150 देशों में मैरिटल रेप अपराध, भारत में क्यों है सप्तपदी का विशेष महत्त्व?
1960 के दशक में जब देश में हर तरफ बस एक ही नारा लिखा दिखता था- बस दो या तीन बच्चे ही अच्छे! तब यह सवाल भी उठा था कि तीन ही क्यों? भारत में बच्चे ईश्वर या खुदा के मेहर बताए गए हैं. कुछ लोगों ने कहा, कि अपने देश में गरीबों की आबादी बहुत है और उनके पास मनोरंजन के साधन कोई नहीं इसलिए वे परिवार नियोजन को फॉलो नहीं कर सकते. यानी उस समय विवाहित जोड़ों के बीच यौन संबंध अनिवार्य तौर पर जायज था. पति या पत्नी को जब भी अवसर मिलता, वे यौन संबंध बनाते (सेक्स कर लेते). भले जोड़े में किसी की इच्छा हो अथवा नहीं. कोई भी व्यक्ति अथवा संस्था उनके इस संबंध को बाधित नहीं कर सकती थी. शायद उसके पहले भी नहीं. यह अलग बात है कि कई धार्मिक अनुष्ठान बीच-बीच में इन संबंधों पर अवरोध खड़ा करते रहते थे.
सावन और नवरात्रि में सेक्स नहीं
जैसे सावन में, नवरात्रि में, राम नवमी, कृष्ण जन्माष्टमी, शिवरात्रि, दीवाली तथा जिस दिन घर पर कोई पूजा हो ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य होता था. लेकिन ये सब अवरोध पुरुषों के लिए थे. एक तरह से यह मान कर चला जाता था, कि सेक्स पर स्त्री मौन रहेगी. जब भी उसका पति उसके साथ सहवास की इच्छा व्यक्त करेगा, पत्नी ना-नुकुर नहीं कर सकती. सेक्स को मनोरंजन का पर्याय समझा जाता था. नतीजा होता था, बच्चे दर बच्चे और स्त्री को उन्हें पालना ही होता था. उस समय तक सेक्स के लिए स्त्री की इच्छा कोई मायने नहीं रखती थी. यदि कहीं किसी स्त्री ने अपनी पहल पर पति से सेक्स की इच्छा व्यक्त की तो उसे बेहया और बेशरम कहा जाता था. यौन सुख स्त्री के लिए नहीं था. विवाह के बाद उसे हर हाल में अपना शरीर अपने पति के हवाले करना पड़ता था. मानो वह मनुष्य नहीं बस पति की दासी हो.
पति के सम्मुख समर्पण ही पत्नी का धर्म
सैकड़ों पुराने आख्यान और धार्मिक ग्रंथों की कहानियां यही बताती हैं कि पति की हर इच्छा के सम्मुख समर्पण करना ही स्त्री धर्म है. रामायण में सीता को पहले अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ा और बाद में स्वयं को महल छोड़ कर ऋषि वाल्मीकि के आश्रम में आ कर रहना पड़ा. वह भी तब जब वे गर्भवती थीं. महाभारत में द्रौपदी को अपने पांच पतियों को खुश रखना पड़ता था. इसके बाद अपने पति युधिष्ठिर द्वारा उसे जुये में दांव पर लगा दिया गया, और वह दांव हार गया. नतीजा यह हुआ कि द्रौपदी को दुशासन भरी सभा में घसीट कर लाया जहां उसकी साड़ी खींचने की कोशिश की गई. ऐसे में उसके पांचों पति निर्वीर्य-से बैठे रहे. द्रौपदी के सखा श्रीकृष्ण ने उसको इस शर्मनाक स्थिति से उबारा. ऐसे अनेक किस्सों से भरे हैं पौराणिक ग्रंथ. जहां स्त्री का अर्थ अपने पति के समक्ष दासी बन कर रहना है.
वीकर सेक्स बता कर स्त्री को गौण स्थान
स्त्री की यह स्थिति कोई भारत में नहीं बल्कि दुनिया के सभी कथित समाज में है. हर समाज में स्त्री पुरुष के समक्ष हीन है और इसीलिए उसे वीकर सेक्स कहा गया है. विवाह के बाद जब भी पति की इच्छा होती है, वह सेक्स करता है. लेकिन अब एक बड़ा वर्ग यह मानने लगा है कि यदि पत्नी की इच्छा नहीं हो और पुरुष उससे जबरदस्ती सेक्स करे तो यह यौन दुष्कर्म होगा. इसे मैरिटल रेप कहा जाएगा. अर्थात् सेक्स के लिए दोनों की सहमति अनिवार्य होनी चाहिए. इसे पत्नी के विरुद्ध घरेलू हिंसा तो माना गया है लेकिन भारतीय दंड संहिता ने इसे अपराध की श्रेणी में नहीं रखा है. लेकिन कर्नाटक और दिल्ली की हाई कोर्ट ने अपने हालिया फैसलों में मैरिटल रेप को अपराध माना है. इसे लेकर कई संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली कि मैरिटल रेप को अपराध घोषित किया जाए.
