2014 के बाद भारत में क्यों नहीं हो रही ग्रोथ? जयराम रमेश ने बताया ये कारण
देश के आर्थिक हालातों पर मोदी सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि 2014 के बाद भारत की इकोनॉमिक ग्रोथ सुस्त पड़ी है. इसके पीछे की तीन अहम वजहों को बताते हुए उन्होंने एक बयान जारी किया है. इसमें उन्होंने सरकार की अस्थिर नीतियों से लेकर ईडी-सीबीआई की जांच तक को जिम्मेदार ठहराया. जानें और क्या-क्या कहा उन्होंने…
कांग्रेस के मीडिया प्रभारी और राज्यसभा सदस्य जयराम रमेश ने एक लंबा वक्तव्य जारी किया है. इसमें उन्होंने कहा है कि सरकार की अस्थिर नीतियों, कुछ विशेष मित्र पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने की कोशिशों और ईडी, इनकम टैक्स एवं सीबीआई के रेड राज ने निवेश को कम किया है. यही वजह है कि 2014 के बाद से भारत तेजी से वृद्धि नहीं कर पा रहा है, क्योंकि निवेश की दर काफी सुस्त है.
जीडीपी और निवेश का कनेक्शन
जयराम रमेश ने जीडीपी के नीचे आने का सुस्त निवेश के साथ कनेक्शन भी समझाया. उनका कहना है कि कम निवेश मध्यम और दीर्घकालिक अवधि में जीडीपी की वृद्धि दर को नीचे खींचता है. इससे परिणामस्वरूप देश के अंदर श्रम और कंजप्शन ग्रोथ में गिरावट आती है. इसलिए देश में आर्थिक वृद्धि दर की रफ्तार सुस्त रही है.
जयराम रमेश ने कहा कि भारत में निजी घरेलू निवेश 2014 से सुस्त है. डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान यह GDP के 25-30% के रेंज में था. 2014 के बाद से ये GDP के 20-25% के रेंज में है.
FDI भी बना हुआ है स्थिर
जयराम रमेश का कहना है कि 2014 से देश में आने वाला सकल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Gross FDI)भी स्थिर बना हुआ है. यह कहानी का केवल एक हिस्सा भर है. साल 2016 से दुनिया भर की मल्टी नेशनल कंपनियां चीन से हटकर अन्य विकासशील देशों में निवेश करना चाह रही हैं. इस स्थिति में भारत एक बड़े और बढ़ते लेबर पूल के साथ सही समय पर बिल्कुल सही जगह पर था – लेकिन एफडीआई हासिल करने और मैन्यूफैक्चरिंग एवं एक्सपोर्ट ओरिएंटेड अर्थव्यवस्था बनने का यह अवसर बर्बाद कर दिया गया और इसका फायदा उठाने में बांग्लादेश और वियतनाम जैसे देश कामयाब रहे.
रेड राज नहीं करने दे रहा निवेश
जयराम रमेश ने सरकार की कॉरपोरेट को लेकर बनाई गई नीतियों पर भी हमला बोला. उन्होंने कहा कि कॉरपोरेट टैक्स में कटौती और पीएलआई जैसी रियायतें मौलिक रूप से मुक्त समाज, राजनीति और अर्थव्यवस्था की भरपाई नहीं कर सकती हैं. सरकार के नोटबंदी, मित्र पूंजीवाद और ईडी, सीबीआई एवं इनकम टैक्स के रेड राज से इकोनॉमी त्रस्त है. भारत को नीतियों में छोटे-मोटे फेरबदल की नहीं, बल्कि राजनीतिक अर्थव्यवस्था के लिए एक नए उदारता से भरे दृष्टिकोण की जरूरत है.