1 मिनट के लिए 17 लाख….आखिर VFX किस चिड़िया का नाम है, जिस पर मेकर्स करोड़ों रुपए खर्च करते हैं
महिष्मती के बिना ‘बाहुबली, ‘किक’ में बिना ट्रेन ट्रैक पर चलने वाले सलमान और ‘भाग मिल्खा भाग’ में बिना क्राउड स्टेडियम में दौड़ने वाले फरहान अख्तर को देखकर क्या हमें वो मजा आ सकता था, जो हमें असल में इन फिल्मों को देखकर आया? जाहिर सी बात है, इस सवाल का जवाब होगा ‘बिलकुल भी नहीं’ और इन फिल्मों को शानदार बनाने में वीएफएक्स का बहुत बड़ा हाथ है. आजकल फिल्मों में वीएफएक्स टेक्नोलॉजी उतनी ही जरूरी हो गई है जितना एक समोसे में आलू और वड़ा पाव में पाव. हालांकि दोनों के बिना भी इन्हें खाया जा सकता है, लेकिन वो मजा आपको नहीं मिलेगा. तो आइए जान लेते हैं कि आखिरकार ये VFX क्या है और मेकर्स इस पर करोड़ो रुपये खर्च क्यों करते हैं?
प्रभास, अमिताभ बच्चन और दीपिका पादुकोण की फिल्म ‘कल्कि 2898 एडी’ ने बॉक्स ऑफिस पर धूम मचाई है. इस फिल्म ने महज 7 दिनों में 641 करोड़ का कलेक्शन किया है. एक्टर्स की एक्टिंग से ज्यादा इस फिल्म में इस्तेमाल हुए VFX की लोग खूब तारीफ कर रहे हैं. इसे ‘फ्यूचर ऑफ इंडियन सिनेमा’ भी कहा जा रहा है. सूत्रों से मिली जानकारी की मुताबिक 600 करोड़ की इस फिल्म में 230 करोड़ वीएफएक्स पर खर्च हुए हैं. इससे पहले भी प्रभास की आदिपुरुष में 200 करोड़ रुपये वीएफएक्स और सीजीआई का बजट था.
जानें क्या होते हैं VFX
फिल्मों में ऐसी कई चीजें होती हैं, जिन्हें कैमरे से शूट करना नामुमकिन होता है. जैसे कि आमिर खान की ‘गुलाम’ का वो सीन जहां वो चलती ट्रेन की साथ दौड़ते हुए छलांग लगाते हैं, या फिर अजय देवगन की ‘मैदान’ का वो स्टेडियम जहां फाइनल मैच में हजारों लोगों की भीड़ नजर आ रही है. असली ट्रेन के सामने छलांग लगाना और उसे शूट करना जिस तरह से मुमकिन नहीं है. ठीक उसी तरह से दूसरे देश में शूटिंग के लिए हजारों की भीड़ इकट्ठा करना और उनके साथ शूट करना भी बहुत मुश्किल है और इस मुश्किल का समाधान है वीएफएक्स.
सस्ते से लेकर महंगे तक, हर वीडियो एडिटर सॉफ्टवेयर में एक क्रोमा का ऑप्शन रहता है. भद्दे से दिखने वाले हरे रंग के सामने वीडियो शूट करने के बाद हम वीडियो एडिटर सॉफ्टवेयर में क्रोमा का इस्तेमाल करते हुए वो हरा रंग पूरी तरह से हटा सकते हैं और फिर उस हरे रंग की जगह पर पेरिस से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक दुनिया का कोई भी देश आसानी से दिखा सकते हैं. जरूरी नहीं कि ये शूट हरे रंग के सामने ही किया जाए, शर्त सिर्फ ये है कि आप ऐसे रंग की बैकग्राउंड के सामने शूट करें, जो रंग आपके कपड़ों में नहीं है. वरना बैकग्राउंड गायब करते हुए आप खुद भी गायब हो जाओगे.
VFX में कंप्यूटर ग्राफिक्स का इस्तेमाल करते हुए ग्रैंड सेट, आसमान, समंदर, भीड़, रोबोट, किंग कॉन्ग जैसे बड़े जानवर, या फिर इंसानों से 4 या पांच गुना लंबा दानव जैसी कई चीजें आसानी से बनाई जा सकती हैं. ये देखने में बिलकुल असली लगती हैं और फिर इन्हें फिल्मों में इस तरह से शामिल किया जाता है, जैसे कि वो फिल्म का ही एक हिस्सा हों और ये कमाल कर दिखाते हैं वीएफएक्स आर्टिस्ट. एनीमेशन, कंप्यूटर ग्राफिक्स और विजुअल इफेक्ट्स में स्पेशलाइजेशन करने के बाद इन्हें वीएफएक्स स्टूडियो में काम करने का मौका मिलता है. लेकिन अपनी आर्ट से फिल्म का पूरा चेहरा बदलने वाले इन कलाकारों से हमारी कभी मुलाकात नहीं होती.
चंदू चैंपियन में भी हुआ था वीएफएक्स का इस्तेमाल
हाल ही में कार्तिक आर्यन की फिल्म ‘चंदू चैंपियन’ पर काम करने वाली रेड चिलीज एंटरटेनमेंट के वीएफएक्स टीम का हिस्सा रहे देव ठाकुर ने इस बारे में बात करते हुए कहा,”अगर लोग ये कह दें कि हमें पता ही नहीं चला कि फिल्म में वीएफएक्स का इस्तेमाल हुआ है, तो वो हमारे लिए सबसे बड़ी शाबासी होती है. हालांकि अब ऑडियंस इतनी ज्यादा होशियार हो गई है कि उन्हें पता चल जाता है कि कहां वीएफएक्स इस्तेमाल किए गए हैं. लेकिन उससे वो बिना डिस्टर्ब हुए फिल्म एन्जॉय कर पाएं यानी फिल्म में वीएफएक्स का सही इस्तेमाल हुआ है.”
आगे देव ने कहा,”चंदू चैंपियन में 990 से ज्यादा वीएफएक्स शॉट का इस्तेमाल किया गया है. कश्मीर के एक छोटे शॉट में भी 11172 फ्रेम्स शामिल थे. फिल्म में नजर आने वाली ट्रेन का इंजन, एयरपोर्ट, बॉक्सिंग स्टेडियम, मैच का क्राउड सब वीएफएक्स का कमाल है.”
बढ़ता जा रहा है वीएफएक्स का बजट
महंगे हैं वीएफएक्स के सॉफ्टवेयर
विजुअल इफेक्ट्स में जितनी एडवांस टेक्नोलॉजी होती है उतने ही महंगे सॉफ्टवेयर की कीमत होती है. फिल्मों में इस्तेमाल किए जाने वाले VFX की कीमत कम से कम 1000 डॉलर से 2000 डॉलर यानी 83,000 हजार से 1 लाख 66 हजार पर मिनट होती है. और ये कीमत 20,000 डॉलर से 100,000 डॉलर यानी 17 लाख से 83 लाख पर मिनट तक बढ़ सकती है. वीएफएक्स का बजट फिल्म के हर शॉट में इस्तेमाल होने वाले फ्रेम्स पर निर्भर होता है और यही वजह है इस पर मेकर्स करोड़ों रुपये खर्च करते हैं.