सुनक जीतें या कीर, ब्रिटेन के नए PM के सामने ये होंगी बड़ी चुनौतियां?
कभी दुनिया भर पर राज करने वाले अंग्रेजों के देश में गुरुवार (4 जुलाई) को आम चुनाव के लिए वोट डाले गए थे और अब मतगणना चल रही है. इस बार यूके में प्रधानमंत्री पद की दौड़ से कंजरवेटिव पार्टी के ऋषि सुनक बाहर होते दिख रहे हैं. अब तक की काउंटिंग में विपक्षी दल लेबर पार्टी आगे चल रही है कीर स्टारमर प्रधानमंत्री पद की ओर तेजी से बढ़ते दिख रहे हैं.
खैर, वहां प्रधानमंत्री कोई भी बने, देश में व्याप्त चुनौतियों से दो-चार होना पड़ेगा. ब्रिटेन की नई सरकार को इनका सामना करना पड़ेगा. आइए जान लेते हैं कि ब्रिटेन में नई सरकार के सामने कितनी चुनौतियां होंगी.
आर्थिक विकास सबसे खराब स्थिति में
यूके में पिछले 15 सालों में इस समय आर्थिक विकास सबसे खराब स्थिति में है. इंस्टीट्यूट ऑफ फिस्कल स्टडीज के एसोसिएट डायरेक्टर टॉम वाटर्स का कहना है कि गरीब से लेकर अमीर और जवान से लेकर बुजुर्ग तक सबके लिए देश में आर्थिक विकास दर काफी सुस्त है. इसका मतलब यह है कि देश में जहां आर्थिक असमानता बरकरार है, वहीं, गरीबी कम करने की रफ्तार काफी कम है. पिछले 16 सालों के 46 फीसदी के मुकाबले इस वक्त ब्रिटेन का ग्राम डोमेस्टिक प्रोडक्ट (जीडीपी) केवल 4.3 फीसदी की दर से बढ़ रहा है. इसे साल 1826 के बाद सबसे सुस्त विकास दर बताया जा रहा है.
स्वास्थ्य सेवाओं में इंतजार बढ़ा, इसे घटाने की चुनौती
स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में भी यूके की स्थिति इस वक्त काफी खराब है. इस समय हर 10 में से चार लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ लेने के लिए इंतजार करना पड़ रहा है. चुनाव में भी यह मुद्दा बना और दोनों ही पार्टियों कंजरवेटिव पार्टी और लेबर पार्टी ने चिकित्सा के लिए लोगों का इंतजार खत्म करने का वादा किया था. इस साल अप्रैल में देश में चिकित्सा के लिए इंतजार करने वालों की सूची में 7.6 मिलियन लोग शामिल थे.
इससे पहले पिछले साल सितंबर में 7.8 लाख लोगों को चिकित्सा के लिए इंतजार करना पड़ा था. यह साल 2010 के मुकाबले तीन गुना ज्यादा है. वर्तमान में इंतजार कर रहे 7.6 मिलियन लोगों में से 302500 लोगों का इंतजार 52 हफ्तों से लेकर एक साल तक का है. 50 हजार से ज्यादा लोग 15 महीनों से चिकित्सा के लिए इंतजार कर रहे हैं. ऐसे ही पांच हजार लोगों का इंतजार 78 हफ्तों से भी लंबा बताया गया है. मार्च 2010 में औसत इंतजार 5.2 हफ्तों का था, जो अब बढ़कर 13.9 हफ्तों तक पहुंच गया है. यही नहीं, एक्सीडेंट और इमरजेंसी की स्थिति में भी बड़ी संख्या में लोगों को यूके के अस्पतालों में इलाज के लिए डॉक्टर का इंतजार करना पड़ रहा है.
यूके छोड़ने वालों की संख्या बढ़ी
यूके में लॉन्ग टर्म नेट माइग्रेशन की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है. यानी यूके छोड़कर जाने वालों और यहां आने वालों के बीच का अंतर काफी बढ़ गया है. 2023 के अंत तक यूके में लॉन्ग टर्म माइग्रेशन का आंकड़ा 6.85 लाख तक पहुंच गया था. यानी यहां आने वालों के मुकाबले जाने वालों की संख्या इतनी ज्यादा थी. यह पिछले एक दशक के आंकड़ों से तीन गुना ज्यादा बताई जा रही है. लॉन्ग टर्म के लिए यूके आने वालों में भारतीयों की संख्या सबसे ज्यादा है और इस सूची में ढाई लाख भारतीय शामिल हैं. इसके बाद 1.41 लाख नाइजीरियन, 90 हजार चीनी और 83 हजार पाकिस्तानी शामिल हैं.
