‘एक अकेले से क्या ही होता है’, आसाराम के सबसे बड़े केस की ये बातें आपकी सोच बदल देंगी!

दीक्षा… इस नाम का मतलब जानते हैं आप. दीक्षा नाम का बहुत खास मतलब है… नहीं इसलिए नहीं कि जिस आर्टिकल को आप पढ़ रहे हैं, उसकी राइटर यानी मेरा नाम ये है. नहीं… दीक्षा केवल एक नाम नहीं है, इसका बहुत खास अर्थ है. मेरे नाम का क्या मतलब है, जब ये बात मैंने बचपन में अपनी नानी से पूछी थी तो उन्होंने मुझे बताया था कि बेटा जब कोई बड़ा संत आपको अपनी शरण में लेता है तो आप उनसे दीक्षा लेते हैं यानी ज्ञान लेते हैं या उनके ज्ञान का एक छोटा सा अंश लेते हैं. संतों से दीक्षा लेने का ये चलन भारत के इतिहास में पौराणिक काल से रहा है. लोग संतों-ऋषियों के पास अपने बच्चों को इसलिए भेजते थे कि उन्हें जीवन का सार पता चल सके, अच्छे संस्कार मिलें और जीवन सार्थक हो, लेकिन वह दौर अलग था…ये कलयुग है और कलयुग में इन संतों की अपनी अलग दुनिया है.
साल 2012 में हुआ निर्भया गैंग रेप मामला तो आपको याद ही होगा. इस जघन्य अपराध के बाद हर किसी का खून खौल रहा था. पूरा देश निर्भया को इंसाफ दिलाने के लिए सड़कों पर था. हर कोई अपनी बात इस मुद्दे पर रख रहा था और फिर आता है एक ऐसे शख्स का बयान, जिसको उस दौर में देश का एक बड़ा तबका भगवान की श्रेणी में रखता था. स्वघोषित संत आसाराम बापू ने निर्भया रेप केस को लेकर जो बयान दिया, उसने लोगों के मन में एक सवाल खड़ा कर दिया कि क्या वाकई ऐसे शब्द एक संत के हो सकते हैं?
”लड़की एक का हाथ पकड़ती और कहती कि तेरे को तो भाई मानती हूं, दो को बोलती भइया मैं अबला हूं, तुम मेरे भाई हो, धर्म के भाई हो, भगवान का नाम लेकर हाथ पकड़ती, पैर पकड़ती तो इतना दुराचार नहीं होता. गलती एक तरफ से नहीं होती है, क्या ताली एक हाथ से बज सकती है?”
ये वही आसाराम बापू है…
ये वही आसाराम है, जिसके बारे में कुछ सालों पहले तक कुछ बोल देना मौत को दावत देने जैसा था, क्योंकि उसने अपने आगे अंधभक्तों की इतनी बड़ी फौज खड़ी कर रखी थी, जिनके भरोसे और आस्था की लाशों पर चढ़कर उसने बहुत बड़ा साम्राज्य बनाया था. ये इतना बड़ा नाम था कि आप इसी बात से अंदाजा लगाइए कि लोग अपने घरों में न सिर्फ उसकी पूजा करते थे, बल्कि बाकाएदा उसकी तस्वीर को भगवान की तस्वीरों और मूर्तियों जैसा ही सम्मान दिया जाता था. इस साम्राज्य का आसाराम और उसके बेटे नारायण साईं को इतना घमंड था कि हर वक्त झूठ का चोला ओढ़कर ये दोनों घटिया किस्म की बातें किया करते थे और न सिर्फ बातें बल्कि अपने आश्रमों में न जाने कितने तरह के गुनाहों को बड़ी बेफिक्री से अंजाम देते थे, लेकिन अजहर इनायती साहब ने भी क्या खूब फर्माया है कि, ‘ये और बात कि आंधी हमारे बस में नहीं… मगर चराग जलाना तो इख्तियार में है’…
एक अकेले से क्या ही होता है… कोशिश
