के मुलाकात किए बिना ही केशव लखनऊ लौट गए थे. उसी दिन देर रात अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया X पर लिखा, ‘लौट के बुद्धू घर को आए.’ इसके बाद गुरुवार को उन्होंने फिर से अपने अंदाज में मानसून ऑफर दे दिया.
सियासी समीकरण दुरुस्त करने की स्ट्रैटेजी
सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्या है कि अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को टारगेट पर लेने के बजाय उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य पर निशाना साधते हैं. इसके पीछे अखिलेश की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है. केशव प्रसाद के बहाने अखिलेश यह सियासी संदेश देना चाहते हैं कि बीजेपी के अंदर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. लोकसभा चुनाव के नतीजे इस बार जिस तरह से सपा के पक्ष में आए हैं, उसके बाद से उनके हौसले बुलंद है और अब बीजेपी में मचे घमासान पर तंज कस कर उसे सियासी हवा दे रहे हैं. इसी बहाने अपने सियासी समीकरण को भी दुरुस्त करने की स्ट्रैटेजी है.
यूपी में जातियों के इर्द-गिर्ट सिमटी है सियासत
उत्तर प्रदेश की सियासत सभी जातियों के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. केशव प्रसाद मौर्य ओबीसी समुदाय से आते हैं और जब उन्हें पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष बनाया, तब से पिछड़े वर्ग का एक बड़ा हिस्सा बीजेपी के साथ गया. 2017, 2019 और फिर 2022 विधानसभा चुनाव के परिणाम ये बताते हैं. 2017 में उम्मीद थी कि केशव मौर्य को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. केशव को डिप्टी सीएम पद से ही संतोष करना पड़ा. ऐसे में पूरे पांच साल केशव और योगी के बीच अनबन की खूब खबरें सामने आती रही.
ओबीसी वोटरों को अपनी तरफ खींचने का कवायद
2022 के चुनाव में केशव प्रसाद मौर्य खुद चुनाव हार गए तो बीजेपी ने उन्हें डिप्टी सीएम बना दिया, इस बार विभाग उतना मजबूत नहीं मिला. अखिलेश ये बात अच्छे से जानते हैं कि केशव प्रसाद मौर्य को आगे करके ही बीजेपी ने 2017 में उनसे सत्ता छीनी थी. बीजेपी ने गैर-यादव ओबीसी वोटों को अपने साथ जोड़ने में सफल रही है. ऐसे में केशव प्रसाद मौर्य पर तंज करके अखिलेश यादव ओबीसी वोटरों को अपनी तरफ खींचने का कवायद कर रहे हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में ओबीसी का वोट बड़ी संख्या में सपा को मिला है, जिसमें खासकर केशव प्रसाद मौर्य का सजातीय वोट मौर्य-कुशवाहा-शाक्य-सैनी शामिल है. इसके अलावा कुर्मी वोटर भी बड़ी संख्या में सपा के पक्ष में खड़ा नजर आ रहा.
मौर्य, कुशवाहा और पिछड़े वर्ग को देना चाहते हैं संदेश
अखिलेश यादव बार-बार केशव प्रसाद मौर्य को टारगेट करके मौर्य, कुशवाहा व अन्य पिछड़े वर्ग को ये संदेश देना चाहते हैं कि उनके नेता के साथ बीजेपी गलत कर रही है. बीजेपी केशव प्रसाद मौर्य की कोई अहमियत नहीं है और सरकार में भी उनके साथ भेदभाव हो रहा है. केशव मौर्य पर हमला करके अखिलेश दो तरह से फायदा बटोरने की कोशिश कर रहे हैं. पहला ये कि इससे पिछड़े वर्ग के लोगों में बीजेपी के प्रति दूरियां बढ़ेगी. दूसरा यह कि योगी सरकार भी अस्थिर हो सकती है. इसका नकारात्मक असर भी आने वाले समय में यूपी बीजेपी पर पड़ सकता है. ऐसे में जब बीजेपी को नुकसान होगा तो अखिलेश यादव पूरी तरह फायदा उठा सकते हैं.