सुनक गए और कीर आए… लेबर पार्टी के हाथों ब्रिटेन की सत्ता आने से भारत पर क्या पड़ेगा असर?
ब्रिटेन की वामपंथी लेबर पार्टी ने ऐतिहासिक आम चुनाव में जीत हासिल कर ली है. उसने कंजर्वेटिव पार्टी को भारी अंतर से हराया है. लेबर पार्टी के नेता 61 वर्षीय कीर स्टार्मर ब्रिटेन के 58वें पीएम बन गए हैं. पिछले पांच कंजर्वेटिव प्रधानमंत्रियों में से केवल तीन ही सीधे तौर पर चुने गए थे. सुनक द्वारा हार स्वीकार करने के बाद अपने संबोधन में स्टार्मर ने कहा, ‘परिवर्तन अब शुरू हो रहा है’.
मतदाताओं ने 14 साल के शासन के बाद कंजर्वेटिव पार्टी को अस्वीकार कर दिया क्योंकि पार्टी जीवन-यापन की लागत के संकट से निपट नहीं सकी. हाल के वर्षों में ब्रिटेन के लोगों की आर्थिक स्थिति और भी खराब हुई है. सरकार से संबद्ध निगरानी संस्था राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के अनुसार, अमेरिका, जर्मनी और अन्य धनी देशों की तुलना में 2008 के वित्तीय संकट के बाद से ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था स्थिर हो गई है. इसके साथ ही वेतन में बमुश्किल ही वृद्धि हुई है.
कीर स्टारमर से हाथ मिलाते हुए ब्रिटेन के राजा चार्ल्स-III. फोटो- पीटीआई
पिछले 100 सालों में कंजर्वेटिव पार्टी चुनावी तौर पर सबसे ज्यादा सफल ब्रिटिश राजनीतिक पार्टी रही है. उस समय में कंजर्वेटिव पार्टी के नेतृत्व में 17 ब्रिटिश सरकारें बनी हैं, जबकि लेबर पार्टी के नेतृत्व में आठ सरकारें बनी हैं.
लेबर पार्टी कैसे बनी?
लेबर पार्टी का जन्म 20वीं सदी के अंत में मजदूर वर्ग के लोगों की हताशा के कारण हुआ था, क्योंकि वे संसद में उम्मीदवार खड़ा करने में असमर्थ थे. लिबरल पार्टी उस समय ब्रिटेन में प्रमुख सामाजिक सुधार पार्टी थी. 1900 में ट्रेड्स यूनियन कांग्रेस (ब्रिटिश ट्रेड यूनियनों का राष्ट्रीय महासंघ) ने स्वतंत्र लेबर पार्टी (1893 में स्थापित) ने लेबर रिप्रेजेंटेशन कमेटी की स्थापना की, जिसका 1906 में लेबर पार्टी नाम पड़ा. शुरुआती लेबर पार्टी में राष्ट्रव्यापी जन सदस्यता या संगठन का अभाव था. 1914 तक इसने मुख्य रूप से लिबरल्स के साथ एक अनौपचारिक समझौता किया और जहां भी संभव हो एक-दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार खड़े नहीं किए.
प्रथम विश्व युद्ध के बाद पार्टी ने बड़ी प्रगति की: सबसे पहले लिबरल पार्टी ने गुटीय विवादों की एक श्रृंखला में खुद को अलग कर लिया. दूसरा, 1918 जन प्रतिनिधित्व अधिनियम ने 21 वर्ष या उससे अधिक आयु के सभी पुरुषों और 30 वर्ष या उससे अधिक आयु की महिलाओं को चुनावी मताधिकार प्रदान किया. तीसरा, 1918 में लेबर ने खुद को लोकतांत्रिक संविधान और राष्ट्रीय संरचना के साथ औपचारिक रूप से समाजवादी पार्टी के रूप में पुनर्गठित किया. इसके बाद 1922 तक लेबर ने सत्तारूढ़ कंजर्वेटिव पार्टी के आधिकारिक विपक्ष के रूप में लिबरल पार्टी की जगह ले ली.
1924 में उदारवादी समर्थन के साथ जेम्स रामसे मैकडोनाल्ड ने पहली लेबर सरकार बनाई. हालांकि, उनके अल्पमत प्रशासन को एक वर्ष से भी कम समय बाद नए सोवियत राज्य के प्रति सहानुभूति और पार्टी के भीतर कथित कम्युनिस्ट प्रभाव के सवालों के चलते गिरा दिया गया. 1929 के चुनाव में लेबर संसद में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी. हालांकि इसमें भी उसे पूर्ण बहुमत नहीं मिला और उदारवादियों के साथ गठबंधन सरकार बनानी पड़ी.
लेबर पार्टी के नेता कीर स्टारमर.
