2022 की एक वो भी दिवाली थी… ऋषि सुनक के समय ब्रिटेन में क्यों आई ऐसी बदहाली?
25 अक्टूबर साल 2022 को जब ऋषि सुनक ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री पद की गद्दी संभाली थी, उससे दो दिन पहले हिंदुस्तान में दिवाली मनाई गई थी. इस दौरान ऋषि सुनक ने भी सोशल मीडिया पर दिवाली पर लक्ष्मी गणेश पूजा की तस्वीरें शेयर की थीं. इन तस्वीरों को देखकर पूरा हिंदुस्तान गर्व से फूले नहीं समा रहा था. ये गर्व होना स्वाभाविक भी था. बोरिस जॉनसन और लिज ट्रस के बाद ऋषि सुनक के हिस्से में जिस तरह से प्रधानमंत्री की कुर्सी आ गई थी, वह पल ऐतिहासिक था. एक भारतीय मूल के व्यक्ति को ब्रिटेन के राजघराने से लेकर अमेरिका के राष्ट्रपति तक से बधाइयां मिल रही थीं. ऋषि सुनक के बहाने भारतीय मूल के शख्स की यह विश्वस्तरीय स्वीकार्यरता बहुत अहम थी.
ऋषि सुनक ने अपने कार्यकाल में फौरी तौर पर ब्रिटेन की अस्थिरता को काफी हद तक संभालने का प्रयास किया. लेकिन पिछले एक दशक में ब्रिटेन की इकोनोमी धीरे-धीरे इतनी चरमरा गई थी कि ऋषि सुनक के लिए यह एक बड़े टास्क की तरह था. हालात इतने उलट हो गए थे कि उनको संभालना और बिखरी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना बहुत आसान नहीं था. लिहाजा पिछले 18 महीने की उनकी सरकार के दौरान विरोधी पार्टियों में खास तौर पर लेबर पार्टी को मुखर होने का पूरा मौका मिला. बमुश्किल इस साल फरवरी में यहां जीडीपी में 0.1फीसदी का उछाल दर्ज हुआ. अंदाजा लगाया जा सकता है कि ब्रिटेन किस मंदी के दौर से गुजर रहा था.
किन-किन मोर्चे पर सुनक को मिली विफलता?
ऋषि सुनक की हार के पीछे राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा, अर्थव्यवस्था की गिरावट और आसमान छूती महंगाई सबसे ऊपर है. यहां तक कि इमिग्रेशन, अवैध घुसपैठ, शिक्षा, रक्षा, अपराध और आतंकवाद पर लगाम लगाने में भी कमजोर साबित हुए. पिछले चार दशक में ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था सबसे खराब दौर से गुजर रही थी. ऐसा आकलन किया गया कि ब्रिटिश अर्थव्यवस्था पिछले एक दशक में ठहर ही नहीं गई बल्कि धीमी भी हो गई है. साल 2007 से 2023 तक यहां प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद में केवल 4.3 फीसदी की वृद्धि दर्ज हुई.
ब्रिटेन में सबसे खराब स्वास्थ्य सेवा का दौर
कंजरवेटिव पार्टी ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा पर काफी जोर दिया था, यह कोरोना काल के बाद बदले हालात के चलते सही फैसला था लेकिन इसे क्रियांवित करने में सरकार को सफलता नहीं मिल सकी. ब्रिटेन में डॉक्टरों, नर्सों और चिकित्सा जगत से जुड़े अन्य पेशेवरों का भरपूर समर्थन नहीं मिलने से ऋषि सुनक को अपेक्षित सफलता नहीं मिली. जरूरी फंडिंग की कमी के चलते जनता तक स्कीम पहुंची ही नहीं. एक रिपोर्ट के मुताबिक कंजर्वेटिव पार्टी के कार्यकाल में ब्रिटेन में आम लोगों को गंभीर परिस्थितियों में भी चिकित्सा सहायता नहीं मिल पा रही थी. मरीजों को लंबी प्रतिक्षा सूची में रखा जा रहा था. इससे लोगों में नाराजगी बढ़ती गई.
कीमतों में उछाल से ब्रिटेन के लोग बदहाल
इन सब पर ब्रेक्सिट समझौते का भी प्रभाव था. तो इमिग्रेशन की नीति भी हार की एक प्रमुख वजह बनी. सुनक सरकार ने ब्रिटेन में अवैध रूप से प्रवेश करने वालों पर नकेल कसने का वादा तो किया था, लेकिन यह वादा जमीन पर नहीं देखा गया. जबकि सरकार ने इस योजना पर 300 मिलियन पाउंड से अधिक खर्च किए थे. इसके अलावा जीवन यापन से जुड़ी चीजों की बढ़ती कीमतों ने आम लोग क्या अमीरों को भी संकट में डाल दिया. लोग खर्चे में कटौती करने लगे थे. किराये की कीमतों में भारी वृद्धि ने भी कंजर्वेटिव पार्टी की सरकार को अलोकप्रिय बना दिया.
जॉनसन और लिज ट्रस भी हार के जिम्मेदार
हालांकि पूरे मामले में केवल ऋषि सुनक को ही जिम्मेदार ठहराना ठीक नहीं. सुनक से पहले बोरिस जॉनसन और लिज ट्रस को भी उतना ही जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. कंजरवेटिव पार्टी की बदहाली में इन तीनों नेताओं को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए. कोविड से पहले जुलाई 2019 में बोरिस जॉनसन को टोरी नेता और प्रधानमंत्री के रूप में चुना गया था. लेकिन वो अपने मंत्रियों को एकजुट रख पाने में सफल नहीं हो सके. कई घोटाले को लेकर उन पर सवाल उठे और पार्टी में ही विद्रोह देखा गया. नतीजा ये हुआ कि जॉनसन ने इस्तीफा दे दिया. इसके बाद लिज ट्रस ने गद्दी संभाली. लेकिन अर्थव्यवस्था संभालने में नाकाम रहीं. उनकी कार्यशैली पर सवाल उठे. जिसके बाद ऋषि सुनक को गद्दी संभालने का मौका मिला था.