पटरी पर दौड़ रही ग्रामीण भारत की इकोनॉमी, महंगाई को ऐसे दे रही मात

ग्रामीण खपत में सुधार के साथ मांग की स्थिति बेहतर हो रही है और इससे निजी क्षेत्र के निवेश के दोबारा रफ्तार पकड़ने की उम्मीद है. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के लेटेस्ट बुलेटिन में प्रकाशित एक लेटर में इस बात की जानकारी दी है. उसके मुताबिक, लगातार भू-राजनीतिक तनाव, प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में मंदी की आशंकाओं के दोबारा पैदा होने और मौद्रिक नीति में बदलाव के चलते वित्तीय बाजार में अस्थिरता ने वैश्विक आर्थिक संभावनाओं को प्रभावित किया है.
आरबीआई ने कही ये बात
दुनिया के अलग-अलग देशों में महंगाई के तय सीमा से कम न होने से ऐसा हुआ है. रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर माइकल देबब्रत पात्रा के नेतृत्व वाली एक टीम ने अर्थव्यवस्था की स्थिति टाइटल वाला यह लेटर तैयार किया है. हालांकि, आरबीआई ने कहा कि इसमें व्यक्त विचार लेखकों के हैं और रिजर्व बैंक के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं.
भारत में आय बढ़ने से ग्रामीण खपत में सुधार के साथ कुल मांग की स्थिति में भी तेजी आ रही है. मांग को बढ़ावा देने से कुल निवेश में निजी क्षेत्र की अबतक की धीमी भागीदारी भी फिर से जोर पकड़ सकती है. उसमें कहा गया है कि प्रमुख महंगाई जून के अपने चरम से घटकर जुलाई में 3.5 प्रतिशत पर आ गई लेकिन ऐसा मुख्य रूप से आधार प्रभावों के सांख्यिकीय दबाव के कारण हुआ.
इस लेख में बजट की हुई तारीफ
आम बजट में राजकोषीय विवेक और व्यापक स्थिरता के बीच सही संतुलन बनाया गया है और इससे मध्यम अवधि में वृद्धि का नजरिया मजबूत हुआ है. 23 जुलाई को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश किए गए बजट दस्तावेज में व्यापक आर्थिक स्थिरता को मजबूत करने और अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में क्षमता दोहन पर जोर दिया गया है.
लेख में कहा गया कि आम बजट 2024-25 राजकोषीय विवेक और व्यापक आर्थिक स्थिरता के बीच सही संतुलन बनाता है, जिससे मध्यम अवधि के लिए वृद्धि का नजरिया मजबूत होगा. लेख में यह भी कहा गया है कि इसमें व्यक्त विचार केंद्रीय बैंक के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं.
रोजगार पैदा होने की बढ़ी उम्मीद
इसमें कहा गया कि बजट दस्तावेज का मकसद राजकोषीय समेकन को आगे बढ़ाते हुए वृद्धि और रोजगार को समर्थन देना है. इसके मुताबिक, राजकोषीय घाटे को 4.9 प्रतिशत तक सीमित करने के साथ सरकार का इरादा इस आंकड़े को उस स्तर पर बनाए रखना है, जहां केंद्र सरकार का लोन सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के अनुपात में घटता रहेगा.

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