बांग्लादेश में बढ़ी कट्टरपंथियों की ताकत, जानिए बंगाल पर क्या होगा असर
बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के तख्तापटल के बाद अब वहां नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री मोहम्मद युसुफ के नेतृत्व में अतंरिम सरकार बनने जा रही है, लेकिन इस सरकार की बागडोर जमात-ए-इस्लामी और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के हाथों में रहने की संभावना है. साफ है कि हसीना सरकार की तुलना में बांग्लादेश में कट्टरपंथी ताकतें और भी मजबूत होंगी. इन ताकतों के मजबूत होने के परिणाम अभी से दिखने लगे हैं. बांग्लदेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं और आवामी लीग के समर्थकों पर आत्याचार किए जा रहे हैं. उनकी घरों और दुकानों को जमकर लूटा जा रहा है. कइयों की हत्या भी कर दी गई है. ऐसे में भारी संख्या में आवामी लीग के समर्थक और हिंदू पश्चिम बंगाल की ओर पलायन करने को मजबूर हैं. बड़ी संख्या में हिंसा के शिकार बांग्लादेशियों का बॉर्डर पर भारत की ओर आना जारी है.
सूचना के अनुसार बुधवार को बांग्लादेश के अल्पसंख्यक समुदाय के लगभग 1,200 लोगों ने अपनी जान बचाने के लिए अपना घर छोड़कर भारत में घुसने की कोशिश की. वे बांग्लादेश के पंचगढ़ जिले के पांच गांवों के निवासी हैं. उनका दावा है कि बांग्लादेश के मौजूदा हालात ने उनके घर तबाह कर दिए हैं वे अपनी जान बचाने के लिए भारत में शरण लेने को मजबूर हैं. हालांकि उन्हें जीरो प्वाइंट पर बीएसएफ ने हिरासत में ले लिया.
हालांकि बीएसएफ ने भारत में प्रवेश करने से उन्हें रोक दिया है, लेकिन भारत और बांग्लादेश की लगभग 4000 किमी लंबी सीमा के मद्देनजर हर बार यह संभव नहीं होगा और भारत में बड़ी संख्या में शरणार्थी और घुसपैठियों के प्रवेश आज नहीं तो कल होंगे ही. इससे पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती इलाकों की डेमोग्राफी में बड़ा परिवर्तन होने की आशंका है.
पश्चिम बंगाल बना सॉफ्ट टारगेट
बांग्लादेश मामलों के विशेषज्ञ पार्थ मुखोयपाध्याय का कहना है कि बांग्लादेश में हिंसा से शिकार लोगों, चाहे वे आवामी लीग के समर्थक हों या अल्पसंखक समुदाय के हिंदू हों, उनके लिए पश्चिम बंगाल सॉफ्ट टारगेट है, क्योंकि लगभग 2000 किलोमीटर की बांग्लादेश से साझा करती सीमा में कई नदी वाले इलाके हैं और कई इलाकों में तार के बाड़ नहीं है. ऐसे में पश्चिम बंगाल में प्रवेश करना आसान हो जाता है.
दूसरी ओर, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार है. ममता बनर्जी का सदा से ही अल्पसंख्यकों के लिए सॉफ्ट कॉर्नर रहा है. तृणमूल कांग्रेस का बड़ा वोटबैंक मुस्लिम हैं, जबकि बांग्लादेश से सटे राज्यों असम और त्रिपुरा में भाजपा की सरकार है. ऐसे में आवामी लीग के समर्थकों के लिए त्रिपुरा और असम की तुलना में पश्चिम बंगाल में शरण लेना प्राथमिकता है.
बढ़ेगी कट्टरपंथियों की ताकत
विश्व हिंदू परिषद के मीडिया प्रभारी शौरिक मुखर्जी का कहना है कि बांग्लादेश में हसीना सरकार का तख्तापलट केवल छात्र आंदोलन की वजह से नहीं हुई. इसके पीछे जेहादी और कट्टरपंथी की गहरी साजिश है. छात्र संगठन केवल एक मखौटा है, असली चेहरा जमात-ए-इस्लामी का है. पिछले कई बार से बांग्लादेश में लोकतंत्र को समाप्त करने की साजिश रची जा रही थी, लेकिन इस बार वे लोग सफल हुए हैं. वास्तव में वे लोग बांग्लादेश के आठ फीसदी हिंदुओं को समाप्त कर पूरी तरह से इस्लामिक स्टेट में परिवर्तित करना चाहते हैं और उनकी साजिश है कि बांग्लादेश की कट्टरपंथी ताकतों की मदद से पश्चिम बंगाल को अस्थिर किया जाए.
