जातीय जनगणना पर क्या है आरएसएस की राय, मोहन भागवत ने बैठक में क्या कहा?

देश में जातीय जनगणना को लेकर संघ में चिंतन और मनन का दौर जारी है. आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) जातीय जनगणना के खिलाफ नहीं है. मगर, वो इसके चुनावी और राजनीतिक इस्तेमाल के बेहद खिलाफ है. जातीय जनगणना को लेकर संघ का मत है कि ये एक बेहद गंभीर और संवेदनशील मुद्दा है, जो राष्ट्रीय एकता के लिहाज से भी बहुत महत्वपूर्ण है. इसे महज चुनाव, चुनाव प्रचार या राजनीति के लिए नहीं इस्तेमाल करना चाहिए. संघ का कहना है कि जातीय जनगणना को आधार बनाकर इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए.
संघ का मानना है कि समाज के पिछड़े हुए और गरीब लोगों की भलाई और बेहतरी के लिए सरकार चाहे तो गणना करवा सकती है. ऐसा पहले भी हुआ है. कल्याण के लिए विशेषकर उन जातियों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है, जो सालों से पिछड़ी रही हैं. वैसे लोगों की भलाई के लिए योजनाओं को बनाने में कई बार सरकार को इस तरह के नंबर की आवश्यकता पड़ती है. ऐसा पहले भी किया जा चुका है.
हमें संघ की सोच के आधार पर सबको साथ लेकर चलना है
संघ प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने साफ तौर पर कहा कि जाति गणना को राजनीतिक टूल के तौर पर नहीं लिया जाना चाहिए. टीवी9 को सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को संघ समन्वय बैठक में कहा था कि राजनीतिक लोगों का काम है समाज को जाति में बांटकर उससे उत्पन्न स्थिति का फायदा उठाना. इसके लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाना. मगर, इससे अलग हमें संघ की सोच के आधार पर सबको साथ लेकर चलना है. सामाजिक समरसता बनाकर रखना हमारा कर्तव्य है.
संघ जिसके लिए बना है वो हमको करते रहना है.
सूत्रों के मुताबिक, भागवत ने ये भी कहा था कि राजनीतिक दल अपने स्वार्थ के चलते इस तरह सामाजिक वर्गीकरण की मांग करते रहेंगे. ये होनी चाहिए या नहीं…ये सरकार और कोर्ट का काम है. हमारा जो काम है और संघ जिसके लिए बना है वो हमको करते रहना है. देश के लिए समाज को एकजुट करना. सभी को साथ लेकर चलना. समाज में ऊंच-नीच को खत्म करने के निरंतर प्रयास करना.
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कुल मिलाकर आरएसएस जातीय जनगणना पर बीच का रास्ता लेकर चल रहा है. वो ना ही इसके खिलाफ दिखना चाहता है और ना ही इसके पक्ष में. जातीय जनगणना को लेकर आरएसएस देशभर में सामाजिक समरसता और भाईचारे का संदेश लेकर देशभर में जनजागरण अभियान चलाने के पक्ष में है.
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