हरियाणा में सत्ता की बुलंदी पर पहुंचे क्षेत्रीय दल, कैसे कायम नहीं रख सके अपना वजूद?

हरियाणा विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला माना जा रहा तो इनेलो और जेजेपी जैसे क्षेत्रीय दल अपने सियासी वजूद को बचाए रखने की जंग लड़ रहे हैं. एक समय प्रदेश की सियासत इनेलो की इर्द-गिर्द सिमटी ही नहीं बल्कि सत्ता पर भी कई बार काबिज रही है. हरियाणा में सत्ता की बुलंदी तक पहुंची इनेलो ही नहीं 2019 में किंगमेकर बनने वाली जेजेपी के लिए 2024 का विधानसभा चुनाव करो या मरो वाला बन गया है. यही वजह है कि इनेलो ने बसपा और जेजेपी ने आसपा जैसे दलित आधार वाले दलों के साथ गठबंधन कर रखा है.
पंजाब से अलग हरियाणा राज्य बनने के बाद से ही क्षेत्रीय बनते और गुमनाम होते रहे हैं. चौधरी देवीलाल के द्वारा गठित इनेलो ही नहीं पूर्व मुख्यमंत्री राव बीरेंद्र सिंह ने विशाल हरियाणा पार्टी (विहपा) , चौधरी भजनलाल की हरियाणा जनहित कांग्रेस (हजकां) और चौधरी बंसी लाल की हरियाणा विकास पार्टी (हविपा) के नाम से पार्टी बनाई और सत्ता के शिखर तक पहुंची. इनेलो अपने वजूद बचाने की जंग लड़ रही है तो विहपा, हजकां और हविपा जैसे दल इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुके हैं.
हरियाणा में राव बीरेंद्र ने पहली पार्टी बनाई
हरियाणा का गठन 1967 में हुआ और एक साल के भीतर ही नए राजनीतिक दल का उदय हो गया. 1967 में राव बीरेंद्र सिंह कांग्रेस से विधायक चुने गए थे, लेकिन सीएम न बनाए जाने से नाराज थे. इसके बाद कांग्रेस से अलग होकर उन्होंने विशाल हरियाणा पार्टी के नाम से 1968 में क्षेत्रीय दल का गठन किया. हरियाणा में साल 1968 में हुए विधानसभा चुनाव में राव बीरेंद्र सिंह ने विशाल हरियाणा पार्टी के उम्मीदवार 39 सीट पर उतारे. इनमें से 12 सीट पर उसे जीत मिली और पार्टी को 14.86 फीसदी वोट मिले. इस तरह मुख्यमंत्री बने. इसके बाद 1971 में राव बीरेंद्र विशाल हरियाणा पार्टी से महेंद्रगढ़ लोकसभा का चुनाव जीते.
कांग्रेस में कर दिया विलय
साल 1972 के आम चुनाव में 15 सीटों पर लड़े और 3 पर जीत दर्ज की. साल 1977 में भी इसी पार्टी से अटेली से विधायक बने, लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आग्रह पर 23 सितंबर 1978 को उन्होंने अपनी पार्टी का कांग्रेस (आई) में विलय कर दिया. कांग्रेस से विधायक और सांसद चुने जाते रहे हैं. राव बीरेंद्र की सियासी विरासत उनके बेटे राव इंद्रजीत संभाल रहे हैं. पहले कांग्रेस से और अब बीजेपी से सांसद हैं. मनमोहन सरकार के बाद अब मोदी सरकार में मंत्री हैं. 2014 में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी ज्वाइन की थी और इस बार विधानसभा चुनाव में उनकी बेटी आरती राव को अटेली सीट से बीजेपी ने टिकट दिया है.
चौधरी देवीलाल ने बनाई इनेलो
पूर्व उप प्रधानमंत्री देवीलाल ने अपनी सियासी पारी का आगाज कांग्रेस से किया, लेकिन उसके बाद जनता पार्टी और जनता दल के साथ हो गए. देवीलाल ने हरियाणा के सीएम से देश के उपप्रधानमंत्री तक का सफर तय किया. देवीलाल की सियासी विरासत उनके बेटे ओम प्रकाश चौटाला ने संभाली और हरियाणा में अपना सियासी दबदबा बनाए रखने में कामयाब रहे. देवीलाल ने 1996 में हरियाणा लोकदल के रूप में पहले पार्टी बनाई और उसके बाद से 1997 में इंडियन नेशनल लोकदल का नाम दे दिया. इनेलो की कमान ओम प्रकाश चौटाला के हाथों में है. इनेलो बनने के बाद ओम प्रकाश चौटाला दो बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने.
