कोरिया को कार…ताइवान को चिप से मिली तरक्की, कौन बनेगा ‘विकसित भारत’ का सारथी?

दक्षिण कोरिया… एशिया के इस छोटे से देश को आज सारी दुनिया जानती है, क्योंकि कोरिया की कार (हुंडई और किआ) और इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस (सैमसंग और एलजी) के बिना दुनिया की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. इसी तरह ताइवान अगर सेमीकंडक्टर बनाना बंद कर दे, तो पूरा संसार ही लगभग स्टैंड स्टिल की स्थिति में आ जाए. इन सेक्टर ने इन दोनों देशों के लिए तरक्की की नई इबारत लिखी. ऐसे में अब जब भारत 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने का लक्ष्य लेकर चल रह है, तो वो कौन सा सेक्टर होगा जो इसमें उसकी मदद करेगा?
अगर दुनिया के तमाम डेवलप्ड नेशन को देखें तो कोई ना कोई ऐसा सेक्टर रहा है,जिसने उनके लिए तरक्की की राह को आसान बनाया. भारत के सामने आज सिंगापुर की पोर्ट इंडस्ट्री, जापान, जर्मनी और अमेरिका की टेक्नोलॉजी एवं चीन की मैन्यूफैक्चरिंग इंडस्ट्री का ग्रोथ मॉडल मौजूद है. ऐसे में क्या भारत को अब चौथी औद्योगिक क्रांति की जरूरत होगी?
कहां खड़ा है आज का भारत?
साल 2047 में विकसित भारत का लक्ष्य अगर हमें प्राप्त करना है, तो पहले ये देखना होगा कि आज हम दुनिया में कहां खड़े हैं. भारत अब दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, 2027 तक हमारे अंदर दुनिया की तीसरी बड़ी इकोनॉमी बनने का माद्दा है. लेकिन इसमें एक बड़ा योगदान हमारे घरेलू कंजप्शन का है. हम दुनिया के सबसे ज्यादा आबादी वाले मुल्कों में से एक हैं और हमारी इकोनॉमी का बड़ा हिस्सा डोमेस्टिक कंजप्शन से ही आ रहा है.
इस लिहाज से देखा जाए, तो वर्ल्ड इकोनॉमी में हमारा योगदान काफी कम हो जाता है. हम चीन की तरह अब भी एक सरप्लस इकोनॉमी नहीं है,क्योंकि देश की जीडीपी में मैन्यूफैक्चरिंग अब भी 15 प्रतिशत से कम योगदान देता है. इस सेगमेंट के ग्लोबल एक्सपोर्ट में भारत की हिस्सेदारी 2% से भी कम है. ऐसे में भारत के पैसा विदेशी पैसा या यूं कहें अमीर बनाने वाला सरप्लस पैसा कहां से आएगा, जो विकसित भारत बनाने में मदद करेगा.
क्या मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की ग्रोथ से ही बनेगी बात?
भारत की तरक्की के नए रास्ते साल 1991 में आए आर्थिक सुधारों के बाद खुले.इसमें कोई शक नहीं कि उसके बाद भारत में भरपूर पैसा आया. ईटी की एक खबर के मुताबिक बीते करीब 30 सालों में भारत ने 40 से 45 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला है, लेकिन एक सच्चाई ये भी है कि देश की 45 प्रतिशत से ज्यादा आबादी अभी भी खेती-बाड़ी में लगी है और उसे आप रातों-रात किसी अनोखी औद्योगिक क्रांति से नहीं जोड़ सकते.
हमारी तरक्की का लगभग पूरा रास्ता सर्विस सेक्टर की उपलब्धियों से भरा पड़ा है. ऐसे में अगर भारत को 2047 तक विकसित देश बनने का लक्ष्य पूरा करना है, तो अपना अलग मॉडल तैयार करना होगा. ये चीन का या अमेरिका या किसी अन्य देश का मॉडल कट-कॉपी-पेस्ट करके हासिल नहीं किया जा सकता.
हालांकि अगर इतिहास के पन्नों को खंगालेंगे तो एक बात पर हमें गौर करना होगा कि किसी भी देश ने तरक्की की यात्रा मैन्यूफैक्चरिंग की ग्रोथ के बिना पूरी नहीं की. भारत भी इससे दूर नहीं भाग सकता. हाल के सालों में भारत ने इस दिशा में तेजी से काम करना शुरू किया है.
खेती से डिजिटल तक करने होंगे बड़े काम
भारत के पास आज दुनिया को एक डिजिटल क्रांति से जोड़ने का मौका है. ये ग्लोबल इकोनॉमी में भारत की ब्रांड वैल्यू को बढ़ा सकता है. इस देश में UPI और ONDC के अलावा DBT, Aadhaar जैसे कई काम हुए हैं, जिसने देश की साख बढ़ाई है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि विकसित भारत के लिए इतने भर से काम नहीं चलेगा.
बल्कि हमें कृषि सेक्टर में सुधारों को आगे बढ़ाना होगा. साथ ही एपल की असेंबलिंग से आगे बढ़कर उसके कंपोनेंट की मेकिंग तक पहुंचना होगा. तभी हम ‘मुर्गी पहले आई या अंडा’ वाली उलझन से बाहर निकल पाएंगे.
‘मुर्गी पहले आई या अंडा’
दरअसल भारत की मौजूदा बड़ी समस्या बेरोजगारी है. इसका सीधा संबंध देश की इकोनॉमी से है. अगर देश को ‘विकसित भारत’ के लक्ष्य को छूना है तो देश की आबादी को उसकी तरह रोजगार देना होगा. रोजगार देश में उपभोग को बढ़ावा देता है, उपभोग बढ़ने से डिमांड बढ़ती है और डिमांड बढ़ने पर देश के अंदर निजी निवेश और विदेशी निवेश बढ़ता है. इसलिए इस साइकिल को समझना और इसे तोड़कर अपना खुद का ग्रोथ मॉडल बनाना भारत के लिए बहुत जरूरी है.
भारत आने वाले समय में ना सिर्फ डिजिटल, ग्लोबल मैन्यूफैक्चरिंग के दम पर आगे बढ़ सकता है. बल्कि फूड प्रोसेसिंग जैसे सेक्टर में बड़ा निवेश करके देश की आबादी और ग्लोबल डिमांड की सप्लाई को भी पूरा करके अपनी एक अलग लीप ले सकता है.

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