हरियाणा के विनिंग फॉर्मूले से महाराष्ट्र जीतने का प्लान, दलित-ओबीसी वोटों पर शिंदे सरकार की नजर
हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव नतीजों ने महाराष्ट्र में बीजेपी को सियासी बूस्टर दे दिया है. बीजेपी जिस तरह हरियाणा की सियासी बाजी जीतने में कामयाब रही है, अब उसी तर्ज पर महाराष्ट्र की सियासी लड़ाई फतह करने का ताना-बाना बुनना शुरू कर दिया है. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली बीजेपी-शिवसेना-एनसीपी की गठबंधन सरकार ने विधानसभा चुनाव से पहले दलित और ओबीसी समुदाय को साधने के लिए बड़ा सियासी दांव चला है. ऐसे में देखना है कि हरियाणा के नायब सिंह सैनी के नक्शे कदम पर चल कर शिंदे सरकार महाराष्ट्र में जीत का परचम फहरा पाएगी?
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से ठीक पहले शिंदे सरकार ने गुरुवार को कैबिनेट के जरिए बड़ा फैसला लिया है. एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार ने राज्य अनुसूचित आयोग को संवैधानिक दर्जा देने वाले अध्यादेश को मंजूरी दे दी है. अब अध्यादेश महाराष्ट्र विधानमंडल के अगले सत्र में पेश किया जाएगा. साथ ही केंद्र सरकार से अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की क्रीमी लेयर की तय सीमा 8 लाख को बढ़ाकर 15 लाख करने की मांग के लिए एक प्रस्ताव भी पास किया गया है. ओबीसी को आरक्षण के लिए गैर-क्रीमी लेयर प्रमाणपत्र लेना पड़ता है.
शिंदे सरकार ने चला बड़ा सियासी दांव
शिंदे सरकार ने जिस तरह विधानसभा चुनाव से ठीक पहले दोनों अहम फैसले लिए हैं, उसके चलते इन फैसलों को बीजेपी-शिवसेना-एनसीपी की चुनावी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है. शिंद कैबिनेट के दोनों फैसले इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि एनसीपी (एस) के प्रमुख शरद पवार लंबे समय से ओबीसी के क्रीमी लेयर की निर्धारित सीमा को बढ़ाने की मांग करते रहे हैं. इतना ही नहीं राहुल गांधी जिस तरह से जातीय जनगणना और ओबीसी आरक्षण की सीमा के मुद्दों को उठा रहे हैं, ऐसे में शिंदे के नेतृ्त्व वाली बीजेपी-शिवसेना सरकार ने क्रीमी लेयर का दांव खेलकर बड़ा सियासी दांव चला है.
महाराष्ट्र में विनिंग फॉर्मूले का इस्तेमाल
हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले नायब सिंह सैनी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने राज्य में ओबीसी के क्रीमी लेयर की निर्धारित सीमा 6 लाख रुपये से बढ़ाकर 8 लाख रुपये कर दी थी. इस तरह से बीजेपी ने हरियाणा के 35 फीसदी ओबीसी वोटों को साधने की कवायद की थी, जिसका लाभ भी उसे चुनाव में मिला है. ओबीसी का बड़ा तबका बीजेपी के साथ मजबूती से खड़ा रहा है. इतना ही नहीं चुनाव के दौरान बीजेपी ने कांग्रेस सांसद कुमारी सैलजा की नारजगी को दलित स्वाभिमान से जोड़ दिया था. पीएम मोदी से लेकर अमित शाह सहित बीजेपी के तमाम नेताओं ने कांग्रेस को दलित विरोधी कठघरे में खड़े करने की कवायद की थी.
हरियाणा के विनिंग फॉर्मूले से बीजेपी ने महाराष्ट्र की चुनावी बाजी जीतने के लिए बड़ा दांव चला है. इसीलिए दलित और ओबीसी वोटों को जोड़ने के लिए चुनाव से पहले बड़ा फैसला लिया है. मराठा आरक्षण आंदोलन के चलते बीजेपी कोई भी सियासी रिस्क नहीं लेना चाहती. इसीलिए बीजेपी की कोशिश दलित और ओबीसी वोटों को लामबंद करने की है, जिसके लिए गुरुवार को कैबिनेट के जरिए बड़ा दांव चला है. 2024 के लोकसभा चुनाव में दलित और ओबीसी वोट छिटकने के चलते बीजेपी नेतृत्व वाले गठबंधन को बड़ा झटका लगा था.
