60 पेज का फैसला, CBI को नसीहत और दिल्ली के सीएम को जमानत… केजरीवाल के केस में सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बातें
दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल 156 दिनों के बाद तिहाड़ जेल से रिहा हुए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को आबकारी नीति से जुड़े भ्रष्टाचार के मामले में उनको जमानत दे दी है. अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि लंबे समय तक जेल में रखना उन्हें स्वतंत्रता से वंचित करने जैसा होगा. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार के मामले में सीबीआई द्वारा गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली उनकी याचिका को खारिज कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट के 60 पेज के फैसले में दो पेज जमानत पर और 58 पेज गिरफ्तारी को दी गई चुनौती पर हैं.
जस्टिस सूर्यकांत और उज्जल भुइयां की पीठ ने जमानत की मांग और गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अलग-अलग फैसला सुनाया. जमानत के मसले पर दोनों जजों ने एक राय दी. गिरफ्तारी के मसले पर अलग-अलग राय जाहिर की. जस्टिस सूर्यकांत ने सीबीआई द्वारा केजरीवाल की गिरफ्तारी को सही बताया. जस्टिस भुइयां ने गिरफ्तारी के समय पर सवाल उठाते हुए कहा कि सीबीआई को उस धारणा को खत्म करना चाहिए वह बंद पिंजरे का तोता है. उन्होंने सीबीआई को पिंजरे में बंद तोता की धारणा से बाहर निकलने की नसीहत दी.
पीठ ने सभी तथ्यों पर विचार करने के बाद केजरीवाल को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया. पीठ ने इसी मामले में दिल्ली के पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को जमानत देते समय की गई उस टिप्पणी को एक बार फिर से दोहराया. कहा कि जमानत नियम है और जेल अपवाद. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि निकट भविष्य में मुकदमे के पूरा होने की संभावना नहीं है. मुख्यमंत्री केजरीवाल द्वारा साक्ष्यों को छेड़छाड़ करने और गवाहों को प्रभावित करने की आशंका नहीं है. इसलिए उन्हें जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया जाता है.
सचिवालय नहीं जा पाएंगे, फाइलों पर नहीं करेंगे हस्ताक्षर
सुप्रीम कोर्ट ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को 10 लाख रुपये के मुचलके और इतनी ही रकम की दो जमानती जमा करने की शर्त पर जेल से रिहा करने का आदेश दिया. जस्टिस सूर्यकांत और उज्जल भुइयां की पीठ ने शीर्ष अदालत ने केजरीवाल को मामले के तथ्यों को लेकर किसी भी तरह की कोई सार्वजनिक टिप्पणी नहीं करने का निर्देश दिया.
पीठ ने कहा है कि आबकारी नीति से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में अंतरिम जमानत देते समय सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाई गई शर्तें इस मामले में भी लागू रहेंगी. सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में 10 मई को चुनाव प्रचार के लिए और 12 जुलाई को अंतरिम जमानत देते समय यह शर्त लगाई थी कि केजरीवाल अपने कार्यालय या दिल्ली सचिवालय नहीं जा सकते हैं. साथ ही कहा था कि वह किसी भी आधिकारिक फाइल पर हस्ताक्षर नहीं कर सकते हैं. जब तक कि उपराज्यपाल की मंजूरी प्राप्त करने के लिए बिल्कुल आवश्यक न हो.
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल के मामले की हर सुनवाई की विशेष अदालत में उपस्थित रहने का निर्देश दिया है, जब तक कि उन्हें इसकी छूट न दी जाए. साथ ही उन्हें विशेष अदालत में मुकदमे की कार्यवाही के शीघ्र समापन के लिए पूरा सहयोग करने को कहा है.
पिंजरे में बंद तोता की धारणा से बाहर निकले सीबीआई
आबकारी नीति से जुड़े भ्रष्टाचार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई द्वारा मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी को अनुचित बताया. इसके समय पर भी गंभीर सवाल खड़े किए. जस्टिस भुइयां ने केजरीवाल को जमानत देने के लिए सहमति वाले अपने अलग फैसले में कहा कि सीबीआई को निश्चित रूप से पिंजरे में बंद तोता की धारणा से बाहर निकलना चाहिए.
जस्टिस भुइयां ने अपने फैसले में गिरफ्तारी समय पर सवाल उठाते हुए कहा है कि यह समझ से परे है कि जब सीबीआई को पिछले 22 महीने तक केजरीवाल को गिरफ्तार करने की जरूरत महसूस नहीं हुई. फिर अचानक उनकी गिरफ्तारी को लेकर इतनी जल्दबाजी क्यों? खासकर तब जब मनी लॉन्ड्रिंग मामले में वो रिहाई के कगार पर थे.