मैरिटल रेप अपराध नहीं!
परंतु तीन अक्तूबर को केंद्र सरकार ने निर्णय लिया कि वह इन याचिकाओं का विरोध करेगी. केंद्र की मोदी सरकार मैरिटल रेप को एक सामाजिक बुराई तो मानती है इसलिए उसका कहना है कि इसे कानून के जरिए नहीं रोका जा सकता. वह तो इस मामले को कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं मानती. उसका कहना है कि संसद ने पहले से ही विवाह के बाद शादीशुदा महिला की सुरक्षा के कई उपाय किए हुए हैं. पहले से ही आईपीसी (IPC) के सेक्शन 498 A के तहत शादीशुदा महिला से क्रूरता, महिला की अस्मिता का उल्लंघन करने के खिलाफ कानून और घरेलू हिंसा से बचाव 2005 बनाया हुआ है. सरकार का कहना है, पहले सभी स्टेकहोल्डर्स से चर्चा की जाए फिर आम सहमति से कोई कानून बने. हालांकि सरकार मानती है कि शादी के बाद परस्पर सेक्स की उम्मीद होती ही है.
Lady Chatterleys Lover से बवाल
अगर सरकार ऐसा मानती है तो फिर क्या पति को यह अधिकार मिल जाता है कि वह पत्नी के साथ जबरदस्ती करे. अगर नहीं तो कोई कानून बनना चाहिए. हालांकि स्त्री अधिकारों के लिए लड़ाई भी अरसे से लड़ी जा रही है, इसके बावजूद यूरोप और अमेरिका तक में विवाहित स्त्री के अधिकार पति की इच्छा पर निर्भर करते थे. उसे वहां भी पति की प्रताड़ना सहनी पड़ती थी. सेक्स के मामले में पति जो कहे वह करो. पति उम्र में बहुत अधिक है या वह सेक्स के मामले में नपुंसक है तो भी उसकी पत्नी खुल कर यह बात नहीं कह सकती थी और न इस आधार पर उसे तलाक मिलता था. लेडी चैटरलीज लवर (Lady Chatterleys Lover) जैसे उपन्यास इसी दौर की उपज हैं. डीएच लॉरेन्स के इस उपन्यास ने तहलका मचा दिया था. फ्रांस के कुलीन समाज (कॉन्स्टेंस) में स्त्री की स्थिति कितनी असहाय थी. उसे अपनी सेक्स-इच्छा की पूर्ति के लिए अपने ही नौकर का सहारा लेना पड़ता था.
अमेरिका ने भी पत्नी को पति की दासी माना
डीएच लॉरेन्स के इस उपन्यास की बिक्री पर रोक लगाई गई थी. दरअसल उस समय का यूरोपीय और अमेरिकी समाज यह स्वीकार नहीं कर पा रहा था, कि कोई कुलीन (कॉन्स्टेंस) स्त्री अपने युवा और आकर्षक पति से इतर ऐसे व्यक्ति से सेक्स संबंध बनाती है, जो मजदूर वर्ग से आता है. लेडी चैटरली का पति सर क्लिफोर्ड चैटरली एक युद्ध में लकवाग्रस्त हो गया था और उसके कमर के नीचे का हिस्सा बेकार हो गया था. 1928 में आए इस उपन्यास को संयुक्त राज्य अमेरिका (USA), कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान में अश्लीलता के लिए प्रतिबंधित भी किया गया था. जबकि इस उपन्यास का कथानक कोई अश्लील नहीं है. इस उपन्यास में बताया गया है कि मन और शरीर का मिलन ही पूर्णता है. मन के बिना शरीर क्रूर है और शरीर के बिना मन. किंतु उस समय का पुरुष समाज इसे स्वीकार नहीं कर सका.
गाइड ने एक नई दिशा दी
1964 में आई देवानंद और वहीदा रहमान की फिल्म गाइड का कथानक भी ऐसा ही है. नायिका रोजी (वहीदा रहमान) युवा है और उसका पति मार्को (किशोर साहू) वृद्ध. उसे पत्नी चाहिए थी इसलिए वह रोजी से शादी तो कर लेता है लेकिन उसके अंदर प्रेम नहीं है. नतीजा यह होता है कि रोजी अपने पुरातत्त्वविद पति के लिए गाइड का काम कर रहे राजू (देवानंद) से प्रेम करने लगती है. विवाहित स्त्री की पीड़ा पर बनी यह फिल्म हिंदी की क्लासिक फिल्मों में से एक है. स्त्री को उसका निजी कोना अलग दिलाने की व्यवस्था 1922 में सोवियत संघ ने की थी. वहां मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में रखा गया. इसके बाद 1932 में पोलैंड ने इसे अपराध माना. ब्रिटेन ने 1991 में और अमेरिका ने 1993 में मैरिटल रेप के विरुद्ध आपराधिक कानून बनाए.
