सपा की सोशल इंजीनियरिंग तोड़ने में जुटीं मायावती, क्या अखिलेश यादव का होगा खेल खराब?

आरक्षण और संविधान बचाने के नाम पर बीजेपी और कांग्रेस में लड़ाई जारी है. पहला राउंड लोकसभा चुनाव रहा, दूसरे राउंड के मुकाबले में अब दोनों एक साइड में हैं. दोनों पार्टियां अब एक ही नाव पर सवार हैं, साथ ही बीजेपी और कांग्रेस दुविधा में हैं. दोनों ही पार्टियों के दलित नेताओं में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर एक राय नहीं है. लोकसभा सांसदों की संख्या के हिसाब से देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी समाजवादी पार्टी भी संकट में है. अखिलेश यादव अब तक तय नहीं कर पाए हैं कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर क्या स्टैंड लेना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने एससी और एसटी आरक्षण में कोटे के अंदर कोटा बनाने की छूट राज्य सरकारों को दे दी है. साथ ही अदालत ने OBC की तरह दलित कोटे में भी क्रीमी लेयर की व्यवस्था बनाने का सुझाव दिया है. बीएसपी चीफ मायावती ने इसके खिलाफ आर-पार की लड़ाई की घोषणा कर दी है. उन्होंने संसद में इसके खिलाफ कुछ समय पहले संविधान संशोधन बिल लाने की मांग की थी, लेकिन संसद का सत्र खत्म हो गया पर ऐसा नहीं हो सका. लगातार कई चुनाव हार चुकी मायावती अब इसी बहाने अपने वोटरों को गोलबंद करने की कोशिश में हैं.
दलित आरक्षण पर बीजेपी, कांग्रेस की चुप्पी
बसपा सुप्रीमो मायावती के दबाव की राजनीति का असर दिखने लगा है. बीजेपी के दलित आदिवासी सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की. सभी ने इनसे आरक्षण को वर्तमान व्यवस्था में किसी तरह के बदलाव न करने की मांग की है. बाद में केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि दलित और आदिवासी के रिजर्वेशन में क्रीमी लेयर की व्यवस्था नहीं होगी. इस फैसले का ऐलान करने के तुरंत बाद मायावती ने कहा कि कोटे में कोटा वाले आरक्षण के फार्मूले पर बीजेपी अपना रुख सार्वजनिक करें. इसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने भी क्रीमी लेयर बनाने के अदालत के सुझाव का विरोध कर दिया. पर बीजेपी और कांग्रेस अब भी दलितों के आरक्षण में सब कैटेगरी बनाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चुप्पी साध ली है.
बसपा का वोट बैंक सपा की तरफ हो गया शिफ्ट
हाल में हुए लोकसभा चुनाव में यूपी में बीएसपी को जबरदस्त नुकसान हुआ. पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई यहां तक कि बीएसपी का वोट शेयर भी सिंगल डिजिट में आ गया. बीएसपी का एक बड़ा वोट बैंक समाजवादी पार्टी की तरफ शिफ्ट कर गया. मायावती की बिरादरी के जाटव वोटरों ने भी इस बार अखिलेश यादव का समर्थन कर दिया. यूपी की राजनीति में ये किसी चमत्कार से कम नहीं है. इसीलिए अखिलेश यादव ने अब PDA की राजनीति करने की कसम खाई है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बहाने मायावती अब अखिलेश के सोशल इंजीनियरिंग को तोड़ने में जुटी हैं.
यूपी की 80 में से 17 लोकसभा सीटें एससी और एसटी के लिए रिजर्व हैं. इस बार के चुनाव में बीजेपी ने इनमें से 8 सीटें जीत ली. सपा के खाते में 9 जबकि कांग्रेस के हिस्से 1 सीट आई. चंद्रशेखर रावण भी इस बार नगीना सुरक्षित सीट से सांसद चुने गए. अखिलेश यादव ने तो इस चुनाव में जनरल कैटेगरी के दो लोकसभा सीटों मेरठ और फैजाबाद से दलित नेताओं को टिकट दिया और उनका ये दांव हिट रहा. समाजवादी पार्टी के अवधेश प्रसाद फैजाबाद से एमपी बने. अब इसी सामाजिक फार्मूले के दम पर अखिलेश यादव अगला विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में यूपी की 17 में से 15 सीटें बीजेपी के खाते में गई. बीएसपी दो सीट जीतने में सफल रही.
मायावती इस बार 10 सीटों पर लड़ेंगी चुनाव
यूपी में विधानसभा की दस सीटों पर उपचुनाव है. इनमें से 5 सीटें समाजवादी पार्टी के पास थीं और तीन सीटें बीजेपी के पास थी. जबकि एक-एक सीट आरएलडी और निषाद पार्टी के खाते में थी. मायावती आमतौर पर उपचुनावों से दूर रहती हैं, लेकिन इस बार उन्होंने सभी दस सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है. आज यानी 11 अगस्त को लखनऊ में उन्होंने यूपी के बीएसपी नेताओं की बैठक बुलाई है. मायावती इस चुनाव के बहाने अपना दम दिखाने की तैयारी में हैं. इसके लिए उन्होंने दलितों के आरक्षण सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सबसे बड़ा हथियार बनाया है. यूपी में करीब 22 फीसदी दलित वोटर हैं और इनमें 13.4 फिसदी जाटव, 3.3 फीसदी पासी और 3.1 फीसदी वाल्मीकि वोटर हैं.
मायावती खुद जाटव बिरादरी से हैं इसीलिए वे रिजर्वेशन में सब कैटेगरी बनाने का विरोध कर रही हैं. क्योंकि ऐसा होने से जाटव को नुकसान हो सकता है. अखिलेश यादव दुविधा में हैं क्योंकि पासी समाज के लोगों ने उन्हें वोट किया पर उनकी नजर जाटव वोट पर भी है. मायावती ने बीएसपी के दो उम्मीदवार भी तय कर दिए हैं. कटेहरी से जेल में बंद पूर्व विधायक राकेश पांडे के बेटे प्रतीक पांडेय चुनाव लड़ेंगे. जबकि फूलपुर से शिव वरण पासी को टिकट दिया गया है.

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