सत्य-अहिंसा पर PHD, 23 अपराध का हलफनामा… कौन हैं बिहार के डॉक्टर डॉन सुनील पांडेय?

नाम नरेंद्र पांडेय उर्फ सुनील पांडेय, उम्र करीब 58 साल, कद करीब पांच फुट नौ इंच, घर नावाडीह रोहतास, पहचान बाहुबली राजनेता… बीजेपी में शामिल होने के बाद बिहार की राजनीति में चर्चा का केंद्र बने सुनील पांडेय किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. एक या दो बार नहीं बल्कि तीन बार तरारी सीट से विधायक रहे सुनील की पहचान बिहार के बाहुबली नेताओं में होती है. एक बार समता पार्टी से तो दो बार जदयू से विधायक रह चुके हैं. सुनील पांडेय पीरो (अब तरारी) सीट से तीन बार विधायक रहे हैं.
बिहार की राजनीति में 90 का दौर हमेशा यादगार रहा है. यह वह दौर था जब राज्य में लालू प्रसाद के मुख्यमंत्री के रूप में शासनकाल शुरू हुआ था. इसी दशक में रोहतास जिले के नावाडीह गांव के कमलेशी पांडेय नाम के निवासी थे. इंजीनियरिंग की स्टडी करने वाले कमलेशी पांडेय भूमिहार जाति से ताल्लुक रखते थे. चूंकि रोहतास जिले में बालू निकालने के लिए ठेके लगते थे तो कमलेशी भी छोटे-मोटे ठेके लिया करते थे. उनकी छवि आसपास के इलाकों में एक दबंग की थी इसलिए उनके काम में कोई खास रुकावट भी नहीं होती थी. इसी कमलेशी पांडेय के बेटे हैं नरेंद्र पांडेय जिन्हें आज बिहार की राजनीति में सुनील पांडेय के नाम से भी जाना जाता है.
बेंगलुरु की घटना से बदल गया ट्रैक
जैसे हर एक पिता की चाहत होती है कि उसका बेटा पढ़ लिखकर समाज में बढ़िया मुकाम हासिल करें. इसी उद्देश्य से कमलेशी पांडेय ने नरेंद्र पांडेय का एडमिशन बेंगलुरु में करावा दिया. उनकी सोच यही थी कि उनका बेटा पढ़ लिख कर कुछ बन जाए, लेकिन इसी बेंगलुरु शहर में किस्मत ने ऐसा खेल खेला कि सुनील पांडेय का पूरा लाइफ ट्रैक ही बदल गया. जानकार बताते हैं कि बेंगलुरु में रहने के दौरान ही सुनील पांडेय की एक लड़के से झगड़ा हो गया था. इस लड़ाई में सुनील पांडेय ने उस लड़के को चाकू मार दिया. इसके बाद वह वापस रोहतास स्थित नावाडीह अपने घर आ गए.
जब सिल्लु मियां का मिला साथ
क्राइम की खबरों पर पैनी नजर रखने वाले जानकार पत्रकार बताते हैं कि वह ऐसा दौर था, जब रोहतास और आसपास के इलाकों में आरा के रहने वाले सिल्लू मियां की तूती बोलती थी. सिल्लू मियां की एक पहचान सिवान के मरहूम बाहुबली सांसद शहाबुद्दीन के करीबियों में होती थी. कुछ ऐसे हालात बने कि सुनील पांडेय की पहचान सिल्लू मियां से हुई और वो जल्द ही सिल्लू मियां के राइट हैंड बन गए. ऐसा कहा जाता है कि सिल्लू मियां की पाठशाला से ही सुनील पांडेय ने अपराध की दुनिया की पहली क्लास ली थी.
आगे बढ़ने की थी चाह
जैसा अक्सर होता है, सुनील पांडेय के मन में भी लगातार आगे बढ़ाने की चाह थी. इसी चाह के कारण सिल्लू मियां और सुनील पांडेय की दोस्ती में धीरे धीरे दरार आनी शुरू हो गई. इसी बीच एक दिन सिल्लू मियां का मर्डर हो गया. इसमें नाम सुनील पांडेय का आया, लेकिन किसी भी प्रकार का सबूत न होने के कारण कोई केस दर्ज नहीं हुआ. इस घटना के बाद से सुनील पांडेय की आरा और उसके आसपास के इलाकों में तूती बोलने लगी साथ ही आरा उसके आसपास के इलाकों में बालू के ठेके पर सुनील पांडेय का एकछत्र राज कायम हो गया.