जीवन यापन की लागत में बढ़ोतरी
भारत की तरह ही यूके भी महंगाई से बुरी तरह से जूझ रहा है और वहां लोगों के जीवन यापन की लागत पिछले कुछ सालों में काफी बढ़ चुकी है. मुद्रास्फीति पिछले 41 सालों में सबसे उंचले स्तर पर पहुंच चुकी है और अक्तूबर 2022 में यह 11.1 फीसदी दर्ज की गई थी. इसका कारण कोविड के दौरान सप्लाई से जुड़ी समस्याएं और यूक्रेन-रूस का युद्ध बताया जा रहा है. हालांकि, हालिया आंकड़ों से पता चल रहा है कि मई 2024 में वार्षिक मुद्रास्फीति दर में दो फीसदी की कमी आई है और एक महीने पहले यह तीन सालों में सबसे नीचे पहुंच चुकी थी.
घरों की कीमतों और किराए में बेतहाशा वृद्धि
यूके में रहना भी काफी महंगा होता जा रहा है. घर खरीदने अब आम लोगों के बस के बाहर होता दिख रहा है. वहां घरों की औसत कीमत आय के मुकाबले 8.3 गुना ज्यादा है, जो कि 2010 में 6.8 गुना ज्यादा थी. इसके कारण यूके में मकान मालिकों का आंकड़ा भी घटता जा रहा है.
2010 के मुकाबले 45 से 59 आयु वर्ग के मकान मालिक बनने का आंकड़ा 7.1 फीसदी तक नीचे चला गया. वहीं, 35 से 44 आयु वर्ग के लोगों के अपना मकान खरीदना का आंकड़ा भी 6.5 फीसदी गिरा है. हालांकि, 25 से 34 आयु वर्ग के लोगों के अपना घर खरीदना के आंकड़े में मामूली वृद्धि हुई है.
यूके में किराये की दरें भी काफी तेजी से बढ़ी हैं और जनवरी 2024 में यह 6.2 फीसदी तक पहुंच गई थीं. जनवरी 2016 में किराये की दरों का आंकड़ा जारी होने के बाद यह सबसे ज्यादा है.
इन चुनौतियों का भी करना होगा सामना
इनके अलावा यूके की नई सरकार के कुछ और चुनौतियां भी होंगी. इनमें शिक्षा पर लगातार घट रहा सरकारी खर्च, रक्षा पर विदेशी खर्च में बढ़ोतरी, सरकार पर भरोसे में कमी और कुछ क्षेत्रों में अपराधों का बढ़ता स्तर भी इनमें शामिल हैं. एक रिपोर्ट के मुकाबले यूके में 2010-11 के मुकाबले शिक्षा पर सरकारी खर्च में काफी कमी आई है और 2022-23 में शिक्षा पर कुल सार्वजनिक खर्च घटकर आठ फीसदी या 10 बिलियन पाउंड रहा. रक्षा और विदेश मामले भी नई सरकार के की चिंता का अहम कारण होंगे. इनमें रूस का सामना करने के लिए यूक्रेन की मदद के लिए होने वाला खर्च और गाजा की लड़ाई भी शामिल हैं.
अब तक यूक्रेन को मदद करने वाले यूनाइटेड स्टेट्स और जर्मनी के साथ यूके भी खड़ा दिख रहा है. इसके लिए वह 12.5 बिलियन पाउंड्स की मदद दे चुका है, जिसमें 7.6 बिलियन पाउंड की केवल मिलिटरी हेल्प शामिल है. जहां तक गाजा की लड़ाई का मुद्दा है तो यूके के आम लोग अब इसे और आगे जाते नहीं देखना चाहते हैं. इसी साल मई में आई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि यूके के 70 फीसदी लोग चाहते हैं कि गाजा में तुरंत सीजफायर होना चाहिए. ऐसे में नई सरकार पर इन चुनौतियों से निपटने का भी जिम्मा होगा.
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