वह कहावत तो आपने सुनी हो होगी… कि एक अकेले से क्या ही होता है… मैं कहती हूं… कोशिश… कभी-कभी कुछ गहरे अंधेरों को हटाने के लिए रोशनी की एक छोटी सी किरण ही काफी होती है. आसाराम और उसके बेटे नारायण साईं के फैलाए गए अंधविश्वास के इस गहरे अंधेरे को काटने के लिए भी ऐसी ही एक किरण आई जिसने ये साबित कर दिया कि उम्र छोटी हो तो भी क्या फर्क है हुजुर… ‘लहरों से टकराने के लिए एक बंदा ही काफी है…’
ये भी जानिए कि वह दौर कैसा था…
आज सोचने में ये बात भले छोटी सी लगती हो लेकिन साल 2012-13 का दौर ऐसा हुआ करता था जब ना तो सोशल मीडिया का चलन था और ना ही हर खबर इतनी आसानी से लोगों के कानों तक पहुंचती थी. ये वह दौर था जब सच्चाई बाहर लाने के लिए कैमरे के सामने खड़े होकर बोलने की सुविधा सबके पास नहीं हुआ करती थी. ये सब आपको समझना इसलिए जरूरी है क्योंकि तभी आपको ये समझ आएगा कि ऐसे दौर में एक 16 साल की नाबालिग का सामने आना और आसाराम पर आरोप लगाना कि उसने उसकी इज्जत पर हाथ डाला कितनी बड़ी और हिम्मत की बात थी. आसाराम के पास ताकत थी उन भक्तों की जो उसके एक इशारे पर जान देने को भी तैयार थे और लेने को भी.
साल था 2013… तारीख 14 अगस्त
वह साल था 2013… तारीख 14 अगस्त… आसाराम के गुरुकुल में पढ़ने वाली एक छात्रा अपने माता-पिता के साथ राजस्थान के जोधपुर में आसाराम के आश्रम पहुंचती है. उसे आसाराम के पास भेजा गया था ताकी उसका ‘भूत’ उतारा जा सके. हां… वह गुरुकुल परासिया रोड छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) में बेहोश होकर गिर पड़ी थी वहां की वॉर्डन शिल्पी ने उससे कहा कि उसपर भूत प्रेत का साया है और उसे बाबा की मदद लेनी होगी. इसके बाद बच्ची अपने माता-पिता के साथ अपने घर यूपी के शहाजहांपुर आ गई. यहां आने के बाद उसके पिता ने पता किया कि आसाराम कहां हैं और पूरा परिवार उनसे मिलने और बच्ची के लिए मदद मांगने के लिए जोधपुर के आश्रम पहुंचा. वह जोधपुर आश्रम के गेट से अंदर आए तो देखा कि आसाराम सत्संग कर रहा है. वह भी वहीं बैठ गए. इसके बाद उन्होंने आसाराम को सारी बात बताई कि बेटी की तबियत ठीक नहीं है जिसपर उसने कहा कि वह उसका भूत उतार देगा.
उस रात जो हुआ वह यहां लिखा भी नहीं जा सकता…
माता-पिता ने भी अपने ‘भगवान’ की बात मान ली और बच्ची को उसके हवाले कर कुटिया के बाहर बैठकर जाप करने लगे… वह बाहर राम-राम जपते रहे और अंदर आसाराम उनकी बच्ची के साथ हैवानियत करते रहे. बच्ची की एफआईआर में ऑफिशियल बयान की हूबहू शब्दों पर जाएं तो अपने आपको संत कहलाने वाले इस दरिंदे ने 16 साल की नाबालिग बच्ची के सामने निरवस्त्र होकर उसके शरीर के निजी अंगों पर हाथ फेरा और उसके साथ घिनौने काम किए. यकीन मानिए घटना की बारिकियां इतनी घिनौनी हैं कि इसको इस आर्टिकल में लिख पाना भी मुश्किल है. ये सब होने पर जब बच्ची चिल्लाने लगी तो आसाराम ने उसे डराया-धमकाया और किसी को भी उसकी असलियत बताने पर उसे और उसके माता-पिता को जान से मारने की धमकी देने की बात कही. बच्ची डर गई इसलिए उस वक्त कुछ नहीं बोली… लेकिन घर आने के बाद उसने अपने माता-पिता को सारी बात बताई तो उनके पैरों तले से जमीन खिसक गई.