दो बार जदयू से एमएलए
सुनील पांडेय चार बार विधायक रह चुके हैं. दो बार वह जदयू से और एक बार समता पार्टी से विधायक रह चुके हैं. सबसे खास बात यह कि सुनील पांडेय भगवान महावीर पर पीएचडी कर चुके हैं और अपने नाम के आगे डॉक्टर भी लगते हैं. पहली बार पीरो निर्वाचन क्षेत्र से सन 2000 में चुनाव जीत कर बिहार विधानसभा पहुंचे. इसके बाद उन्होंने अपनी जीत का लय बरकरार रखा. 2005 में फरवरी में हुए विधानसभा चुनाव में उन्होंने 35 हजार से भी ज्यादा मतों से जीत दर्ज की, लेकिन किसी भी दल को बहुमत नहीं मिलने के कारण राष्ट्रपति शासन लगा. इसके कुछ ही दिनों के बाद बिहार विधानसभा को भंग कर दिया गया.
इसी साल अक्टूबर महीने में फिर चुनाव हुए. इस चुनाव में एनडीए ने सत्ता में अपनी वापसी की. यही साल था जब सुनील पांडेय जदयू में चले गए और फिर जीत दर्ज करने में सफल रहे. 2015 में सुनील पांडेय ने फिर पार्टी बदली और रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी में शामिल हो गए. इस पार्टी में उन्हें प्रवक्ता बनाया गया.
जब ब्रह्मेश्वर जब मुखिया जी से हुई तनातनी
बिहार की राजनीति में 90 के दशक का जब भी जिक्र होता है तो उसमें रणवीर सेवा का नाम जरूर आता है. दरअसल यह वह दौर था जब बिहार ने एक के बाद एक कई नरसंहार को देखा था. यह दौर जातीय नरसंहार का था. इसी दौर में रणवीर सेना का नाम आया. इस सेना की खासियत यह थी कि इसमें ज्यादातर भूमिहार जाति के सदस्य होते थे. इस सेना के प्रमुख मुखिया जी यानी ब्रह्मेश्वर मुखिया थे. बताया जाता है कि इसी दौर में सुनील पांडेय भी रणवीर सेना के साथ जुड़ गए. 1993 में एक घटना घटी, जब यह खबर फैली कि इक ईंट भट्टे की मालिक की हत्या हो गई.
यह वही घटना थी जब सुनील पांडेय और ब्रह्मेश्वर मुखिया आमने सामने आ गए. जानकार बताते हैं कि जनवरी 1997 में तरारी प्रखंड के बागर गांव में एक साथ तीन लोगों को मार दिया गया था. इसका इल्जाम मुखिया जी पर लगा था. इन मरने वालों में एक महिला भी थी. सभी मृतक भूमिहार जाति से थे. बताया जाता है कि मृतक महिला सुनील पांडेय की करीबी रिश्तेदार थी. इसके बाद सुनील पांडेय और ब्रह्मेश्वर मुखिया के बीच जो तनातनी शुरू हुई वह लगातार जारी रही. एक जून 2012 को जब मुखिया जी की हत्या हुई, तब तक सुनील पांडेय और मुखिया जी में तनातनी कायम रही.
तब दिया था 23 अपराध का हलफनामा
2010 के विधानसभा चुनाव में ताल ठोकने से पहले जब सुनील पांडेय ने अपना चुनावी हलफनामा दिया था तो वह चर्चा का विषय बन गया था. चुनावी हलफनामे में उन्होंने 23 आपराधिक मुकदमों का हवाला दिया था. इनमें हत्या की कोशिश, लूट, अपहरण, डकैती और रंगदारी जैसे मामले थे. खास बात यह कि तब सीएम नीतीश कुमार ने सुनील पांडेय को टिकट दिया था, हालांकि तब सीएम नीतीश कुमार के इस फैसले पर सबको हैरानी भी हुई थी.
जब आरा कोर्ट में हुआ था ब्लास्ट
2015 की 30 जनवरी को आरा में तब सनसनी फैल गई थी, जब आरा के सिविल कोर्ट में एक ब्लास्ट हुआ। इस ब्लास्ट में दो लोगों की जान चली गयी थी. ब्लास्ट के बाद सिविल कोर्ट से लंबू सिंह और अखिलेश उपाध्याय नाम के दो कैदियों के फरार होने की भी खबर सामने आई. इस मामले की जब जांच हुई, तब यह सामने आया कि लंबू सिंह ने हीं इस घटना को अंजाम दिया था. हालांकि 2015 के जून माह में लंबू सिंह दिल्ली पुलिस के शिकंजे में आ गया. जब पुलिस ने उससे पूछताछ की तो उसने बताया कि जेल से फरार होने में उसकी मदद सुनील पांडेय ने की थी. इसके बाद सुनील पांडेय को एसपी ने अपने अपने ऑफिस बुलाया और गिरफ्तार कर लिया.