जब अपनों ने ही छोड़ा साथ
1931 में पार्टी को अपने इतिहास के सबसे गंभीर संकटों में से एक का सामना करना पड़ा. जब विदेशी बैंकों से ऋण प्राप्त करने की शर्त के रूप में सार्वजनिक व्यय में कटौती की मांगों का सामना करते हुए मैकडोनाल्ड ने अधिकांश लेबर अधिकारियों की आपत्तियों की अवहेलना की और कंजर्वेटिव व लिबरल के साथ गठबंधन सरकार बनाई. आगामी चुनाव में लेबर का संसदीय प्रतिनिधित्व 288 से घटकर 52 हो गया. पार्टी 1940 तक सत्ता से बाहर रही, जब लेबर मंत्री विंस्टन चर्चिल के नेतृत्व में युद्धकालीन गठबंधन सरकार में शामिल हो गए.
लेबर ने 1945 के आम चुनाव में शानदार वापसी की. जब उसने 393 सीटें जीतीं. हालांकि, युद्ध के बाद की आर्थिक सुधार धीमी साबित हुई और 1950 के चुनाव में लेबर का बहुमत घट गया और 1951 में सत्ता खो दी. लेबर पार्टी 1964 तक सत्ता में वापस नहीं आई. पार्टी ने 1974 से 1979 तक फिर से सत्ता संभाली. पहले विल्सन फिर जेम्स कैलाघन के अधीन.
1978-79 के बाद जब ब्रिटेन को ट्रेड यूनियनों द्वारा कई बड़ी हड़तालों का सामना करना पड़ा, तो मार्गरेट थैचर के नेतृत्व में कंजर्वेटिव ने उसको सत्ता से बाहर कर दिया. 1997 के आम चुनाव में पार्टी ने भारी जीत हासिल की और 18 साल के कंजर्वेटिव पार्टी के शासन के बाद लेबर को सत्ता मिली. इस बार टोनी ब्लेयर को प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त किया गया. 2001 में पार्टी ने लगातार दूसरी बार भारी जीत हासिल की, 167 सीटों के बहुमत पर कब्जा कर लिया.
कीर स्टारमर और उनकी पत्नी विक्टोरिया. फोटो- पीटीआई
जीत के बावजूद हुई ब्लेयर की ओलाचना
पार्टी की चुनावी सफलता के बावजूद ब्लेयर की नेतृत्व शैली की उनके लेबर विरोधियों द्वारा तानाशाही के रूप में आलोचना की गई थी. ब्लेयर को 2003 में इराक के साथ सैन्य टकराव की अमेरिकी नीति के समर्थन पर आंतरिक असंतोष का भी सामना करना पड़ा. जब संसद के 139 लेबर सदस्यों ने सरकार की नीति का विरोध करने वाले संशोधन का समर्थन किया. फिर भी, 2005 में लेबर ने पार्टी के इतिहास में पहली बार अपना तीसरा लगातार आम चुनाव जीता.
2007 में ब्लेयर ने गॉर्डन ब्राउन के पक्ष में प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. 2010 के आम चुनाव में लेबर पार्टी ने हाउस ऑफ कॉमन्स में 258 सीटें जीतीं और अपना बहुमत खो दिया. ब्राउन ने पार्टी के नेता के रूप में पद छोड़ दिया और 11 मई को प्रधानमंत्री के रूप में अपना इस्तीफा दे दिया. मई 2015 में आम चुनाव से पहले लेबर और कंजर्वेटिव के बीच कांटे की टक्कर बताई जा रही थी, लेकिन असल में उसकी हार हुई. लेबर ने 1987 के बाद से अपना सबसे खराब प्रदर्शन किया. जून 2017 में कंजर्वेटिव प्रधानमंत्री थेरेसा द्वारा बुलाए गए आकस्मिक आम चुनाव में नेतृत्व किया.
खुद को एक प्रेरक प्रचारक साबित करते हुए उन्होंने लेबर पार्टी को 30 सीटों का फायदा पहुंचाया. हालांकि, अल्पमत सरकार को सशक्त बनाने के लिए थेरेसा मे को उत्तरी आयरलैंड की डेमोक्रेटिक यूनियनिस्ट पार्टी का समर्थन लेने के लिए मजबूर होना पड़ा. 2019 में बोरिस जॉनसन के नेतृत्व में कंजर्वेटिव ने चुनाव लड़ा, जिसमें उनकी पार्टी ने 365 सीटें जीतीं. यह 1987 में मार्गरेट थैचर के नेतृत्व वाली ऐतिहासिक जीत के बाद से कंजरवेटिव की सबसे बड़ी जीत थी.