मामला जोधपुर का… केस दिल्ली में दर्ज हुआ
बच्ची ने 15 अगस्त की रात को हुए इस रेप के बारे में एक दिन बाद अपनी मां को बताया. बच्ची के पिता जोधपुर आए. ताकि खुद आसाराम से सामने-सामने बात कर सकें. तब तक आसाराम दिल्ली जा चुका था. बच्ची के पिता दिल्ली पहुंचे लेकिन आसाराम ने उन्हें मिलने का वक्त नहीं दिया. हारकर उन्होंने अपने उस भगवान के खिलाफ मामला दर्ज करवाया जिसे वह सबकुछ मानते थे. बच्ची के पिता कमला नगर थाने पहुंचे. ये तारीख थी 19 अगस्त, 2013… मामला जोधपुर थाने का था… लेकिन सबसे बड़ी बात जो इस केस में थी वह ये कि इस केस में एफआईआर को ना सिर्फ दर्ज किया गया बल्कि मामले की गंभीरता को देखते हुए जोधपुर के मामले की दिल्ली के थाने में जीरो एफआईआर दर्ज की गई. बिना वक्त गवाए बच्ची की मेडिकल जांच करवाई गई और फिर उसे मैजिस्ट्रेट के सामने भेजा गया जहां उसका बयान दर्ज किया गया. बयान की एक-एक बात सुनकर हर किसी का खून खौल उठा. फिर जांच को जोधपुर पुलिस को ट्रांस्फर कर दिया गया.
और गिरफ्तार हुआ आसाराम…
रास्ता काफी लंबा था और बेहद खतरनाक. आसाराम के खिलाफ मामला दर्ज होने की खबर जैसे ही मीडिया के कानों में पड़ी तो ये नेशनल हेडलाइन बन गई. अपने पूज्य बापू जी के बारे में इतनी ओछी बात सुनना आसाराम के भक्तों को कतई गंवारा ना हुआ. उन्होंने आरोप लगाना शुरू कर दिया कि उनके भगवान बिल्कुल निर्दोष हैं. जब आसाराम पर गिरफ्तारी की तलवार लटकने लगी तो वह डर गया और इंदौर आश्रम में जाकर छिप गया. बहुत वक्त तक तो ये मालूम ही नहीं चल पा रहा था कि वो कहां है. आखिरकार पुलिस को पता चला कि आसाराम इंदौर के अपने आश्रम में छिपकर बैठा है लेकिन ये आश्रम काफी बड़ा था. आसाराम की प्लानिंग थी कि यहां अपने समर्थकों को इकट्ठा करके दबाव बनाए ताकि पुलिस उसे गिरफ्तार न कर सके. मगर ऐसा हो नहीं पाया. रात के समय इंदौर पुलिस को साथ लेकर जोधपुर पुलिस की एक टीम इंदौर के उस आश्रम में पहुंची. राजस्थान पुलिस की ACP रैंक की अधिकारी चंचल मिश्रा भी उस टीम के साथ थीं.
