हरियाणा में कांग्रेस की हार, जानिए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए क्या दे गया सबक
हरियाणा विधानसभा चुनाव चुनाव से पहले और एग्जिट पोल में कांग्रेस की 10 सालों के बाद सत्ता में वापसी के आकलन किए गए थे. कई राजनीतिक विश्लेषकों ने दावा किया था कि चुनाव बाद कांग्रेस की सरकार बनेगी और भाजपा सरकार का पतन होगा, लेकिन जब चुनाव परिणाम सामने आए तो आकलन और भविष्यवाणियां पूरी तरह से फेल हो गईं और हरियाणा में तीसरी बार भाजपा की सरकार बनने जारी है.
90 विधानसभा सीटों वाली हरियाणा में भाजपा ने 48, कांग्रेस ने 37, इंडियन नेशनल लोकदर ने 2 और निर्दलीय ने तीन सीटों पर जीत हासिल की है. लोकसभा चुनाव में अच्छे प्रदर्शन के बाद यह चुनाव कांग्रेस के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है.
प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के नेतृत्व में गुरुवार को कांग्रेस के आला नेताओं को लेकर हरियाणा चुनाव परिणाम पर समीक्षा बैठक हुई. इस समीक्षा बैठक में भूपेंद्र हुड्डा, कुमारी सैलजा और रणदीप सुरेजवाला जैसे नेताओं ने शिरकत नहीं की. कांग्रेस ने माना कि पार्टी नेताओं के बीच प्रतिद्वंद्विता, नेताओं की बगावत और आपसी कलह के कारण पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा है.
हरियाणा में हार के बाद सहयोगी दलों का निशाना
लेकिन हरियाणा में हार के बाद जिस तरह से इंडिया गठबंधन के घटक दल कांग्रेस के रवैये पर निशाना साध रहे हैं और आरोप लगा रहे हैं कि कांग्रेस के अभिमान की वजह से हरियाणा में उसकी हार हुई है. कांग्रेस ने जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा तो इंडिया गठबंधन को जीत मिली है. यदि हरियाणा में भी कांग्रेस सहयोगी पार्टियों के साथ चुनाव लड़ती तो इस तरह से हार का मुंह नहीं देखना पड़ता.
इंडिया गठबंधन के सहयोगी दल शिव सेना के नेता संजय राऊत ने कांग्रेस को महाराष्ट्र चुनाव को लेकर सीख भी दे डाली और कहा कि उसने जो गलती हरियाणा में की है, वह गलती महाराष्ट्र में नहीं करे. बता दें कि अब हरिणाम और जम्मू कश्मीर चुनाव के बाद झारखंड और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने हैं और दोनों ही राज्यों में लोकसभा चुनाव कांग्रेस ने घटक दलों के साथ मिलकर लड़ा था.
महाराष्ट्र में कांग्रेस का शिवसेना (उद्धव गुट) और एनसीपी ( शरद पवार) के साथ गठबंधन है और झारखंड में हेमंत सोरेन की पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ मिलकर कांग्रेस चुनाव लड़ रही है. हालांकि अभी तक सीटों के बंटवारे पर कोई फैसला नहीं हुआ है.सीटों के बंटवारे को लेकर इन पार्टियों में बातचीत चल रही है.
मध्य प्रदेश और राजस्थान से नहीं सीखी कांग्रेस
बता दें कि हरियाणा की तरह, कांग्रेस ने लोकसभा चुनावों के दौरान महाराष्ट्र में भी बेहतरीन प्रदर्शन किया और 17 में से 13 सीटों पर जीत हासिल की थी. हालांकि, हरियाणा के नतीजों के बाद, कांग्रेस महाराष्ट्र को हल्के में नहीं ले सकती. कांग्रेस के लिए सबसे अच्छा यही है कि वह हरियाणा की गलती से कुछ सबक सीखे. हालांकि, यह कहना आसान है, करना मुश्किल.
अगर कांग्रेस ने पिछले साल मध्य प्रदेश और राजस्थान विधानसभा चुनावों में अपने प्रदर्शन से कुछ सीखा होता, तो वह हरियाणा की त्रासदी को टाल सकती थी. क्या कांग्रेस हरियाणा की गलती को महाराष्ट्र में सुधारने की कोशिश करेगी? आइए जानते हैं कि कांग्रेस महाराष्ट्र में क्या ऐसी रणनीति बना सकती है, जिससे उसे अच्छा रिजल्ट मिले.
