सुप्रीम कोर्ट ने मैरिटल रेप मामले पर फैसला टाला, अगले हफ्ते होगी सुनवाई
मैरिटल रेप यानी विवाहित पत्नी से रेप के मामले पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले को एक हफ्ते के लिए टाल दिया है. बताया जा रहा है कि सीजेआई की बेंच के समक्ष सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस हफ्ते सुनवाई न करने की मांग की. एसजी तुषार मेहता ने कहा कि उन्हें जवाब दाखिल करना है, इसलिए इस हफ्ते मामले की सुनवाई न हो. इस पर सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि आप एक नोट दाखिल कर सकते हैं. इसके बाद मेहता ने कहा कि हम अभी भी जवाब दाखिल करना चाहेंगे, इसलिए इस मामले को अगले हफ्ते के लिए रखा जाए. इसके बाद सीजेआई ने मामले की सुनवाई अगले हफ्ते के लिए टाल दी और अब इस पर फैसला अगले हफ्ते सुनाया जाएगा.
लगातार विवादों में रहने वाले मैरिटल रेप मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सुनवाई की थी. इस केस पर सुनवाई सीजेआई चंद्रचूड़ और जस्टिस जे.बी. पारदीवाला की बेंच करेगी.
क्या कहता है बीएनएस सेक्शन?
भारतीय कानून में बीएनएस की धारा 63 के तहत मैरिटल रेप को अपराध नहीं माना गया है. हालांकि, इस मामले पर केंद्र सरकार को भी जवाब दाखिल करना है. सरकार का कहना है कि ऐसे कानूनों में बदलाव के लिए विचार-विमर्श की जरूरत है. बता दें, मैरिटल रेप पर कानून बनाने की मांग काफी लंबे समय से की जा रही है. पिछले दो सालों में दिल्ली और कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसलों के बाद इसकी मांग तेज हो गई है. एक याचिका पति की तरफ से दायर की गई थी, जबकि दूसरा मामला एक महिला ने दायर किया था.
क्या कहती है सरकार?
2016 में भारत सरकार ने मैरिटल रेप पर कानून बनाने के विचार को खारिज कर दिया था. सरकार का कहना है कि देश में गरीबी, अशिक्षा, सामाजिक रीति-रिवाज, मूल्यों, धार्मिक विश्वासों और विवाह को एक संस्कार के रूप में मानने की सामाजिक मानसिकता जैसे कई कारणों से इसे भारतीय संदर्भ में लागू नहीं किया जा सकता है. साल 2017 में सरकार ने मैरिटल रेप को अपराध न मानने के कानूनी अपवाद को हटाने का विरोध किया था. इस पर सरकार का कहना था कि मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने से विवाह की संस्था अस्थिर हो जाएगी और इसका इस्तेमाल पत्नियों द्वारा अपने पतियों को सजा देने के लिए किया जाएगा. वहीं, केंद्र ने पिछले साल दिल्ली हाई कोर्ट में मैरिटल रेप पर चल रही सुनवाई के दौरान कहा था कि सिर्फ इसलिए कि अन्य देशों ने मैरिटल रेप को अपराध घोषित कर दिया है. इसका मतलब यह नहीं है कि भारत को भी ऐसा ही करना चाहिए.