सुकांता के बाद निशिकांत दुबे का बंटवारे वाला दांव…बंगाल-बिहार से क्या चाहती है बीजेपी?
झारखंड के गोड्डा से बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने संसद में हिंदुओं की घटती आबादी का मुद्दा उठाया. उन्होंने बंगाल और बिहार के मुस्लिम बहुल जिलों में हिंदुओं के गांव खाली होने पर चिंता जाहिर की.
निशिकांत दुबे ने कहा कि बिहार की किशनगंज, कटिहार, अररिया और बंगाल की मालदा और मुर्शिदाबाद सीट को मिलाकर केंद्र शासित प्रदेश बना दिया जाए, नहीं तो हिंदू गायब हो जाएंगे. बीजेपी सांसद ने NRC लागू करने की भी मांग कर डाली.
सांसद निशिकांत दुबे का दावा
बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने दावा किया है कि झारखंड में आदिवासियों की आबादी तेजी से घट रही है, क्योंकि बांग्लादेश से मुसलमान आकर बस रहे हैं. उन्होंने कहा कि बंगाल के मालदा और मुर्शिदाबाद से अवैध घुसपैठिए आ रहे हैं. और झारखंड की सत्तारूढ़ सरकार इस अवैध बस्ती को रोकने के लिए कोई कार्रवाई नहीं कर रही है.
लोकसभा में निशिकांत दुबे ने कहा कि वह झारखंड के जिस संथाल परगना क्षेत्र से आते थे वो क्षेत्र पहले बिहार में था. उनका कहना है कि संथाल परगना क्षेत्र जब झारखंड का हिस्सा बना तो उस समय साल 2000 में आदिवासियों की जनसंख्या 36 फीसदी थी लेकिन आज उनकी आबादी 26% है. निशिकांत ने सवाल उठाए हैं कि 10% आदिवासी कहां गायब हो गए?
मुस्लिम बहुल इलाकों पर नजर?
निशिकांत दुबे ने जिन 5 जिलों को अलग कर केंद्र शासित राज्य बनाने की मांग की है, इन सभी में मुस्लिम बहुल आबादी है. बिहार की किशनगंज, कटिहार, अररिया और बंगाल की मालदा और मुर्शिदाबाद सीट पर मुस्लिम वोट निर्णायक हैं. किशनगंज सीट पर तो बीजेपी सिर्फ एक बार 1999 लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज कर पाई थी, पार्टी को यह जीत मुस्लिम नेता शाहनवाज हुसैन ने दिलाई थी. किशनगंज में जहां 68 फीसदी मुस्लिम आबादी है तो वहीं अररिया में करीब 45 फीसदी मुस्लिम हैं. कटिहार में 41 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं तो मुर्शिदाबाद और मालदा बंगाल की सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले जिले हैं.
क्या अलग UT की मांग सियासी है?
निशिकांत दुबे इस मांग के पीछे असली वजह घुसपैठ को बता रहे हैं. उनका दावा है कि इन इलाकों में हिंदुओं के गांव खाली हो रहे हैं. हालांकि अपनी बात को मजबूती देने के लिए उन्होंने कहा है कि ये बात वो ऑन रिकॉर्ड कह रहे हैं और अगर उनकी बात गलत है तो इस्तीफा देने को तैयार हैं. लेकिन क्या सच में सिर्फ यही वजह है या फिर इसके पीछे कोई सियासी नफा-नुकसान है? दरअसल इन 5 जिलों की 6 सीटों में से बीजेपी के पास सिर्फ 2 लोकसभा सीट है. वहीं इन 6 लोकसभा क्षेत्रों के अंतर्गत आने वाली 39 विधानसभा सीटों में से सिर्फ 10 सीटें बीजेपी के खाते में हैं. ऐसे में माना ये भी जा रहा है कि इस मांग के पीछे सियासी कारण भी हो सकते हैं. चलिए जिलेवार समझते हैं इन इलाकों का सियासी समीकरण
1. किशनगंज
किशनगंज लोकसभा सीट की बात करें तो फिल्हाल यह सीट कांग्रेस के पास है. बीते 4 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने इस सीट पर कब्जा जमाया है. 2009 और 2014 में कांग्रेस के मो. असरारुल हक इस सीट से जीते थे तो वहीं 2019 और 2014 में कांग्रेस ही मो. जावेद यहां से सांसद चुने गए. 2019 में बिहार में जब NDA की लहर थी, तब भी कांग्रेस इस सीट को बचाने में कामयाब रही थी.
