तलाक के बाद लड़की के पिता ने ससुरवालों से वापस मांगी ज्वैलरी और सामान… सुप्रीम कोर्ट ने दिया ये फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने पारिवारिक विवाद से जुड़े मामले पर अपने फैसला सुनाते हुए कहा कि स्त्रीधन महिला की एकमात्र संपत्ति होती है, और उसके पिता उसके स्पष्ट अनुमति के बिना ससुराल वालों से स्त्रीधन की वसूली का दावा नहीं कर सकते. साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि आपराधिक कार्यवाही का मकसद गलत काम करने वाले को न्याय के कटघरे में लाना है, न कि उनसे बदला लेना है.
जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस संजय करोल की बेंच ने आपराधिक विश्वासघात से जुड़े एक केस की सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया. कोर्ट में यह केस तेलंगाना के पडाला वीरभद्र राव नाम के शख्स ने दाखिल किया था जिसमें उन्होंने अपनी बेटी के पूर्व ससुराल वालों पर शादी के समय दिया गया स्त्रीधन वापस नहीं करने का आरोप लगाया गया था.
स्त्रीधन एक ऐसा शब्द है जिसका इस्तेमाल धन और संपत्ति समेत गिफ्ट को संदर्भित करने के लिए किया जाता है जो एक महिला को उसके माता-पिता, रिश्तेदारों या ससुराल वालों की ओर से दिया जाता है. बेंच ने कानून की स्थापित स्थिति को भी दोहराया कि एक महिला (पत्नी या पूर्व पत्नी) का स्त्रीधन पर उसी का एकमात्र अधिकार है.
तलाक के 3 साल बाद महिला ने की दूसरी शादी
तलाकशुदा महिला के पिता की ओर से अपनी बेटी के पूर्व ससुराल वालों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले के संबंध में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा, “हम यह कह सकते हैं कि आपराधिक कार्यवाही का मकसद गलत काम करने वाले को न्याय के कटघरे में लाना है, और यह उन लोगों के खिलाफ बदला लेने का कोई साधन नहीं है, जिनके साथ शिकायतकर्ता की दुश्मनी हो सकती है.”
पडाला वीरभद्र राव की ओर से दावा किया गया था कि उन्होंने 1999 में शादी के समय सोने के जेवर समेत कई अन्य सामान गिफ्ट के रूप में दिए थे. बाद में उनकी बेटी अपने पति के साथ अमेरिका चली गई. अपनी शिकायत में राव ने कहा कि उनकी बेटी और दामाद ने शादी के 16 साल बाद तलाक लेने का फैसला लिया. दोनों का 14 अगस्त 2015 को अमेरिका में तलाक हो गया.
फैसले में कोर्ट ने क्या कहा
साल 2021 में दर्ज कराई गई एफआईआर में राव ने आरोप लगाया कि उन्होंने अपनी बेटी को गहने गिफ्ट के रूप में दिए थे और ये सब चीजें शादी के समय उसके ससुराल वालों को सौंप दिया था, लेकिन अब उन्हें वापस नहीं किया गया. उनकी बेटी ने 2018 में दूसरी शादी कर ली. भारतीय दंड संहिता की धारा 406 (आपराधिक विश्वासघात) के तहत एफआईआर दर्ज कराई गई थी. कोर्ट ने कहा कि महिला के तलाक के 5 साल से अधिक समय बाद और उसके पुनर्विवाह के 3 साल बाद दर्ज की गई एफआईआर में कोई दम नहीं है.
जस्टिस करोल ने कहा कि स्त्रीधन पर पति का कोई अधिकार नहीं है. बेटी के जीवित एवं स्वस्थ होने और स्त्रीधन की वसूली जैसे फैसले लेने में पूरी तरह सक्षम होने पर स्त्रीधन पर पिता का भी कोई अधिकार नहीं बनता है. साथ ही शीर्ष अदालत ने राव की बेटी के पूर्व ससुराल वालों के खिलाफ कार्यवाही को भी खारिज कर दिया.
क्या था मामला
समय बीतने, आपसी रजामंदी से तलाक लेने और सभी वैवाहिक मुद्दों के निपटारे के बावजूद, पिता ने जनवरी 2021 में एफआईआर दर्ज कराई, जिसमें आरोप लगाया गया कि ससुराल वालों ने ‘स्त्रीधन’ वापस नहीं किया है.
आईपीसी की धारा 406 के तहत आपराधिक विश्वासघात और दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 6 के तहत आरोप पत्र दायर किया गया था. इस पर पूर्व ससुराल वालों ने कार्यवाही को रद्द करने के लिए तेलंगाना हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. हाई कोर्ट ने 22 दिसंबर, 2022 को आरोप पत्र में लगाए गए आरोपों को प्रथम दृष्टया विचारणीय पाते हुए एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया. इसके बाद अभियुक्त ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष वर्तमान अपील दायर की.

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