लोकसभा चुनाव में लगा था झटका
2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को महाराष्ट्र में बड़ा झटका लगा था. एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने के बाद भी बीजेपी 23 सीटों से घटकर 9 सीट पर सिमट गई थी. राज्य की 48 लोकसभा सीटों में बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन को 17 सीटें मिली ( बीजेपी 9, शिवसेना 7 और एनसीपी एक सीट जीती थी) जबकि इंडिया गठबंधन को 30 सीटों पर जीत हासिल हुई थी (कांग्रेस को 13, उद्धव ठाकरे की शिवसेना 9 और शरद पवार की एनसीपी को 8 सीटें मिली थी. बीजेपी को मिली हार के पीछे सबसे बड़ी वजह जातिगत समीकरण को सही तरीके से साध न पाना था. वहीं, विपक्षी गठबंधन ने इसे अच्छी तरह से मैनेज किया था.
OBC वोट पर बीजेपी का खास फोकस
लोकसभा चुनाव के बाद से ही बीजेपी महाराष्ट्र के जातीय समीकरण को मैनेज करने में जुटी है और उसका खास फोकस ओबीसी वोटों पर है. महाराष्ट्र में करीब 40 फीसदी ओबीसी वोटर और 12 फीसदी दलित हैं. बीजेपी का पूरा फोकस महाराष्ट्र में ओबीसी वोटों पर रहा है और उनके सहारे लंबे वक्त तक राजनीति करती रही है. बीजेपी ने 2014 के बाद मराठों को साधने की कवायद की थी, जिसके चलते ओबीसी से फोकस कट गया था. लोकसभा चुनाव में मिले झटके के बाद बीजेपी को फिर से ओबीसी याद आए हैं और पार्टी ने तीन ओबीसी नेताओं को एमएलसी बनाया है. अब शिंदे सरकार ने ओबीसी के क्रीमी लेयर की सीमा को बढ़ाने का प्रस्ताव पास कर बड़ा दांव चला है.
महाराष्ट्र में 40 फीसदी OBC
महाराष्ट्र में 40 फीसदी ओबीसी करीब 356 जातियों में बंटे हुए हैं और इन्हें 19 फीसदी आरक्षण मिलता है. साल 1931 में आखिरी बार हुई जातिगत जनगणना के अनुसार भारत की कुल आबादी का 52 फीसदी हिस्सा अति पिछड़ा वर्ग का है. महाराष्ट्र में 40 फीसदी आबादी ओबीसी की है, जिसमें तेली, माली, लोहार, कुर्मी, धनगर, घुमंतु, कुनबी और बंजारा जैसी जातियां शामिल हैं. ओबीसी की 40 फीसदी आबादी होने के बाद भी मराठा वर्चस्व की राजनीति के चलते उन्हें कोई खास सियासी मुकाम नहीं मिल सका है. यही कारण है कि अब तक राज्य में एक भी ओबीसी सीएम नहीं बना.
बीजेपी में गोपीनाथ मुंडे, एकनाथ खड़से और विनोद तावड़े सबसे बड़ा ओबीसी चेहरा बनकर महाराष्ट्र में उभरे थे. आज बीजेपी के पास ओबीसी कैटेगरी में गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा मुड्डे और विनोद तावड़े हैं. ओबीसी समुदाय का आधार कोल्हापुर, सांगली, सोलापुर, पुणे, अकोला, परभणी, नांदेड़ और यवतमाल जिलों में हैं. महाराष्ट्र की करीब 100 विधानसभा सीट पर ओबीसी वोटों का प्रभाव है और उसी के चलते बीजेपी का फोकस ओबीसी वोटों हैं. इसी तरह पार्टी दलित समाज को भी साधने की कवायद में है, जिसके लिए एससी आयोग को संवैधानिक दर्जा देने की मंजूरी दी है.