जस्टिस भुइयां ने कहा है कि सीबीआई केजरीवाल द्वारा पूछताछ में गोलमोल जवाब देने का हवाला देकर उनकी गिरफ्तारी और लगातार हिरासत में रखे जाने को उचित नहीं ठहरा सकती. सहयोग नहीं करने का मतलब स्व-दोषारोपण नहीं हो सकता. उन्होंने कहा है कि तथ्यों से जाहिर होता है कि सीबीआई का मकसद प्रवर्तन निदेशालय द्वारा दर्ज मनी लॉन्ड्रिंग मामले में केजरीवाल को मिली जमानत में बाधा डालना था.
जस्टिस उज्जल भुइयां ने सीबीआई देश की एक प्रीमियर जांच एजेंसी बताते हुए कहा कि जनहित में यह बेहद महत्वपूर्ण है कि सीबीआई निश्चित रूप से न सिर्फ निष्पक्ष होना होगा. बल्कि उसे ऐसा करके दिखाना भी होगा. सीबीआई को ऐसी धारणा को दूर करने के लिए हरसंभव प्रयास करना चाहिए कि जांच निष्पक्ष रूप से नहीं की गई थी और गिरफ्तारी दमनात्मक एवं पक्षपातपूर्ण तरीके से की गई थी.
उन्होंने कहा कि कानून के शासन द्वारा संचालित एक क्रियाशील लोकतंत्र में धारणा बेहद मायने रखती है. इसलिए सीबीआई को पिंजरे में बंद तोता की धारणा से बाहर निकलने का प्रयास करना होगा. जस्टिस भुइयां ने कहा कि एक जांच एजेंसी को ईमानदार होने के साथ-साथ ईमानदार दिखना भी चाहिए.
उन्होंने कहा कि कुछ समय पहले इसी अदालत ने सीबीआई की आलोचना करते हुए इसकी तुलना पिंजरे में बंद तोते से की थी. ऐसे में यह जरूरी है कि सीबीआई पिंजरे में बंद तोते की धारणा को दूर करे. धारणा यह होनी चाहिए कि सीबीआई पिंजरे में बंद तोता नहीं बल्कि आजाद है. सुप्रीम कोर्ट ने साल 2013 में कोयला घोटाला से जुड़े मामले में सीबीआई के कामकाज पर सवाल उठाते हुए देश के इस प्रीमियर जांच एजेंसी की तुलना पिंजरे में बंद तोता से की थी.
शर्तों पर सवाल लेकिन टिप्पणी करने से बचे जस्टिस भुइयां
जस्टिस भुइयां ने कहा कि आबकारी नीति से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में आप प्रमुख केजरीवाल को जमानत मिल गई है तो उन्हें हिरासत में रखना न्याय की दृष्टि से ठीक नहीं होगा. उन्होंने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जमानत देते समय लगाई गई उन शर्तों पर गंभीर आपत्ति जताई है, जिसके तहत केजरीवाल को अपने कार्यालय में प्रवेश करने और फाइलों पर हस्ताक्षर करने पर रोक लगा दी गई है. जस्टिस भुइयां ने कहा, मैं न्यायिक अनुशासन के चलते केजरीवाल पर जमानत के लिए लगाई गई शर्तों पर टिप्पणी नहीं कर रहा हूं.
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विशेष अदालत से जमानत मिलने के बाद सक्रिय हुई सीबीआई
जस्टिस उज्जल भुइयां ने कहा है कि मनी लॉन्ड्रिंग मामले में विशेष न्यायाधीश द्वारा आप नेता केजरीवाल को जमानत दिए जाने के बाद ही सीबीआई ने अपनी मशीनरी सक्रिय की और उन्हें गिरफ्तार किया. यह न सिर्फ इस तरह की कार्रवाई गिरफ्तारी के समय पर बल्कि गिरफ्तारी पर ही गंभीर सवालिया निशान लगाती है.
साथ ही कहा कि 22 महीने तक सीबीआई अपीलकर्ता को गिरफ्तार नहीं करती लेकिन विशेष न्यायाधीश द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग मामले में नियमित जमानत दिए जाने के बाद सीबीआई उसकी हिरासत की मांग करती है. ऐसे में यह माना जा सकता है कि सीबीआई द्वारा की गई ऐसी गिरफ्तारी शायद केवल धन शोधन मामले में केजरीवाल को दी गई जमानत को विफल करने के लिए थी.
जस्टिस भुइयां ने कहा कि सुनवाई से पहले आरोपी को लंबे समय तक जेल में रखने को सजा नहीं बनना चाहिए, के सिद्धांत को दोहराते हुए कहा कि जमानत न्यायशास्त्र सभ्य आपराधिक न्याय प्रणाली का एक पहलू है. एक आरोपी तब तक निर्दोष है जब तक कि एक सक्षम न्यायालय द्वारा उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए उसे दोषी साबित नहीं किया जाता. इसलिए, निर्दोषता की धारणा है. उन्होंने कहा कि यह अदालत दोहराती रही है कि जमानत नियम है और जेल अपवाद है.
