समर्थक बोले-बांग्लादेश में इस्कॉन के चिन्मय कृष्ण दास की जान को खतरा, अंतर्राष्ट्रीय संगठन हमारी मदद करें

बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के प्रमुख नेता और इस्कॉन के वरिष्ठ सदस्य चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ़्तारी ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और धार्मिक स्वतंत्रता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. सोमवार को हुई इस गिरफ्तारी के बाद देशभर में हिंदू समुदाय के बीच डर और आक्रोश का माहौल है. चिन्मय कृष्ण दास, जो बांग्लादेश में हिंदुओं के अधिकारों की रक्षा के लिए हमेशा से मुखर रहे हैं, अब उन पर सरकार के खिलाफ बोलने और अल्पसंख्यक अधिकारों की वकालत करने का आरोप लगाया गया है.
उनके करीबियों और समर्थकों का कहना है कि उन्हें गिरफ़्तार कर जेल में डालना सरकार द्वारा सुनियोजित साजिश है. चिंताजनक बात यह है कि उनके जीवन को गंभीर खतरा बताया जा रहा है. चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी के विरोध में राजधानी ढाका के शाहबाग़ में हिंदू समुदाय द्वारा आयोजित शांतिपूर्ण प्रदर्शन को कट्टरपंथी समूहों और सत्तारूढ़ दल से जुड़े युवाओं ने हिंसक बना दिया. प्रदर्शनकारियों पर हुए हमलों में दर्जनों लोग घायल हो गए. चश्मदीदों के अनुसार, पुलिस और सुरक्षा बल मूकदर्शक बने रहे, जबकि हिंसक भीड़ ने निहत्थे प्रदर्शनकारियों को पीटा और भगाया. चटगांव, कॉक्स बाज़ार और मौलवी बाज़ार में भी ऐसे ही विरोध प्रदर्शन आयोजित किए गए, लेकिन वहां भी प्रदर्शनकारियों को हिंसा और दमन का सामना करना पड़ा.
जान का खतरा और अंतर्राराष्ट्रीय चिंता
चिन्मय कृष्ण दास के समर्थकों ने दावा किया है कि जेल में उनकी जान को खतरा है. सरकार के आलोचकों का कहना है कि यह गिरफ्तारी अल्पसंख्यकों की आवाज़ दबाने और उन्हें डराने का हिस्सा है. मानवाधिकार संगठनों ने भी चिंता जताई है कि चिन्मय कृष्ण दास पर शारीरिक और मानसिक यातना का खतरा मंडरा रहा है.
शाहबाग़ में विरोध प्रदर्शन के दौरान केवल प्रदर्शनकारियों को ही निशाना नहीं बनाया गया, बल्कि हिंसा के शिकार देश के महत्वपूर्ण संस्थान भी हुए. सुहरावर्दी कॉलेज में परीक्षा के दौरान हिंसक भीड़ ने कॉलेज की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया, जिससे परीक्षाएं स्थगित करनी पड़ीं. इसके अलावा, एक अस्पताल परिसर में बने करुणा और सेवा के प्रतीक मूर्ति को तोड़कर प्रदर्शनकारियों ने सांप्रदायिक नफरत का प्रदर्शन किया.
अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर सवाल
बांग्लादेश में हिंदू समुदाय की घटती आबादी और बढ़ते दमन के बीच यह घटना एक नई चिंता का कारण बनी है. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह घटनाएं बांग्लादेश को एक असहिष्णु और अल्पसंख्यक-विरोधी राज्य बनने की ओर धकेल रही हैं.
अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप की मांग
चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ़्तारी और हिंदू समुदाय पर हो रहे अत्याचारों के बाद अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से तुरंत हस्तक्षेप की मांग उठ रही है. मानवाधिकार संगठनों ने संयुक्त राष्ट्र और अन्य वैश्विक निकायों से अपील की है कि वे बांग्लादेश सरकार को धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए बाध्य करें.
चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी और उसके बाद हुए दमन ने यह स्पष्ट कर दिया है कि बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए हालात बेहद गंभीर हो चुके हैं. यदि इस स्थिति पर जल्द ध्यान नहीं दिया गया तो यह हिंसा और दमन देश को गहरे संकट में डाल सकता है. चिन्मय कृष्ण दास की सुरक्षा सुनिश्चित करना और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करना अब बांग्लादेश और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय दोनों के लिए एक बड़ी जिम्मेदारी है.

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