BNS में ‘अप्राकृतिक यौन अपराध’ का प्रावधान क्यों नहीं है? दिल्ली HC ने केंद्र से मांगा जवाब

Delhi HC On Unnatural Crime: दिल्ली हाईकोर्ट ने भारतीय न्याय संहिता (BNS) में ‘अप्राकृतिक यौन अपराध’ को शामिल न करने पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. कोर्ट का यह आदेश एक जनहित याचिका पर आया है, जिसमें महिला या पुरुष के साथ गैर-सहमति से समलैंगिकता या अन्य प्रकार के ‘अप्राकृतिक’ यौन संबंधों को बीएमएस से दंडित करने के प्रावधान को बाहर करने को चुनौती दी गई है.
दिल्ली हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए मामले में केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. कोर्ट ने इस मामले में जवाब दाखिल करने के लिए केंद्र सरकार के स्थायी वकील अनुराग अहलूवालिया को 27 अगस्त तक का समय दिया है. मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने टिप्पणी की कि नई दंड संहिता में इस अपराध का कोई उल्लेख नहीं है.
अगर ऐसा नहीं है, तो क्या यह अपराध है?
हाईकोर्ट ने कहा कि भारतीय न्याय संहिता में इस तरह के अपराध का कोई प्रावधान नहीं है. इसमें कुछ तो होना चाहिए. सवाल यह है कि अगर ऐसा नहीं है, तो क्या यह अपराध है? अगर कोई अपराध नहीं है और अगर इसे हटा दिया जाता है, तो यह अपराध नहीं है… हम सजा की मात्रा तय नहीं कर सकते, लेकिन विधायिका को बिना सहमति के अप्राकृतिक यौन कृत्यों पर ध्यान देने की जरूरत है.
केंद्र सरकार की ओर से अधिवक्ता अनुराग अहलूवालिया ने कहा कि उन्होंने मामले को उच्चतम स्तर पर उठाया है. वे निर्देश लेकर वापस आएंगे. उन्होंने कहा कि उन्हें बिना नोटिस जारी किए निर्देश मिल जाएंगे. अगर कोई विसंगति या चूक भी है…तो अदालतें कितना हस्तक्षेप कर सकती हैं, यह भी देखना होगा क्योंकि यह एक नया अधिनियम है.
पहले आजीवन कारावास या 10 साल जेल का प्रावधान था
दरअसल, अब निरस्त हो चुकी भारतीय दंड संहिता की धारा 377 में पहले “किसी पुरुष, महिला या पशु के साथ प्रकृति के विरुद्ध शारीरिक संबंध” बनाने पर आजीवन कारावास या 10 साल की जेल का प्रावधान था. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने 2018 के नवतेज सिंह जौहर फैसले में धारा 377 आईपीसी के तहत सहमति से यौन कृत्यों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि धारा 377 के प्रावधान वयस्कों के खिलाफ गैर-सहमति से यौन कृत्यों, नाबालिगों के खिलाफ शारीरिक संबंधों के सभी कृत्यों और पशुता के कृत्यों को नियंत्रित करना जारी रखेंगे. ब्रिटिश काल के कानून भारतीय दंड संहिता को इस वर्ष जुलाई में भारतीय न्यायिक संहिता द्वारा प्रतिस्थापित किया गया.
धारा 377 को निरस्त करना असंवैधानिक
हालांकि, बीएनएस के तहत “अप्राकृतिक यौन संबंध” के गैर-सहमति वाले कृत्यों को अपराध घोषित करने का कोई प्रावधान नहीं है. आईपीसी की धारा 377 के समान धारा न जोड़ने के लिए बीएनएस की आलोचना की जा रही थी. दावा किया जा रहा है कि अगर किसी पुरुष या ट्रांसजेंडर व्यक्ति के साथ बलात्कार होता है तो इसे लागू करने का कोई प्रावधान नहीं है.
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दिल्ली उच्च न्यायालय ने अधिवक्ता गंटाव्या गुलाटी द्वारा दायर इस याचिका पर सुनवाई की. याचिका में तर्क दिया गया कि नए कानूनों के कार्यान्वयन ने कानूनी खामियां पैदा की हैं. बीएनएस में समकक्ष प्रावधानों को शामिल किए बिना धारा 377 आईपीसी को निरस्त करना असंवैधानिक है. याचिकाकर्ता ने अदालत से भारत सरकार को आईपीसी में संशोधन करने का निर्देश देने की मांग की है.

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