सीटों की संख्या से समीकरण तक… 5 साल में कैसे बदल जाएगा भारत का सियासी नक्शा?
भारत में आम जनगणना की सुगबुगाहट तेज हो गई है. जनवरी 2025 के बाद कभी भी केंद्र इसे कराने की घोषणा कर सकती है. दिसंबर 2024 तक सभी राज्यों को अपने सीमाएं ठीक करने की मोहलत दी गई है. आम जनगणना 2020 में ही होनी था, लेकिन कोरोना और राजनीतिक वजहों से यह लगातार टलती रही.
अब जब आम जनगणना की सुगबुगाहट शुरू हुई है तो सियासी गलियारों में एक साथ कई सवाल खड़े हो गए हैं. मसलन, जनगणना कब तक की जाएगी, इससे देश की सियासत पर क्या असर होगा, क्या आम जनगणना के साथ जातियों की भी गिनती होगी?
इस स्टोरी में ऐसे ही सियासी सवालों के जवाब को विस्तार से जानिए…
क्या जनगणना में जाति की भी गिनती होगी?
जनगणना को लेकर बड़ा सवाल यही है कि क्या इस बार आम जनगणना के साथ सरकार जाति की भी गिनती कराएगी. अब तक जो संवैधानिक प्रावधान है, उसके मुताबिक केंद्र सिर्फ नाम, जेंडर आदि की ही जानकारी लोगों से लेती है. जाति की गिनती कराने का फैसला अगर सरकार लेती है तो उसे जनगणना के नियमों में संशोधन करना पड़ेगा.
भारत में जाति जनगणना की मांग लगातार विपक्षी पार्टियों की तरफ से की जा रही है. केंद्र की सत्ताधारी बीजेपी इसको लेकर चुप है. केंद्र का कहना है कि यह काम आसान नहीं है. केंद्र कई बार इसे सिरे से खारिज भी कर चुका है.
ऐसे में जाति की गिनती होगी या नहीं, यह तभी पता चलेगा, जब जनगणना की आधिकारिक घोषणा की जाएगी.
जनगणना से कैसे बदलेगी भारत की सियासत?
वैसे तो सरकार जनगणना अपने स्कीम को दुरुस्त करने के लिए कराती है, लेकिन इस बार के जनगणना से भारत की सियासत पर भी असर पड़ेगा. जनगणना से भारत की सियासत में 4 बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं.
1. जनगणना से ही खुलेगा परिसीमन का रास्ता- परिसीमन का मतलब होता है, देश या राज्य में विधायी निकाय वाले निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा तय करने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया. इस प्रक्रिया के जरिए यह तय किया जाता है कि विधायी निकाय में कितनी संख्या होनी चाहिए, जिससे जनता को सहूलियत मिल सके.
परिसीमन के लिए जनगणना की रिपोर्ट जरूरी है. यानी बिना जनगणना की रिपोर्ट के परिसीमन नहीं किया जा सकता है. वर्तमान में 2026 तक परिसीमन पर रोक है. ऐसे में कहा जा रहा है कि जनगणना होने से परिसीमन के लिए भी रास्ता खुलेगा.
ऐसा होता है लोकसभा और विधानसभा की सीटों की संख्या में बदलाव हो सकता है.
2. परिसीमन से सीटों की संख्या बदल सकती है- भारत में लोकसभा और विधानसभा सीटों का परिसीमन 2008 में आखिरी बार किया गया था. यह परिसीमन सिर्फ समीकरण बदलने के लिए किया गया था. सीटों की संख्या तय करने वाला परिसीमन 1976 में हुआ था. उस वक्त 1970 जनगणना के आंकड़ों को आधार बनाया गया था. 1970 के मुकाबले अब काफी कुछ बदल गया है.
1970 में भारत की आबादी करीब 50 करोड़ थी और इसी हिसाब से लोकसभा का आंकड़ा सेट किया गया था. उस वक्त करीब 10 लाख आबादी पर लोकसभा की एक सीट का फॉर्मूला तय किया गया था. वर्तमान में भारत की अनुमानित आबादी 150 करोड़ के आसपास है.
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी समेत कई दिग्गज नए सिरे से सीटों की संख्या तय करने की मांग कर चुके हैं. प्रणब ने कहा था कि लोकसभा में करीब 1000 सीटें होनी चाहिए. नई लोकसभा में 888 सांसदों के बैठने की व्यवस्था है.
इसी तरह कई राज्यों में भी विधानसभा की संख्या बढ़ाने की मांग हो रही है. परिसीमन में इस पर भी विचार किया जा सकता है.
3. देश में लागू होगा महिला आरक्षण का बिल- जनगणना और परिसीमन की वजह से ही महिला आरक्षण बिल अभी तक अमल में नहीं आ पाया है. 16वीं लोकसभा के दौरान केंद्र ने एक विधेयक पास किया था, जिसमें लोकसभा और विधानसभा की सीटों में 33 प्रतिशत आरक्षण देने की व्यवस्था की गई थी.
जनगणना और परिसीमन के बाद यह फॉर्मूला लागू हो जाएगा. इसे लागू होने से देश की सियासत की दिशा और दशा बदल जाएगी. लोकसभा और विधानसभा की करीब एक तिहाई सीट महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएगी. वर्तमान में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है.
इसके कारण विधानसभा से लेकर लोकसभा तक महिलाओं की भागीदारी ज्यादा दिखेगी.
4. आबादी से हिस्सेदारी की मांग तेज होगी- जनगणना के बाद आबादी के हिस्सेदारी की मांग तेज हो सकती है. अब तक के जो अनुमान हैं, उसके मुताबिक दक्षिण के मुकाबले उत्तर के राज्यों की आबादी ज्यादा है. अगर जनगणना का डेटा भी इसी के अनुरूप आता है तो दक्षिण के राज्य अपनी हिस्सेदारी की मांग बढ़ा सकती है.
दक्षिण के राज्यों का लंबे वक्त से कहना है कि उनके लोग टैक्स ज्यादा देते हैं लेकिन दिल्ली से उन्हें रिटर्न कम मिलता है. इस पर कई बार सियासत भी हो चुकी है. राज्यों के अलावा जातिगत आधार पर भी हिस्सेदारी की मांग उठ सकती है.
जनगणना और परिसीमन कब तक हो सकता है?
लोकसभा चुनाव 2029 से पहले दोनों के होने की संभावनाएं है. 2025 में अगर जनगणना को हरी झंडी मिलती है तो इसे होने में करीब 2 साल का वक्त लग सकता है. इसके बाद परिसीमन होने में करीब एक साल का वक्त लग सकता है.