उन्होंने कहा कि ये कट्टरपंथी ताकतें पश्चिम बंगाल की कट्टरपंथी ताकतों को मदद देगी. पश्चिम बंगाल में चूंकि एक ऐसी सरकार है, जिसके लिए मुस्लिम या कट्टरपंथी ताकतें उनका वोटबैंक हैं. ऐसे में इन ताकतों को बल मिलेगा और बांग्लादेश का मॉड्यूल भी पश्चिम बंगाल में लागू करने की कोशिश की जाएगी. पहले ही सीमावर्ती इलाकों में पश्चिम बंगाल के मदरसों में इस्लामिक कट्टरपंथियों को आश्रय मिलता रहा है और अब ऐसे मदरसों की फंडिंग बढ़ेगी और ये ताकतें और भी मजबूत होगी.
चरमपंथी ताकतों की शक्ति में इजाफा
बांग्लादेश मामलों के विशेषज्ञ एसिस्टेंट प्रोफेसर डॉ.पार्थ विश्वास का कहना है कि भारत में घुसपैठ बढ़ने से हार्डलाइनर और भी मजबूत होकर उभरेंगे. बांग्लादेश की कट्टरपंथी ताकतें पहले ही पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश को मिलाकर ग्रेटर बांग्लादेश बनाने की साजिश रच रहे हैं. और ऐसी ताकतों को बल मिलेगा. राज्य का सत्तारूढ़ दल मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति पर विश्वास करता है. ऐसे में उन शक्तिओं की और भी ताकत बढ़ेगी.
उन्होंने कहा कि राज्य में खगड़ागढ़ बम ब्लास्ट जैसी घटनाओं में इजाफा होगा, क्योंकि हसीना सरकार के समय उन्हें बांग्लादेश से ज्यादा समर्थन नहीं मिल पाता था. अब उन्हें बांग्लादेश से पूरा समर्थन मिलेगा. इससे जेएमबी जैसे आतंकी संगठनों के स्लीपर सेल के नेटवर्क में भी इजाफा होने के आसार हैं. यह न केवल पश्चिम बंगाल बल्कि पूरे देश की सुरक्षा और संप्रभुता के लिए खतरा पैदा करेगा.
सांप्रदायिक सौहार्द पर पड़ेगा इम्पैक्ट
बांग्लादेश में हिंसा और अल्पसंख्यकों पर अत्याचार से पश्चिम बंगाल के लिए सबसे बड़ी चुनौती सांप्रदायिक सौहार्द का है. अल्पसंख्यकों पर अत्याचार से राज्य के बहुसंख्य समुदाय में आक्रोश है. वही, बांग्लादेश में कट्टरपंथी ताकतों के मजबूत होने से राज्य की कट्टरपंथी ताकतों को बल मिलेगा. इससे पहले रामनवमी के अवसर पर या फिर सीएए के लागू होने के ऐलान के बाद पश्चिम बंगाल के हावड़ा, हुगली, मुर्शिदाबाद, मालदा और उत्तर 24 परगना जैसे इलाकों में सांप्रदायिक दंगे हुए थे. ऐसे में जब कट्टरपंथी ताकतें बढ़ेगी, तो ममता बनर्जी के लिए यह बड़ी चुनौती होगी कि वह कैसे सांप्रदायिक सद्भाव और सौहार्द की रक्षा कर पाएंगी.
दूसरी ओर, हिंदू कट्टरपंथी ताकतों द्वारा बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया जाएगा और इस मुद्दे पर जमकर सियासत होने के आसार हैं. जिस तरह से सोशल मीडिया या टेलीविजन चैनलों पर बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की तस्वीरें या वीडियो दिखाये जा रहे हैं. उनका आज नहीं तो कल पश्चिम बंगाल की सियासत पर असर पड़ेगा.
हिंदू कट्टरपंथियों की ओर से भी बयानबाजी तेज हो गई कि यदि अभी भी हिंदू नहीं चेते, तो बांग्लादेश के हिंदुओं की तरह ही उनका भी यही अंजाम होगा और जैसे-जैसे पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव नजदीक आएंगे, तो सीएए या फिर एनआरसी के रूप में इस तरह के आरोप-प्रत्यारोप का दौर और भी तेज होता जाएगा.