आबादी के लिहाज से यह मुस्लिम बाहुल्य इलाका है, यहां करीब 68 फीसदी मुस्लिम और 32 फीसदी हिंदू वोटर हैं. इस सीट पर अब तक हुए 17 लोकसभा चुनाव में से 10 बार कांग्रेस को जीत मिली है और सिर्फ एक बार 1999 में बीजेपी के शाहनवाज हुसैन ने जीत दर्ज की थी. 1957 से 2024 तक यहां से सिर्फ एक गैर मुस्लिम सांसद (लषण लाल कपूर) चुने गये. यह इलाका नेपाल और बंगाल से सटा हुआ है.
वहीं किशनगंज लोकसभा में विधानसभा की 6 सीटें हैं. बिहार में पिछली बार हुए विधानसभा चुनाव में बहादुरगंज, ठाकुरगंज, किशनगंज, कोचाधामन, अमौर और बैसी विधानसभा की 6 सीटों में से 4 सीटों पर आरजेडी और एक पर कांग्रेस और एक सीट AIMIM के खाते में आई थी.
2. अररिया
बिहार की अररिया लोकसभा सीट पर बीजेपी एक बार फिर जीत दर्ज करने में कामयाब रही है. लेकिन यह जीत महज 20 हजार वोटों के अंतर की रही, आरजेडी ने सीमांचल के गांधी कहे जाने वाले तस्लीमुद्दीन के बेटे शाहनवाज पर दांव लगाया था, लेकिन कहा जा रहा है कि तस्लीमुद्दीन अपने भाई और पूर्व सांसद सरफराज आलम के विरोध के कारण चुनाव हार गए.
अररिया जिले की आबादी करीब 30 लाख है. यहां मुस्लिम समुदाय करीब 43 फीसदी है और 32% मुस्लिम वोटर हैं. मुस्लिम समुदाय की यहां दो प्रमुख जातियां कुल्हैया और शेखरा हैं. कुल्हैया की आबादी सबसे अधिक है. बाकी हिन्दू समुदाय के लोग हैं. हिंदुओं में यादव और मंडल वोट सबसे अधिक हैं. हरिजन और आदिवासी वोट भी चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
अररिया लोकसभा में भी विधानसभा की 6 सीटें हैं. इनमें अररिया, जोकीहाट, फारबिसगंज, नरपतगंज, रानीगंज और सिकटी आते हैं. विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 3, कांग्रेस और जेडीयू ने एक-एक सीट पर जीत दर्ज की थी. वहीं जोकीहाट सीट से AIMIM प्रत्याशी ने चुनाव जीता था जो बाद में आरजेडी में शामिल हो गए.
3. कटिहार
कटिहार लोकसभा सीट पर भी कांग्रेस का कब्जा है, कांग्रेस के तारिक अनवर ने रिकॉर्ड छठी बार यहां से जीत दर्ज की है. 2019 में ये सीट जेडीयू के दुलाल चंद्र के पास थी. अब तक हुए चुनाव में कांग्रेस ने 8 बार जीता है, बीजेपी ने 3 बार और जनता पार्टी ने 2 बार और जेडीयू ने एक बार, प्रजा सोशलिस्ट और जनता दल ने भी एक-एक बार यहां जीत हासिल की है. 2014 में तारिक अनवर ने NCP उम्मीदवार के तौर पर जीत दर्ज की थी.
कटिहार में मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका में हैं. यहां 41 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं, 11 फीसदी यादव, 8 फीसदी सामान्य, करीब 15 फीसदी वैश्य और 18 फीसदी पिछड़ा-अति पिछड़ा समाज के वोटर हैं, जबकि लगभग 7 से 8 फीसदी अनुसूचित जाति और जनजाति के वोटर हैं.