भ्रष्टाचार के मामले में केजरीवाल की गिरफ्तारी सही: जस्टिस सूर्यकांत
आबकारी नीति से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में मुख्यमंत्री केजरीवाल को जमानत देते हुए जस्टिस सूर्यकांत ने सीबीआई द्वारा उनकी गिरफ्तारी को वैध ठहराया. उन्होंने अलग लिखे अपने फैसले में कहा कि किसी अन्य मामले में पहले से ही हिरासत में मौजूद व्यक्ति को गिरफ्तार करने में कोई बाधा नहीं है.
उन्होंने कहा कि हमने इस बात पर गौर किया कि सीबीआई ने इसके लिए उचित कारण दर्ज किए है. उन्होंने कहा है कि तथ्यों से जाहिर है कि सीबीआई द्वारा याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी में अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 41ए(iii) का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है. यह टिप्पणी करते हुए उन्होंने भ्रष्टाचार के मामले में गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली केजरीवाल की याचिका को खारिज कर दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की उन दलीलों को खारिज कर दिया, जिसमें जमानत के लिए केजरीवाल को विशेष अदालत जाने का निर्देश देने की मांग की थी. जस्टिस सूर्यकांत ने अपने फैसले में कहा है कि याचिकाकर्ता को जमानत के लिए विशेष अदालत नहीं भेज सकते क्योंकि हाईकोर्ट ने केजरीवाल को शुरुआती चरण में ट्रायल कोर्ट में वापस नहीं भेजा और मामले की सुनवाई तथ्यों के गुण-दोष के आधार पर की.
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, अगर कोई आरोपी ट्रायल कोर्ट से राहत मांगे बिना सीधे हाईकोर्ट जाता है तो आम तौर पर हाईकोर्ट के लिए उसे शुरू में ही ट्रायल कोर्ट में भेज देना उचित होता है. फिर भी अगर नोटिस जारी करने के बाद काफी देरी होती है तो बाद में मामले को ट्रायल कोर्ट में भेजना समझदारी नहीं होगी. उन्होंने कहा कि जमानत व्यक्तिगत स्वतंत्रता से बहुत जुड़ा हुआ मसला है. इसलिए जमानत की मांग पर उनके गुण-दोष आधार पर तुरंत फैसला सुनाया जाना चाहिए. न कि प्रक्रियागत तकनीकी पहलुओं के आधार पर अदालतों के बीच चक्कर लगाना चाहिए.
लंबे समय तक जेल में रखना, केजरीवाल के स्वतंत्रता के अधिकार का होगा हनन
जस्टिस सूर्यकांत ने अपने फैसले में कहा है कि हमारे विचार में केजरीवाल की गिरफ्तारी वैध है. मगर, मुकदमे के लंबित रहने तक लंबी अवधि तक जेल में रखना स्थापित कानूनी सिद्धांतों और अपीलकर्ता के स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन होगा. जो हमारे संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित है.
उन्होंने कहा कि जहां तक अपीलकर्ता द्वारा मुकदमे के परिणाम को प्रभावित करने की आशंका का सवाल है, ऐसा लगता है कि मामले के सभी साक्ष्य पहले से ही सीबीआई के कब्जे में हैं. ऐसे में याचिकाकर्ता द्वारा छेड़छाड़ की कोई संभावना नहीं है. साथ ही कहा कि केजरीवाल राज्य के मुख्यमंत्री होने के साथ ही समाज में उसकी जड़ें गहरी हैं. ऐसे में उनके देश से भागने की आशंका को मानने का कोई वैध कारण नहीं लगता. मामले में सीबीआई की आशंकाओं को दूर करने के लिए हम जमानत की सख्त शर्तें लगा सकते हैं.
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि सीबीआई ने समवर्ती क्षेत्राधिकार का मुद्दा उठाया और यह दलील दी कि शीर्ष अदालत द्वारा जमानत दिए गए अन्य सभी सह-आरोपियों ने ट्रायल कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. मगर, केजरीवाल ने ऐसा नहीं किया था. उन्होंने कहा कि तथ्यों से जाहिर है कि हाईकोर्ट ने प्रारंभिक चरण में मामले में फैसला सुनाने के बजाए, गुण-दोष पर विस्तृत सुनवाई के बाद फैसला दिया.
उन्होंने कहा कि यह सही है कि आम तौर पर ट्रायल कोर्ट को आरोप पत्र दाखिल होने के बाद जमानत की मांग करने वाली याचिका पर विचार करना चाहिए. मगर, ऐसा कोई सख्त फॉर्मूला नहीं हो सकता है जो यह बताए कि जमानत पर विचार करने से संबंधित हर मामले में आरोप पत्र दाखिल होने पर निर्भर होना चाहिए. जमानत के मुद्दे पर जस्टिस भुइयां ने भी जस्टिस सूर्यकांत के विचारों से सहमति जाहिर की.