डॉक्टर अपहरण कांड में नाम
मार्च 2003 में बिहार में एक खबर आग की तरह फैली, जब यह घटना सामने आई कि पटना के रहने वाले और देश के जाने-माने न्यूरो सर्जन में शुमार डॉक्टर रमेश चंद्र का अपहरण हो गया. तब यह भी जानकारी सामने आई थी कि अपहरण कर्ताओं ने फिरौती के रूप में 50 लाख रुपए मांगे थे. हालांकि बिहार पुलिस ने हाई प्रोफाइल मामले को देखते हुए तेजी दिखाई और राजधानी के ही नौबतपुर इलाके से डॉक्टर रमेश चंद्र को खोज निकाला. इस केस में जब तफ्तीश हुई तो सुनील पांडेय का नाम सामने आया. तब सूबे में राजद की सरकार थी और सुनील पांडेय समता पार्टी से विधायक थे. इस मामले में 2008 में सुनील पांडेय के साथ तीन अन्य लोगों को उम्र कैद की सजा भी हुई लेकिन जब यह मामला हाई कोर्ट पहुंचा तो उन्हें बरी कर दिया गया.
मुखिया जी की हत्या में नाम!
जून 2012 का वह दिन बिहार की राजनीति में खबरों की लिहाज से खलबली मचाने वाला था. जब यह खबर आई कि रणवीर सेवा के प्रमुख ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या हो गई. इस घटना से पूरा प्रशासनिक तंत्र हिल गया था. अति संवेदनशील मामले को देखते हुए तेज तर्रार पुलिस अफसरों की टीम ने जांच शुरू की. सब तब भौंचक हो गए जब पुलिसिया जांच में सुनील पांडेय का नाम सामने आया. हालांकि पुलिस ने भी तत्परता दिखाते हुए सुनील पांडेय के ड्राइवर को अरेस्ट कर लिया. इसी मामले में सुनील पांडेय के भाई और तत्कालीन विधान परिषद के निर्दलीय सदस्य हुलास पांडे को भी हिरासत में लिया गया था, लेकिन बाद में रिहा कर दिया गया.
राजद उठा रही सवाल
सुनील पांडे के बीजेपी में शामिल होने पर प्रमुख विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल ने सीधा निशाना साधा है. पार्टी के प्रवक्ता एजाज अहमद ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि शुचिता की राजनीति को बढ़ावा दे रहे हैं और शुचिता की राजनीति में जिन लोगों का योगदान है, वह लोग धड़ाधड़ उनकी पार्टी में शामिल हो रहे हैं. आज सुनील पांडेय को भाजपा ने अपने साथ मिलाया है. अब वैसे लोग जो शुचिता की राजनीति के परिचायक बीजेपी और एनडीए के लिए रहे हैं, वह सारे लोग इनके पार्टी में शामिल हो रहे हैं.
‘बीजेपी ज्वाइन करते ही सब मंगल राज वाले’
आरजेडी का कहना है कि बीजेपी की ओर से ऐसे लोगों को शामिल कर करके समाज में किस तरह का माहौल खड़ा करना चाहती हैं? कैसा माहौल बनाना चाहते हैं और किस तरीके से सुचिता के राजनीतिक करना चाहते हैं? यह स्पष्ट करें. साथ यह भी बताएं कि जो कल तक दूसरे दलों में होते थे तो जंगल राज के परिचायक होते थे, लेकिन जैसे ही बीजेपी एनडीए के खेमे में शामिल होते हैं यह लोग जंगल राज वाले नहीं बल्कि मंगल राज वाले हो जाते हैं. इस तरह की राजनीति और ऐसी राजनीतिक का विचार बीजेपी के माध्यम से समाज में दिया जा रहा है. जिस तरीके से समाज में बीजेपी एक अदद सीट के लिए शुचिता की राजनीति को तिलांजलि दे करके वैसे लोगों को शामिल कर रही है, जिसके संबंध में बीजेपी के नेता किन-किन शब्दों से इन्हें अलंकृत करते रहे हैं.

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