भारत में इसके विरुद्ध कानून बने
आज की तारीख में 150 देशों में मैरिटल रेप को अपराध घोषित किया जा चुका है. कुल 34 देशों में इसे अपराध की श्रेणी में नहीं रखा गया है. ऐसे देशों में भारत भी है. भारत में हिंदू विवाह में भांवरों या सप्तपदी का विशेष महत्त्व है. अग्नि के समक्ष पति-पत्नी परस्पर सात वचन बोलते हैं. तथा अग्नि कुंड के चारों ओर सात चक्कर लेते हैं. इन चक्करों को सप्तपदी कहा जाता है. पुरोहित हर चक्कर के साथ वचन (प्रतिज्ञा) बोलने को कहता है. इन सात फेरों को सात जन्म माना जाता है. यह वैदिक विवाह की परंपरा है. सप्तपदी के दौरान, वर-वधू पति-पत्नी के रिश्ते को मन, शरीर, और आत्मा से निभाने का वादा करते हैं. हिंदू विवाह कानून के मुताबिक, जहां सप्तपदी की रीति-रिवाज होती हैं, वहां विवाह तभी वैध माना जाता है, जब सातवां फेरा पूरा हो जाता है.
सप्तपदी के दौरान ये वचन
भारत में यह जो सप्तपदी की परंपरा है, इसमें पति-पत्नी को बराबर का स्थान है. भांवरों के समय पुरोहित कन्या की तरफ से वार से ये वचन लेता है-
1. तीर्थव्रतोद्यापन यज्ञकर्म मया सहैव प्रियवयं कुर्या:
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति वाक्यं प्रथमं कुमारी!!
( कभी तीर्थ यात्रा पर जाएं या कोई भी धार्मिक काम करें तो उसमें मैं भी साथ रहूँ. तथा उसी तरह मुझे अपने बाईं तरफ़ बिठाएँ, जैसे कि आज बैठाये हैं.)
पुज्यौ यथा स्वौ पितरौ ममापि तथेशभक्तो निजकर्म कुर्या:
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं द्वितीयम!!
(जैसे आप अपने माता-पिता का सम्मान करते हैं, उसी प्रकार आप मेरे माता-पिता का भी सम्मान करेंगे. मेरे परिवार की मर्यादा अनुसार धर्मानुष्ठान कर ईश्वर को मानते रहें तो मैं आपके वामांग आने को तैयार हूं.)
जीवनम अवस्थात्रये मम पालनां कुर्या:
वामांगंयामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं तृ्तीयं!!
(आप युवा, प्रौढ़ और वृद्धावस्था यानी जीवन भर मेरा ध्यान रखेंगें और मेरा पालन-पोषण करेंगे.)
कुटुम्बसंपालनसर्वकार्य कर्तु प्रतिज्ञां यदि कातं कुर्या:
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं चतुर्थं!!
(भविष्य में पूरे परिवार की समस्त आवश्यकताओं को पूरा करने का काम आपका होगा. आप इस जिम्मेदारी को पूरा करने की प्रतिज्ञा करें)
स्वसद्यकार्ये व्यवहारकर्मण्ये व्यये मामापि मन्त्रयेथा
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: पंचमत्र कन्या!!
(किसी भी प्रकार के काम और लेन-देन आदि में खर्च करते समय आप मुझसे सलाह लेंगे.)
न मेपमानमं सविधे सखीनां द्यूतं न वा दुर्व्यसनं भंजश्चेत।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं च षष्ठम!!
(मैं अपनी सहेलियों के साथ बैठी हूं, तो आप वहां सबके सामने मेरा अपमान नहीं करेंगे. आप जुआ नहीं खेलेंगे)
परस्त्रियंमातूसमांसमीक्ष्य स्नेहंसदा चेन्मयि कान्त कूर्या।
वामांगमायामि तदा त्वदीयंब्रूतेवच: सप्तमत्र कन्या!!
(आप दूसरी स्त्रियों को आपनी माता के समान समझेंगें और पति-पत्नी के रूप में हमारा जो प्रेम संबंध है इसमें किसी और स्त्री को भागीदार नहीं बनाएंगें.)