सिज़ोफ्रेनिया की बीमारी एक से दूसरी पीढ़ी में भी जा सकती है, ऐसे दिखते हैं लक्षण

सिज़ोफ्रेनिया एक मानसिक बीमारी है, जिसकी जानकारी कम लोगों को होती है. इस बीमारी के मरीजों को भी इसका तब पता चलता है जब बीमारी काफी बढ़ जाती है. डॉक्टर बताते हैं कि सिज़ोफ्रेनिया एक मानसिक समस्या है. इसमें दिमाग के कुछ हिस्सों में केमिकल्स का संतुलन बिगड़ जाता है. इसके कारण विचारों, काम करने की क्षमता और भावनाओं पर कंट्रोल सही तरीके से नहीं हो पाता है. जिनकी फैमिली हिस्ट्री इस बीमारी की रहती है उनमें सिज़ोफ्रेनिया का खतरा रहता है.
यह ऐसी बीमारी है जो मरीज के अलावा उसके पूरे परिवार को प्रभावित करती है. इसके बारे में एक गलत धारणा यह है कि इस बीमारी के मरीज को लोग पागलपन का शिकार मानते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है. अन्य मानसिक समस्याओं की तरह ही सिज़ोफ्रेनिया भी है. हालांकि इस डिजीज में एक चिंता की बात यह है कि ये जेनेटिक कारणों से हो सकती है.
सिज़ोफ्रेनिया अगर मां बाप को है तो बच्चे में जाने की 10 से 12 फीसदी तक आशंका रहती है. सिज़ोफ्रेनिया मरीजों के साथ ही उनके परिवारों और समाज को गहराई से प्रभावित करता है. मरीज की जिस तरह की हालत होती है उसके चलते अक्सर उन्हें सामाजिक अलगाव का शिकार होने पड़ता है. माता-पिता से अगर ये बीमारी बच्चे में जाती है तो कम उम्र में ही उसमें इसके लक्षण दिखने लग जाते हैं.
मानसिक तनाव बढ़ाता है खतरा
गुरुग्राम में न्यूरोसर्जन डॉ. हिमांशु चंपानेरी ने बताया कि न्यूरोट्रांसमीटर में असंतुलन के कारण ये बीमारी हो सकती हैं. अगर किसी व्यक्ति को उसके जीवन में बड़ा दुख-दर्द पहुंचा है या पुराना मानसिक तनाव हुआ है तो इससे सिज़ोफ्रेनिया के लक्षण और भी बढ़ सकते हैं. सिज़ोफ्रेनिया के साथ बढ़ता मानसिक तनाव इस बीमारी के मरीज की परेशानी बढ़ा देता है. ऐसे में कोशिश होनी चाहिए कि मरीज को किसी भी तरह का मानसिक तनाव न हो. इसके लिए परिवार को उसके साथ सही तरीके से व्यवहार करना चाहिए.
क्या ठीक हो जाते हैं मरीज
डॉ बताते हैं कि जिन मरीजों को ये बीमारी जेनेटिक कारणों से होती है उनमें इसकी समस्या गंभीर होती है. वहीं जिन लोगों को बाहरी कारणों या ब्रेन के फंक्शन में गड़बड़ी से ऐसा होता है उनको दवाइयों के माध्यम से बीमारी को कंट्रोल किया जा सकता है. जेनेटिक वाले मरीजों को ठीक होने में समय लग सकता है, लेकिन ऐसा नहीं है कि सिजोफ्रेनिया को कंट्रोल नहीं किया जा सकता है. बस जरूरी है कि लोग इस बीमारी को लेकर जागरूक रहें और लक्षण दिखने पर इलाज कराएं
कैसे दिखते हैं लक्षण
अकेले रहना
कम बोलना
दिमाग में रहता है कि कोई हमेशा देख रहा है
जो नहीं होता वैसा दिखना
अपनी ही दुनिया में रहना

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