कमलनाथ और हुड्डा ने बन जाएं नाना पटोले
महाराष्ट्र में कांग्रेस को नाना पटोले पर लगाम लगाने की जरूरत है जैसे पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को मध्य प्रदेश में खुली छूट दी गई थी और वो टिकट वितरण से लेकर गठबंधन बनाने या न बनाने तक के सभी फैसले ले रहे थे. उसी तरह हरियाणा में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा हरियाणा में फैसले ले रहे थे. मध्य प्रदेश में कमलनाथ और हरियाणा में भूपेंद्र सिंहु हुड्डा के कारण पार्टी नेताओं में असंतोष पैदा हुआ और जमकर गुटबाजी हुई और इसका नतीजा सभी के सामने है. वैसे में महाराष्ट्र में कांग्रेस नेतृत्व महाराष्ट्र में अपने राज्य प्रमुख नाना पटोले को नियंत्रण में रखकर बेहतर प्रदर्शन कर सकता है. पटोले और उनके कुछ वफादार लगातार यह कह रहे हैं कि चुनावों के बाद मुख्यमंत्री का पद कांग्रेस को मिलना चाहिए. यह शिवसेना को अलग-थलग कर सकता है, जिसने 2019 से 2022 तक गठबंधन का नेतृत्व किया था.
सीएम फेस-सीटों के बंटवारे पर अहम फैसला
शिवसेना (यूबीटी) के नेता उद्धव ठाकरे चुनाव से पहले सीएम पद का चेहरा घोषित करने की मांग कर रहे हैं, लेकिन कांग्रेस इसे नकार रही है. वहीं सीटों के बंटवारे पर भी खींचतान मची है. हरियाणा में लोकसभा चुनाव साथ लड़ने के बावजूद कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में गठबंधन के लिए आप के अनुरोध को स्वीकार नहीं किया. नतीजतन, आप ने 87 सीटों पर चुनाव लड़ा और 1.80 प्रतिशत वोट हासिल किए. हालांकि कांग्रेस महाराष्ट्र में एनसीपी (शरद पवार) और शिवसेना (यूबीटी) के साथ गठबंधन में है, लेकिन उसे वंचित बहुजन अघाड़ी (वीबीए) या समाजवादी पार्टी जैसी कुछ और छोटी पार्टियों को एमवीए (महा विकास अघाड़ी) में लाने के बारे में गंभीरता से सोचने की जरूरत है. वंचित बहुजन अघाड़ी अब तक 20 सीटों पर उम्मीदवारों के नामों का ऐलान कर चुका है. करीबी मुकाबले की स्थिति में, किसी का थोड़ा सा समर्थन भी बड़ा अंतर पैदा कर सकता है.
बागियों पर लगाम की जरूरत
हरियाणा में टिकट वितरण में गड़बड़ी के बाद जमकर घमासान मचा था. टिकट वितरण में मुख्य रूप से हुड्डा ने अहम भूमिका निभाई थी. उन्होंने अपने वफादारों को बढ़ावा दिया. नतीजतन, लगभग हर दूसरी सीट पर कांग्रेस के बागी निर्दलीय के रूप में चुनाव मैदान में उतरे. कांग्रेस के बागियों ने कम से कम 16 सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों की हार में बड़ी भूमिका निभाई है. अगर इनमें से कुछ बागियों को समझने में सफल रहती तो शायद ये रिजल्ट नहिं होते. हरियाणा से सबक लेते हुए, कांग्रेस को महाराष्ट्र में इस तरह की स्थिति से बचना चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि टिकट वितरण अधिक अपारदर्शी और निष्पक्ष हो.
हर जाति पर फोकस, उम्मीदवारों की जल्द घोषणा
हरियाणा में कांग्रेस ने बहुमत हासिल करने के लिए मुख्य रूप से जाट और दलितों के वोटों पर निर्भर कर रही थी और इससे वह दूसरी जातियों से कट गयी. महाराष्ट्र में कांग्रेस को संख्यात्मक रूप से कम जाति समूहों या समुदायों की अनदेखी नहीं करनी चाहिए. मराठों, ब्राह्मणों, मुसलमानों या दलितों जैसे प्रमुख समूहों के बड़े समर्थन के साथ-साथ उनका समर्थन पाने के लिए हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए और जल्द से जल्द सीट बंटवारे को अंतिम रूप देना चाहिए, ताकि उम्मीदवार अधिक समय चुनाव प्रचार में दे सकें.