2000 सिडनी ओलंपिक: कर्णम मल्लेश्वरी ने महिलाओं के लिए खोला था ओलंपिक का दरवाजा, जहां सब फेल हुए वहां उठाया मेडल का ‘भार’
पेरिस ओलंपिक के लिए भारत के कुल 118 एथलीट्स ने 16 खेलों के लिए क्वालिफाई किया है. इसमें 48 महिला एथलीट्स शामिल हैं. मनु भाकर, पीवी सिंधू, विनेश फोगट, निकहत जरीन और लवलीना बोरगोहेन, ये कुछ बड़े नाम हैं, जिनसे भारत को मेडल की उम्मीद है. आज जिस तरह से भारत की महिला एथलीट्स ने दुनिया भर में देश का नाम रौशन किया है और ओलंपिक के अलग-अलग खेलों में मेडल की दावेदारी ठोक रही हैं, कुछ समय पहले तक ये इतना आसान नहीं था. साल 2000 में सिडनी में इन महिला एथलीट्स के लिए पहली बार ओलंपिक का दरवाजा खुला था. इस साल कर्णम मल्लेश्वरी ने वेटलिफ्टिंग में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर एक नया इतिहास लिखा. वो ओलंपिक में मेडल जीतने वाली पहली महिला एथलीट बनी थीं. आज हम आपको इसी ओलंपिक की कहानी बताएंगे.
कर्णम मल्लेश्वरी कैसे बनीं प्रेरणा?
पिछले एक दशक में ओलंपिक खेलों में भारत की महिला खिलाड़ी देश का गर्व बनकर उभरी हैं. ओलंपिक के पिछले 3 एडिशन में भारत ने कुल 15 मेडल जीते हैं, जिसमें से 7 बार महिला एथलीट्स ने कमाल किया. लंदन ओलंपिक 2012 में सायना नेहवाल ने बैडमिंटन में पहली बार भारत को मेडल का स्वाद चखाया. वहीं मैरी कॉम ने बॉक्सिंग में बॉन्ज मेडल जीतकर देश का मान बढ़ाया था. इसके 4 साल बाद यानि रियो ओलंपिक में भारत को दो मेडल मिले और ये दोनों कमाल महिलाओं ने किया था.
कर्णम मल्लेश्वरी ओलंपिक मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला हैं.
पीवी सिंधू ने बैडमिंटन में जहां सिल्वर हासिल किया था, वहीं साक्षी मलिक ने रेसलिंग में ब्रॉन्ज मेडल जीती थीं. टोक्यो ओलंपिक 2020 में तो महिला एथलीट्स ने एक नया कीर्तिमान रच दिया था. देश को 7 में से 3 मेडल उन्होंने दिलाए, जो महिलाओं के लिए अब तक का सबसे शानदार प्रदर्शन था. ये सब कुछ संभव हुआ सिडनी ओलंपिक 2000 में कर्णम मल्लेश्वरी के मेडल के कारण. उनकी जीत से ना जाने कितनी लड़कियों ने प्रेरणा ली और ओलंपिक में देश का नाम रौशन किया. उन्होंने हाल ही में द हिंदू को दिए इंटरव्यू में इस बात की खुशी जताई थी कि उस मेडल के कारण कई एथलीट्स की प्रेरणा बन सकीं.
कर्णम मल्लेश्वरी- ‘द आयरन लेडी’
सिडनी ओलंपिक 2000 वैसे तो मेडल के नजरिए से कुछ खास नहीं रहा था. देश को केवल एक ही मेडल नसीब हुआ, लेकिन केवल एक ही मेडल इतिहास रचने के लिए काफी था. इस एडिशन में भारत के कुल 65 एथलीट्स ने 13 खेलों के लिए क्वालिफाई किया था. हालांकि, इनमें से केवल कर्णम मल्लेश्वरी ही कामयाब हो सकीं. बाकी सभी एथलीट्स के फेल हो जाने पर उन्होंने भारत के लिए मेडल जीतने का भार उठाया. वेटलिफ्टिंग में जीते इस ऐतिहासिक मेडल के कारण वो भारत में ‘द आयरन लेडी’ के नाम से मशहूर हो गई थीं. उस वक्त के प्रधानमंत्री अटल बिहार वायपेयी ने उन्हें इस मेडल के लिए बधाई दी और ‘भारत की बेटी’ बताया था. सिडनी में जहां ज्यादातर एथलीट्स शुरुआती राउंड में बाहर हो गए थे, वहां कर्णम मल्लेश्वरी मेडल जीतने में कामयाब रही थीं.
सिडनी में कैसे हुआ कमाल?
सिडनी ओलंपिक के दौरान ही पहली बार वुमंस वेटलिफ्टिंग कैटगरी को जोड़ा गया था. हालांकि, कर्णम पर सबकी नजरें तो थीं, लेकिन उन्हें जीत का दावेदार नहीं माना जा रहा था. इसके पीछे बड़ी वजह ये थी कि 1996 के बाद से वो वर्ल्ड चैंपियनशिप नहीं जीत सकी थीं. इसके अलावा उन्होंने खुद को 69 Kg की कैटगरी में शिफ्ट कर लिया था, जिसके तहत उन्होंने वर्ल्ड स्टेज पर बड़े टूर्नामेंट में कभी हिस्सा नहीं लिया था. कर्णम ने सभी को गलत साबित करते हुए ओलंपिक मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं.