भारत पर क्या पड़ेगा असर
सुनक के सत्ता में आने से पहले से भारत और ब्रिटेन एक मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर काम कर रहे हैं, जो वर्तमान में प्रति वर्ष 38.1 बिलियन पाउंड के द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देने के प्रयासों का हिस्सा है. FTA वार्ता जनवरी 2022 में शुरू हुई थी और जॉनसन ने दिवाली 2022 को प्रारंभिक समय सीमा के रूप में निर्धारित किया था. सुनक के नेतृत्व वाली सरकार के तहत इसको लेकर कोई नई समयसीमा निर्धारित नहीं की गई थी, लेकिन दोनों पक्ष 2024 में आम चुनाव से पहले चीजों पर हस्ताक्षर करना चाहते थे.
भारत और ब्रिटेन ने एफटीए पर 13 दौर की वार्ता की है. 14वां दौर जनवरी में शुरू हुआ था, जहां लोगों की गतिशीलता और कुछ वस्तुओं पर आयात शुल्क रियायतों सहित कुछ विवादास्पद मुद्दों पर मतभेदों को दूर करके इसे अंतिम रूप देने पर विचार करना था. समझौते में 26 अध्याय हैं, जिनमें माल, सेवाएं, निवेश और बौद्धिक संपदा अधिकार शामिल हैं. हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि ब्रिटेन चुनाव के नतीजों से भारत-यूके व्यापार वार्ता पर कोई बड़ा बदलाव नहीं आएगा. लेबर पार्टी ने “काम पूरा करने” के लिए खुद को प्रतिबद्ध किया है, लेकिन अभी यह कुछ समय के लिए अटक सकती है.
लेबर पार्टी का क्या है रुख
सितंबर 2019 में, लेबर प्रतिनिधियों ने कश्मीरी संघर्ष में भारत की कार्रवाइयों की आलोचना करते हुए एक सम्मेलन प्रस्ताव पारित किया, जिसमें यह भी कहा गया कि कश्मीर के लोगों को आत्मनिर्णय का अधिकार होना चाहिए. उस समय चुनाव से पहले व्हाट्सएप संदेशों में पार्टी को भारत विरोधी, हिंदू विरोधी और मोदी विरोधी करार दिया गया था. हालांकि इसके बाद जून 2023 में, कीर स्टार्मर ने घोषणा की कि लेबर ने भारत के प्रति अपने दृष्टिकोण में गलती की है और अगर वह निर्वाचित होते हैं तो वे भारत के साथ घनिष्ठ संबंध बनाना चाहेंगे.
चुनाव जीतने के बाद कीर स्टार्मर ने भी अपनी विजय रैली में समर्थकों से कहा कि वह ब्रिटिश भारतीयों के साथ अपनी पार्टी के रिश्ते को नए सिरे से आकार देने की कोशिश कर रहे हैं, जो पूर्व नेता जेरेमी कॉर्बिन के कार्यकाल में कश्मीर पर कथित भारत विरोधी रुख को लेकर प्रभावित हुए थे. उन्होंने कहा, ‘मेरी लेबर पार्टी की सरकार भारत के साथ लोकतंत्र और आकांक्षा के हमारे साझा मूल्यों पर आधारित संबंध तलाशेगी. वह एक मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के लिए प्रयास करेगी. हम उस महत्वाकांक्षा को साझा करते हैं, लेकिन वैश्विक सुरक्षा, जलवायु सुरक्षा, आर्थिक सुरक्षा के लिए एक नई रणनीतिक साझेदारी भी करेंगे’.
पिछले सप्ताह प्रचार अभियान के दौरान उत्तरी लंदन के किंग्सबरी में श्री स्वामीनारायण मंदिर की यात्रा के दौरान, उन्होंने ब्रिटिश हिंदुओं के लिए अपने संदेश में कहा था कि ‘ब्रिटेन में हिंदुओं के प्रति नफरत के लिए बिल्कुल कोई जगह नहीं है’.
वहीं शेडो विदेश सचिव डेविड लैमी ने भी चुनाव से पहले कहा, ‘लेबर पार्टी ने ब्रिटेन-भारत एफटीए पर ज्यादा वादे करने और कम प्रदर्शन करने के लिए कंजर्वेटिवों की आलोचना की है और घोषणा की है कि यदि वे चुनाव जीतते हैं तो वे इस समझौते को अंतिम रूप देने के लिए तैयार हैं. उनकी तरफ से कहा गया कि यदि लेबर पार्टी चुनाव जीतती है तो 2024 के अंत तक इसे पूरा कर लिया जाएगा. वहीं लेबर पार्टी भारत के साथ मिलकर नियम-आधारित व्यवस्था के आधार पर ‘स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत’ को बढ़ावा देने की योजना बना रही है. इसके अलावा साइबर सुरक्षा पर भारत के साथ सहयोग को लेकर भी पार्टी पूरी तरह काम करने को तैयार है.