आसाराम काफी समय तक आंख-मिचौली खेलता रहा. वो आश्रम के किस कमरे में है, ये ही खोजने में पुलिस को काफी वक्त लग गया. आखिरकार जब पुलिस उस कमरे के बाहर पहुंची, तो आसाराम कमरे का दरवाजा बंद करके बैठा रहा. चंचल मिश्रा ने कमरे के बाहर से तेज आवाज में कहा कि दरवाजा खोल दो, वरना भुगतोगे. मजबूरन आसाराम को दरवाजा खोलना पड़ा. खुद को भगवान कहने वाला आसाराम पुलिस की उस टीम के पैरों पर गिरकर गिड़गिड़ाने लगा. उसने गिरफ्तारी टालने की हर मुमकिन कोशिश की. लेकिन उसकी सारी कोशिशें नाकाम हो गईं और आखिरकार 31 अगस्त 2013 को उसे गिरफ्तार किया गया…
नामी-गिरामी वकीलों की फौज… और एक अकेला ‘बंदा’
लेकिन इसके बाद भी आसाराम और उसके एक से एक नामी-गिरामी वकीलों की फौज ने कोर्ट में हर तरीका अपनाया कि उसके खिलाफ आरोपों को सिद्ध ना किया जा सके. कोर्ट में आसाराम का केस लगभग पांच सालों तक चला. सुनवाई पर सुनवाई, अपील पर अपील और दलील पर दलील… हर तरह का हथकंडा, गवाहों को खरीदने से लेकर उनके गायब होने, बयानों से पलटने तक… आसाराम और उसके वकीलों ने न जाने क्या-क्या किया… लेकिन नाबालिग बच्ची के तरफ से पीसी सोलंकी ने केस की पैरवी की. तब भारत में पोक्सो कानून अस्तित्व में आने के बाद दर्ज हुआ ये पहला सबसे हाई प्रोफाइल मामला था जिसमें आसाराम के खिलाफ आरोप लगाए गए थे. आसाराम की ओर से राम जेठमलानी, सुब्रमण्यम स्वामी, मुकुल रोहतगी, केटीएस तुलसी और सिद्धार्थ लूथरा जैसे चर्चित वकीलों ने पैरवी की थी. इसमें एक बात और भी थी कि पीड़िता की ओर से केस लड़ने के लिए पीसी सोलंकी ने कोई फीस नहीं ली थी.
25 अप्रैल 2018 को आया ऐतिहासिक फैसला
और आखिरकार कई जिरहों के बाद खुद को संत कहने वाले आसाराम को उसके गुनाहों की सजा मिली. 25 अप्रैल 2018 को 5 साल तक चली सुनवाई के बाद कोर्ट ने आसाराम को दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई. उसके दो सहयोगियों- शिल्पी और शरत को भी 20-20 साल की जेल हुई है. आसाराम के खिलाफ दो और केस चल रहे थे. दोनों गुजरात से जुड़े थे. एक मोटेरा का. दूसरा सूरत का. सूरत में दो बहनों के साथ बलात्कार का पुराना मामला था. मगर डर के मारे वो चुप रहीं. फिर उनकी शादी हो गई. बच्चे भी हो गए. वो तो जब 2013 में आसाराम की गिरफ्तारी हुई, तब जाकर उनमें हिम्मत आई. इन दोनों बहनों का आरोप था कि वो जब नाबालिग थीं, तब आसाराम और उसके बेटे नारायण साईं ने उनके साथ बलात्कार किया था.
‘आसाराम जैसे आदमी को कभी बाहर नहीं आना चाहिए’
जज मधुसूदन शर्मा ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि आसाराम जैसे आदमी को कभी जेल से बाहर नहीं आना चाहिए. जज का ये कहना था कि आसाराम बिलखकर रोने लगा. वो अकड़, वो घमंड जिसमें वो पुलिस अधिकारियों और नेताओं को धमकाया करता था, सब फुर्र हो गए थे और देश को इस बात का पता लगा कि खुद को भगवान कहलवाने वाला ये बाबा आखिर में एक इंसान है और वह भी बहुत ही ज्यादा घिनौना. सफर लंबा था… लेकिन एक बच्ची की हिम्मत, पुलिस की जिम्मेदारी और एक वकील की वकालत ने इस कथित ‘संत’ को भी घुटनों पर ला दिया. आज आसाराम जेल में है… हालांकि वह सात दिनों के लिए जेल से बाहर आने वाला है. आसाराम को सात दिन की अंतरिम पैरोल मिली है ताकी वह अपना इलाज करवा सके, लेकिन उसमें भी कोर्ट ने शर्ते रखी हैं. आसाराम और उसका ये केस इस बात का सबूत है कि अंधेरा भले कितना ही गहरा क्यों ना हो… लेकिन अगर हौसले की लौ जलाकर आगे बढ़ा जाए तो फिर सुबह जरूर होती है.

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