उन्होंने हंगरी की इर्जसेबेत मार्कस और चीन की लिन वेनिंग को हराया. फाइनल में तीनों ने स्नैच कैटगरी में 110 Kg का भार उठाया. इसके बाद क्लीन और जर्क कैटगरी के दौरान वेनिंग ने पहले ही प्रयास में 132.5 kg का भार उठाकर लीड ले लिया था, जबकि कर्णम और मार्कस 125 Kg का भार उठा सकी थीं. दूसरे प्रयास में वेनिंग इस भार को नहीं बढ़ा सकीं. वहीं मार्कस ने 132.5 Kg के साथ बराबरी की और कर्णम ने 130 Kg उठाकर आस जगाई.
फाइनल में गोल्ड से चूकी कर्णम
फाइनल में गोल्ड मेडल के लिए मुकाबला रोमांचक हो चुका था. कर्णम की दोनों प्रतिद्वंद्वी कुल 242.5 Kg का भार उठाकर लीड कर रही थीं, जबकि वो 2.5 Kg से पीछे चल रही थीं. अब उन्हें सिल्वर पाने के लिए कम से कम 132.5 का भार उठाना था और गोल्ड के लिए 135 Kg. उन्होंने 130 Kg उठाकर सफलता हासिल कर ली थी और इसमें केवल 2.5 Kg का भार और बढ़ाना था. हालांकि, उनके कोच ने 7.5 Kg बढ़ाकर 137.5 Kg के लिए प्रयास करने की सलाह दी, ताकि वह आसानी से पहले स्थान पर आ सकें.
कर्णम प्रैक्टिस के दौरान ऐसा कर चुकी थीं, इसलिए उन्होंने कोच की बात मानी, लेकिन इसमें सफलता हासिल नहीं कर सकीं. उन्होंने भार उठाने में जल्दी कर दी और यह उनके घुटनों पर अटक गया, जिससे वह गिर गईं. हालांकि, वह गोल्ड जीतने से चूक गई, लेकिन ब्रॉन्ज उनके नाम हुआ और उन्होंने महिलाओं के लिए एक नया इतिहास लिखा.
मां का रहा अहम योगदान
कर्णम मल्लेश्वरी एक ऐसे परिवार से हैं, जिसका खेल से पुराना नाता रहा. उनके पिता कर्णम मनोहर एक फुटबॉल खिलाड़ी थे. वहीं उनकी 4 बहनें वेटलिफ्टिंग में थीं. हालांकि, कर्णम मल्लेश्वरी के इस ऐतिहासिक सफर में उनकी मां श्यामला का अहम योगदान रहा है. कर्णम मल्लेश्वरी जब 12 साल की थीं, तब उनकी कोच ने उन्हें शरीर से कमजोर बताकर वेटलिफ्टिंग के लिए अयोग्य बता दिया था. इसके बाद उनकी मां ने उन्हें इस खेल के लिए बढ़ावा दिया और उन्होंने आंध्रप्रदेश में कोच नीलमशेट्टी अपन्ना की निगरानी में ट्रेनिंग की शुरुआत की.
1990 रहा टर्निंग पॉइंट
साल 1990 मल्लेश्वरी के लिए टर्निंग पॉइंट साबित हुआ. उनकी बहन का नेशनल कैंप के लिए सेलेक्शन हुआ था. वहां वो भी एक विजिटर के तौर पर गई थीं. मल्लेश्वरी इस कैंप में हर प्रोसेस को गौर से देख रही थीं. इस चीज ने ओलंपिक और वर्ल्ड चैंपियन लियोनिड तारानेन्को का ध्यान उनकी ओर खींचा और उनका ट्रायल लिया. इससे वो काफी प्रभावित हुए और मल्लेश्वरी को बैंगलोर के स्पोर्ट्स इंस्टीट्यूट में ट्रेनिंग के लिए बुलाया. इसके बाद वो दिल्ली में स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया के नेशनल कैंप में चली आईं. इस साल उन्होंने जूनियर लेवल पर 9 नेशनल रिकॉर्ड्स तोड़ दिए थे.
दो बार बनीं वर्ल्ड चैंपियन
सिडनी ओलंपिक में मेडल जीतने से पहले कर्णम मल्लेश्वरी दो बार वर्ल्ड चैंपियन बन चुकी थीं. 1993 में उन्होंने पहली बार वर्ल्ड चैंपियनशिप में हिस्सा लिया, लेकिन उन्हें ब्रॉन्ज से संतोष करना पड़ा. अगले ही साल 1994 में उन्होंने गोल्ड मेडल जीता और वर्ल्ड चैंपियन बन गईं. इस साल एशियन गेम्स में भी उन्होंने सिल्वर मेडल अपने नाम किया. इसके बाद 1995 में वर्ल्ड चैंपियन के टाइटल को डिफेंड किया, हालांकि 1996 में इस प्रतियोगिता में उन्हें फिर से ब्रॉन्ज मेडल से संतोष करना पड़ा था. मल्लेश्वरी ने 1998 में एशियन गेम्स में सिल्वर मेडल जीता और दो साल बाद सिडनी में ऐतिहासिक ब्रॉन्ज मेडल हासिल किया.
कर्णम मल्लेश्वरी के अवॉर्ड्स
वेटलिफ्टिंग में कर्णम मल्लेश्वरी के अनमोल योगदान के लिए उन्हें 1994 में उन्हें अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था. वहीं 1999 में भारत सरकार ने पहले राजीव गांधी खेल रत्न और फिर पद्म श्री से सम्मानित किया.