इनेलो बसपा के साथ मैदान में उतरी
हरियाणा की सियासत में लंबे समय तक कांग्रेस और इनेलो के बीच ही मुकाबला होता रहा. इनेलो के अध्यक्ष भले ही ओम प्रकाश चौटाला हों, लेकिन सियासी काम उनके बेटे अभय चौटाला ही संभाल रहे हैं. इसके चलते ही चौटाला परिवार में सियासी मनमुटाव पैदा हुआ. साल 2018 में इनेलो दो हिस्सों में बंट गई. ओम प्रकाश चौटाला के बेटे अजय चौटाला ने जेजेपी के नाम से नए दल का गठन कर लिया है. 2019 के विधानसभा चुनाव में इनेलो को सिर्फ एक सीट ही मिल सकी और वोट शेयर भी गिरकर 1.72 फीसदी पर पहुंच गया. 2024 के विधानसभा चुनाव में इनेलो का प्रदर्शन नहीं सुधरा तो क्षेत्रीय दल की मान्यता खत्म होने के साथ ही चश्मे का चुनाव चिह्न भी छिन जाएगा. इसलिए इनेलो बसपा के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरी है ताकि दलित-जाट समीकरण के साथ अपने सियासी वजूद को बचाए रखा जा सके.
बंसीलाल ने बनाई हरियाणा विकास पार्टी
हरियाणा में कांग्रेस का चेहरा रहे चौधरी बंसीलाल ने चार बार मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली. कांग्रेस ने साल 1991 में चौधरी बंसीलाल को पार्टी से बाहर निकाल दिया तो उन्होंने अपने समर्थकों के साथ मिलकर हरियाणा विकास पार्टी का गठन किया. 1996 में विधानसभा चुनाव में बंसीलाल की पार्टी ने 33 सीटें जीतकर कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया. चौधरी बंसीलाल हरियाणा की सत्ता पर बीजेपी के समर्थन से काबिज हुए, लेकिन 1999 में शराबबंदी पर मतभेदों के चलते बीजेपी से गठबंधन टूट गया. इसके बाद सरकार गिर गई.
हरियाणा विकास पार्टी का कांग्रेस में विलय
बंसीलाल का स्वास्थ्य खराब रहने लगा तो आठ साल बाद 2004 में उन्होंने हरियाणा विकास पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया. बंसीलाल की विरासत उनकी बहू किरण चौधरी संभाल रही हैं और अब उनकी बेटी श्रुति चौधरी चुनाव में उतरी हैं. ऐसे में बंसीलाल के पोते अनिरुद्ध ने भी कदम रख दिया है और कांग्रेस के टिकट पर तोशाम सीट से मैदान में उतरे हैं. इसके चलते अब बंसीलाल के सियासी वारिस की लड़ाई तोशाम का चुनाव बन गया है.
भजनलाल की हरियाणा जनहित कांग्रेस
कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे चौधरी भजनलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे. 2005 में कांग्रेस को हरियाणा की सत्ता में वापसी कराने वाले भजनलाल की जगह भूपेंद्र सिंह हुड्डा को मुख्यमंत्री बनाया गया था. इसके चलते भजनलाल ने नाराज होकर कांग्रेस छोड़ दी और उन्होंने साल 2007 में हरियाणा जनहित कांग्रेस नाम से नई पार्टी का गठन करने का काम किया. 2009 के विधानसभा चुनाव में भजनलाल की हरियाणा जनहित कांग्रेस के छह विधायक चुने गए. भजनलाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई भी विधायक बने थे, लेकिन उनकी पार्टी के चार विधायकों ने कांग्रेस का दामन थाम लिया.
2014 के विधानसभा चुनाव में कुलदीप बिश्नोई ने अकेले चुनाव लड़ा, लेकिन बहुत बड़ा करिश्मा नहीं कर सके. इसके बाद साल 2016 में कुलदीप बिश्नोई ने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया. इसके बाद 2019 में कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने, लेकिन 2023 में बीजेपी का दामन थाम लिया. कुलदीप बिश्नोई के बेटे भव्य बिश्नोई को बीजेपी ने आदमपुर सीट से एक बार फिर उतारा है. भजनलाल के दूसरे बेटे चंद्रमोहन को कांग्रेस ने पंचकुला से टिकट दिया है.
जेजेपी के लिए सियासी वजूद का खतरा
देवीलाल के द्वारा गठित इनेलो 2018 में ओम प्रकाश चौटाला के दो बेटे के बीच बंट गई. अजय चौटाला ने अपने बेटे दुष्यंत चौटाला के साथ मिलकर जेजेपी नाम से अलग पार्टी बनाई. 2019 के विधानसभा चुनाव में जेजेपी के दस विधायक जीतने में कामयाब रहे, इसके चलते किंगमेकर बनकर उभरे. जेजेपी ने बीजेपी को समर्थन दिया और दुष्यंत चौटाला डिप्टी सीएम बने. जेजेपी सत्ता की धुरी बनी, लेकिन पांच सालों में जेजेपी के 10 में से सात विधायकों ने पार्टी छोड़ दी. इसमें कुछ कांग्रेस तो कुछ बीजेपी से टिकट लेकर चुनावी मैदान में हैं. जेजेपी के लिए यह चुनाव अपने सियासी वजूद को बचाए रखने का है, जिसके चलते दलित नेता चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी के साथ गठबंधन कर रखा है.

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