4 साल में 7 जज राजनीति में आए… कुछ टिकट नहीं पाए, कुछ को पद नहीं मिला

मध्य प्रदेश उच्च न्यायलय के पूर्व जज रोहित आर्य ने भारतीय जनता का दामन थाम लिया है. रोहित 3 महीने पहले ही न्यायिक सेवा से रिटायर हुए थे. पिछले 4 सालों से जजों के राजनीति में आने का ट्रेंड में तेजी से बढ़ोतरी हुई है. मौजूद आंकड़ों के मुताबिक 2020 से अब तक 7 जज पॉलिटिक्स में इंटर कर चुके हैं. हालांकि, इन 7 में से 3 जज राजनीतिक की रपटीली राहों पर फिट नहीं हो पाए. एक जज को छोड़ दिया जाए तो बाकी के जजों को भी कोई बड़ा सियासी पद नहीं मिला.
4 साल में 7 जज राजनीति में आए
साल 2020 में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई राज्यसभा के जरिए राजनीति में आए. इसके बाद पिछले 4 साल में अब तक 7 जज राजनीति में आ चुके हैं. दिलचस्प बात है कि 7 में से सिर्फ 1 जज को बड़ा पद मिला है.
1. रंजन गोगोई- असम के रहने वाले रंजन गोगोई भारत के पूर्व मुख्य न्यायधीश रह चुके हैं. उन्होंने अयोध्या विवाद जैसे कई बड़े मामलों में सुनवाई की. गोगोई अक्टूबर 2018 से नवंबर 2019 तक भारत के चीफ जस्टिस रहे. गोगोई 2020 में राष्ट्रपति कोटे से राज्यसभा के लिए चुने गए.
गोगोई पहले चीफ जस्टिस थे, जो राज्यसभा के लिए मनोनित किए गए थे. राज्यसभा में उनके मनोयन पर कई सवाल भी उठे थे. हालांकि, गोगोई कभी भी इस पर कुछ नहीं बोले.
2. एसके कृष्णन- 2021 में मद्रास हाईकोर्ट के जज रहे एसके कृष्णन ने डीएमके का दामन थाम लिया. डीएमके उस वक्त तमिलनाडु की विपक्ष में थी. इसी साल हुए चुनाव में डीएमके सत्ता में आई, जिसके बाद कृष्णन को कोई बड़ा पद मिलने की चर्चा शुरू हुई. हालांकि, अब तक कृष्णन को कोई भी बड़ा पद नहीं मिला है.
एसके कृष्णन जज रहते कई हाई-प्रोफाइल मामलों में फैसला दे चुके हैं. वे अपने भाषणों और तर्कों की वजह से तमिल की राजनीति में भी काफी पॉपुलर हैं.,
3. अब्दुल नजीर- 2023 में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज अब्दुल नजीर को केंद्र सरकार ने आंध्र प्रदेश का राज्यपाल मनोनीत कियाा. नजीर तब से अब तक आंध्र के राज्यपाल हैं. नजीर 2017 से 2023 तक सुप्रीम कोर्ट के जज रहे हैं. इससे पहले वे 2003 से 2017 तक कर्नाटक हाईकोर्ट के जज थे.
सुप्रीम कोर्ट में जज रहते हुए नजीर अयोध्या विवाद, तीन तालाक जैसे कई मामलों की सुनवाई कर चुके हैं. नजीर के राज्यपाल बनने पर सवाल भी उठे. हालांकि, केंद्र का कहना था कि पहले भी कई जज राज्यपाल के पद पर रह चुके हैं. इनमें रंगनाथ मिश्र और पी सदाशिवम का नाम शामिल हैं.
4. सुभाष राठौड- साल 2023 में कर्नाटक के निचली अदालत में जज रहे सुभाष राठौड ने जनता दल सेक्युलर का दामन थाम लिया. राठौड को पार्टी में शामिल कराने के बाद जेडीएस ने उन्हें गुलबर्ग के चिट्टापुर सीट से उम्मीदवार बना दिया. यह सीट कांग्रेस का गढ़ माना जाता है.
राठौड ने जीत के लिए पूरी ताकत झोंक दी. हालांकि, उन्हें सफलता नहीं मिली. 2023 के चुनाव में राठौड की इस सीट पर जमानत जब्त हो गई. चुनाव आयोग के मुताबिक उन्हें सिर्फ 643 वोट मिले.
5. अभिजीत गंगोपाध्याय- कोलकाता हाईकोर्ट के जज रहे अभिजीत गंगोपाध्याय इसी साल लोकसभा चुनाव से पहले राजनीति में आए. उन्होंने बीजेपी से अपनी राजनीति शुरू की है. जज रहते गंगोपाध्याय शिक्षक भर्ती समेत कई हाई-प्रोफाइल मामलों की सुनवाई कर चुके हैं.
अभिजीत को बीजेपी ने बंगाल की सबसे सुरक्षित सीट तमलुक से उम्मीदवार बनाया. तृणमूल के देबांशु उनके खिलाफ मैदान में थे. करीबी मुकाबले में अभिजीत चुनाव जीत गए और संसद पहुंच गए.
6. रोहित आर्या- मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के पूर्व जज रोहित आर्या हाल ही में बीजेपी में शामिल हुए हैं. आर्या को कौन सा पद मिलेगा, इसको लेकर अभी सस्पेंस बरकार है. मध्य प्रदेश में बीजेपी के पास वर्तमान में राज्यसभा का एक पद रिक्त है. यह पद केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य के लोकसभा सांसद चुने जाने की वजह से खाली हुआ है.
हालांकि, इस पद पर कई दावेदार हैं. ऐसे में अब रोहित की आगे की क्या भूमिका होगी, यह भी देखना दिलचस्प होगा.
7. कृष्णकांत भारद्वाज- 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले छत्तीसगढ़ के कांकेर के जिला मुख्य जज कृष्णकांत भारद्वाज ने इस्तीफा देकर कांग्रेस का दामन थाम लिया. भारद्वाज जांजगीर चांपा के बिलाईगढ़ से विधानसभा का चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया.

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