हरियाणा में BJP की सोशल इंजीनियरिंग तो कांग्रेस का घर-घर अभियान, जानें किसका क्या है प्लान
हरियाणा विधानसभा चुनाव की औपचारिक घोषणा नहीं हुई है, लेकिन सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है. लोकसभा चुनाव में बिगड़े सियासी समीकरण को बीजेपी दुरुस्त करने में जुट गई है और एक मजबूत सोशल इंजीनियरिंग के सहारे सत्ता की हैट्रिक लगाने की फिराक में है. कांग्रेस दस साल के बाद सत्ता में वापसी के लिए ने ‘हरियाणा मांगे हिसाब’ अभियान शुरू किया है, जिसके जरिए बीजेपी के खिलाफ माहौल बनाने का प्लान है. वहीं, इनेलो और बसपा ने मिलकर हरियाणा विधानसभा चुनाव में उतरने का फैसला किया है तो जेजेपी अपने सियासी वजूद को बचाए रखने की जद्दोजहद में जुट गई है.
लोकसभा चुनाव नतीजे के बाद से ही हरियाणा विधानसभा चुनाव की राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई. अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने हैं और राज्य की 90 विधानसभा सीटों को लेकर शह-मात का खेल शुरू हो गया है. बीजेपी लगातार तीसरी बार सत्ता में आने के लिए लोकसभा चुनाव से पहले ही अपने सीएम चेहरे को बदल दिया था. इसके बाद भी पांच सीटें बीजेपी को गंवानी पड़ गई. कांग्रेस के हौसले बुलंद है और लोकसभा के चुनाव से बने माहौल को बनाए रखने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है.
कांग्रेस का ‘हरियाणा मांगे हिसाब’ अभियान
लोकसभा चुनाव में मिली जीत से कांग्रेस के हौसले बुलंद है और अब विधानसभा चुनाव तक इसे बनाए रखने के मूड में है. कांग्रेस ने करनाल से ‘हरियाणा मांगे हिसाब अभियान’ शुरू किया है, जिसके जरिए पार्टी के कार्यकर्ता और नेता घर-घर जाकर बीजेपी की दस साल के सरकार के खिलाफ माहौल बनाने का काम करेंगे. कांग्रेस नेता दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि बीजेपी की सरकार रोजगार सृजन, कानून व्यवस्था बनाए रखने और किसानों की सुरक्षा समेत कई मोर्चों पर विफल रही है. ‘हरियाणा मांगे हिसाब अभियान’ के जरिए बीजेपी सरकार की विफलताओं को उजागर किया जाएगा. हमारे नेता और कार्यकर्ता राज्य के सभी 90 विधानसभा क्षेत्रों में घर-घर जाएंगे.
गांव-गांव जाकर मतदाताओं से सुझाव लेगी कांग्रेस
दीपेंद्र हुड्डा ने बताया कि अभियान को धार देने के लिए छोटी पदयात्रा, जनसभाएं, नुक्कड़ सभाएं, नगर फेरी समेत हर प्रकार से इसे संचालित किया जाएगा. कांग्रेस की तरफ से हर जिले में सुझाव वाहन जाएंगे और उसमें रखी सुझाव पेटी में हर वर्ग, हर व्यक्ति की आशाओं और उम्मीदों से जुड़े सुझाव लिए जाएंगे. कांग्रेस प्रभारी दीपक बाबरिया ने भूपेंद्र हुड्डा और उदयभान के नेतृत्व की तारीफ करते हुए कहा कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी की जात-पात की राजनीति को धराशायी कर दिया. 2024 चुनाव में प्रदेश की 36 बिरादरी ने एकजुट होकर कांग्रेस का साथ दिया और विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ‘भाजपा को एक धक्का और दो’ का नारा बुलंद करेगी.
कास्ट कॉम्बिनेशन पर बीजेपी का फोकस
बीजेपी ने लोकसभा चुनाव से पहले मनोहर लाल खट्टर की जगह नायब सिंह सैनी को सत्ता की कमान सौंप दिया था, लेकिन उसके बाद भी पांच संसदीय सीटों का नुकसान उसे उठाना पड़ा है. ऐसे में बीजेपी ने प्रदेश अध्यक्ष की बागडोर ब्राह्मण समुदाय से आने वाले मोहन लाल बडौली को सौंपी है. बीजेपी ने हरियाणा का प्रभारी जाट समुदाय से आने वाले सतीश पूनिया को बनाया तो सहप्रभारी का जिम्मा सुरेंद्र नागर को सौंपा है, जो गुर्जर समुदाय से आते हैं. इसके अलावा कांग्रेस की दिग्गज नेता रही किरण चौधरी को भी बीजेपी ने अपने साथ मिला लिया है, जो पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल की बहू हैं.
हरियाणा में बीजेपी अपने सियासी समीकरण को दुरुस्त कर मजबूती से कास्ट केमिस्ट्री के साथ विधानसभा चुनाव में उतरने का प्लान बनाया है. ऐसे में बीजेपी का शुरू से ही फोकस गैर-जाट वोटों पर रहा है, जिसके चलते ही 2014 से 2024 तक पंजाबी समाज से आने वाले मनोहर लाल खट्टर को सीएम बना रखा था. अब उन्हें हटाया तो ओबीसी में सैनी जाति से आने वाले नायब सिंह सैनी को सत्ता का ताज सौंपा है, जो विधानसभा की जंग को फतह करने के लिए ताबड़तोड़ बैटिंग शुरू कर दी है. देखना है कि बीजेपी गैर-जाट पॉलिटिक्स के जरिए सत्ता की हैट्रिक लगा पाएंगी?
छोटे दलों के सियासी वजूद का बना सवाल
हरियाणा में इनेलो अपने सियासी वजूद को बचाए रखने की जद्दोजहद कर रही है. ऐसे में बसपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का प्लान बनाया है. हरियाणा में 37 सीट पर बसपा चुनाव लड़ी और 53 सीट पर इनेलो अपने प्रत्याशी उतारेगी. मुख्यमंत्री पद का चेहरे अभय चौटाला हो बनाया है. इनेलो का आधार जाट वोटों पर है तो बसपा का दलित वोटों के बीच पकड़ है. इस तरह इनेलो-बसपा ने गठबंधन करके जाट-दलित केमिस्ट्री बनाने का दांव चला है. कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में जाट-दलित समीकरण के सहारे जीत दर्ज करने में सफल रही, जिस पर नजर बसपा और इनेलो की है.
दुष्यंत चौटाला के सामने सियासी वजूद को बचाने की चुनौती
इनेलो से बगावत कर अपनी पार्टी बनाने वाले अजय चौटाला और उनके बेटे दुष्यंत चौटाला के लिए भी यह चुनाव अपनी सियासी वजूद को बचाए रखने का है. जेजेपी 2019 में किंगमेकर बनकर उभरी थी, लेकिन बीजेपी सरकार को समर्थन देकर दुष्यंत चौटाला डिप्टी सीएम बन गए थे. ऐसे में लोकसभा चुनाव से पहले जेजेपी का बीजेपी के साथ गठबंधन टूट गया, उसके बाद दुष्यंत को चौटाला डिप्टी सीएम पद छोड़नी पड़ी. लोकसभा के चुनाव में जेजेपी को बुरी तरह से हार का मुंह देखना पड़ा, जिसके चलते तमाम नेता और विधायक पार्टी छोड़कर चले गए हैं. ऐसे में जेजेपी को अपने सियासी वजूद को बचाए रखने की चुनौती है?