5 नहीं 7 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनेगा भारत, 3 साल में पीछे छूट जाएंगे जर्मनी-जापान
वित्त मंत्रालय ने सोमवार को कहा कि अगले तीन साल में पांच लाख करोड़ डॉलर के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के साथ भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है और सतत सुधारों से यह वर्ष 2030 तक सात लाख करोड़ डॉलर (7 ट्रिलियन डॉलर) का आंकड़ा भी छू लेगा. दस साल पहले भारत 1.9 लाख करोड़ डॉलर के जीडीपी के साथ दुनिया की 10वीं बड़ी अर्थव्यवस्था था.
वित्त मंत्रालय ने अर्थव्यवस्था की जनवरी माह की समीक्षा रिपोर्ट में कहा है कि महामारी के असर और वृहद-आर्थिक असंतुलन एवं खंडित वित्तीय क्षेत्र वाली अर्थव्यवस्था की विरासत के बावजूद भारत वित्त वर्ष 2023-24 में 3.7 लाख करोड़ डॉलर की अनुमानित जीडीपी के साथ पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था है. मंत्रालय ने कहा, ‘‘10 साल की यह यात्रा ठोस एवं क्रमिक दोनों तरह के कई सुधारों से गुजरी है. उन्होंने देश की आर्थिक प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. इन सुधारों ने आर्थिक मजबूती भी दी है जिसकी देश को भविष्य में आने अप्रत्याशित वैश्विक झटकों से निपटने के लिए जरूरत होगी.’’
अगले 3 वर्ष में तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था
इसी के साथ मंत्रालय ने कहा कि अगले तीन वर्षों में भारत के पांच लाख करोड़ डॉलर के जीडीपी के साथ दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की उम्मीद है. समीक्षा रिपोर्ट के मुताबिक, ‘‘सरकार ने वर्ष 2047 तक ‘विकसित देश’ बनने का एक बड़ा लक्ष्य रखा है। सुधारों की यात्रा जारी रहने पर इस लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है.” समीक्षा रिपोर्ट कहती है, ‘‘घरेलू मांग की ताकत ने पिछले तीन वर्षों में अर्थव्यवस्था को सात प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर दी है. वित्त वर्ष 2024-25 में वास्तविक जीडीपी वृद्धि सात प्रतिशत के करीब रहने की संभावना है. वर्ष 2030 तक वृद्धि दर के सात प्रतिशत से अधिक रहने की काफी गुंजाइश है.’’
चिंता का विषय
मंत्रालय ने समीक्षा में पाया है कि मौजूदा और भविष्य के आर्थिक सुधारों के लिए भू-राजनीतिक संघर्ष एक बढ़ा जोखिम बन सकते हैं. मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन के ऑफिस द्वारा तैयार भारतीय अर्थव्यवस्था की समीक्षा रिपोर्ट की भूमिका में उन्होंने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था कोविड के बाद अपने पुनरुद्धार को कायम रखने के लिए संघर्ष कर रही है और आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान जैसे कुछ झटके 2024 में भी लौट आए हैं. अगर ये झटके कायम रहते हैं तो दुनियाभर में व्यापार प्रवाह, परिवहन लागत, आर्थिक उत्पादन और मुद्रास्फीति को प्रभावित करेंगे.