कटिहार लोकसभा में 6 विधानसभा सीटें हैं. कटिहार, कड़वा, बलरामपुर, प्राणपुर, मनिहारी और बरारी, इनमें से 2 सीट बीजेपी के पास है और 2 पर कांग्रेस का कब्जा है. वहीं एक जेडीयू और एक CPM के पास है.
4. मालदा
बंगाल में मुस्लिम आबादी के लिहाज से मुर्शिदाबाद के बाद मालदा दूसरे नंबर पर है. लोकसभा सीट की बात करें तो मालदा उत्तर सीट पर बीजेपी और मालदा दक्षिण सीट पर कांग्रेस का कब्जा है. 2009 और 2014 में मालदा उत्तर से कांग्रेस की मौसम नूर ने चुनाव जीता, 2019 में ये सीट बीजेपी के खाते में आ गई. खगेन मुर्मू ने यहां से जीत हासिल की थी, वहीं इस बार भी उन्होंने अपना प्रदर्शन दोहराया है.
मालदा दक्षिण सीट 2019 में भी कांग्रेस के पास थी, इस बार भी कांग्रेस बंगाल में एकमात्र यही सीट जीत पाई है. 2009 से कांग्रेस का इस सीट पर कब्जा है. मालदा दक्षिण लोकसभा सीट परिसीमन के बाद साल 2009 में पहली बार अस्तित्व में आई. आबादी की बात करें तो यहां 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां की कुल आबादी करीब 23 लाख से अधिक है और मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है.
मालदा उत्तर लोकसभा में 7 विधानसभा सीटें आती हैं, इनमें से चार पर टीएमसी के विधायक और तीन पर बीजेपी के विधायक हैं. वहीं मालदा दक्षिण लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत भी 7 विधानसभा सीटें आती हैं जिनमें से 6 पर टीएमसी के विधायक हैं, जबकि एक पर बीजेपी का कब्जा है.
5. मुर्शिदाबाद
पश्चिम बंगाल की मुर्शिदाबाद सीट पर वामपंथी दलों का दबदबा रहा है. इस सीट पर 8 बार CPI ने जीत दर्ज की है, हालांकि पिछले चुनाव में TMC ने सीपीआई के दबदबे को तोड़ दिया था. वहीं कांग्रेस को इस सीट पर 4 बार जीत मिली है.
मुर्शिदाबाद के जातीय समीकरण की बात करें तो 2011 जनगणना के मुताबिक यहां पर 60 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं, जबकि 15 फीसदी वोटर अनुसूचित जाति से आते हैं और 1.5 फीसदी वोटर अनुसूचित जनजाति के हैं.
वहीं मुर्शिदाबाद के 7 विधानसभा चुनावों के गणित पर नजर डालें तो 2021 विधानसभा चुनाव में TMC ने 6 सीटों पर कब्जा जमाया था वहीं सिर्फ एक सीट पर बीजेपी जीत हासिल कर पाई.
बंगाल को लेकर सुकांता ने भी की थी मांग
केंद्रीय मंत्री सुकांता मजूमदार ने बुधवार को प्रधानमंत्री से मुलाकात कर नॉर्थ बंगाल को बंगाल राज्य से अलग कर नॉर्थ ईस्ट में शामिल करने की मांग की थी. सुकांता का दावा था कि इससे नॉर्थ बंगाल में विकास होगा और केंद्र की योजनाओं का फायदा मिलेगा. हालांकि नॉर्थ बंगाल के कर्सियागंज से बीजेपी के ही विधायक बिष्णु प्रसाद शर्मा ने सुकांता की इस मांग का विरोध किया है.
लेकिन बंगाल को लेकर बीजेपी की ओर से उठ रही इन मांगों को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं. क्या सच में बीजेपी नेता बंगाल के विकास और घुसपैठ के चलते इस तरह के दांव खेल रहे हैं या फिर इसके पीछे कोई सियासी पेच है? पश्चिम बंगाल में बीजेपी बीते 10 सालों से लगातार मेहनत कर रही है लेकिन ममता दीदी का ये किला बीजेपी के लिए अब भी अभेद्य बना हुआ है. ऐसे में इन मांगों पर सवाल उठना तो लाजिम है.