प्रदूषण कंट्रोल में चीन ने कर दिया तारीफ करने वाला काम, लेकिन भारत…

एकाध महीने में भारत में ठंड दस्तक देने वाली है. इसी के साथ हर बार की तरह प्रदूषण की समस्या भी लौटेगी. जो आपको बीमार बना देने के लिए तो काफी होंगी. धूंध की चादर से कई कई दिन तक आसमान नहीं नजर आएगा, मास्क पहनने की सलाह दी जाएगी. तो स्कूल कॉलेज के बंद होने की भी नौबत आ जाती है. और अगर आप दिल्ली में रहते हैं तो मानकर चलिए कि आप दुनिया की सबसे जहरीली हवा का सेवन कर रहे हैं. दिल्ली दुनिया की सबसे प्रदूषित शहरों में टॉप पर है.
ऐसा ही कुछ बुरा हाल चीन का भी हुआ करता था. लेकिन यूनाइटेड नेशन्स की एक रिपोर्ट कहती है कि चीन ने अपने यहां प्रदूषण पर काफी हद तक काबू पा लिया है. चीन ही नही, यूरोप के देशों में भी काफी सुधार हुआ है. रिपोर्ट के मुताबिक चीन और यूरोप में इंसानी उत्सर्जन में गिरावाट की वजह से पीएम 2.5 के स्तर में भी कमी दर्ज की गई. क्यों पीएम 2.5 इतना खतरनाक है और भारत में कैसा है प्रदूषण का हाल?
पीएम 2.5 कितना खतरनाक?
PM यानी पार्टिकुलेट मैटर. यह प्रदूषण के बेहद ही महीन कण होते हैं जिसकी वजह से ही प्रदूषण होता है. इन कणों का डायमीटर 2.5 माइक्रोमीटर या उससे कम होता है. यह कण स्वास्थ्य के लिए बहुत खतरनाक होते हैं. खासकर अगर लंबे समय तक हम इन कणों के संपर्क में रहे तो यह स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित करता है.
इनके बारे में कहा जाता है कि ये हमारे फेफड़ों से होते हुए हमारे खून की नली तक पहुंच जाते हैं.यह कण आमतौर पर फॉसिल फ्यूल यानी जीवाशम ईंधन, जंगल में लगने वाली आग और रेगिस्तान में उड़ने वाली धूल जैसे सोर्जेस से पैदा होते हैं. और चीन ने इन सभी गतिविधियों को कंट्रोल करने में कामयाबी हासिल की है.
भारत में कैसा है प्रदूषण का हाल?
विश्व मौसम विज्ञान संगठन यानी डब्लूएमओ ने जानकारी दी है कि उत्तरी अमेरिका में जंगल में लगी आग की वजह से 2003 से 2023 के औसत की तुलना में कहीं ज्यादा पीएम 2.5 के कण पैदा हुए थे. इसी तरह इंसानी और औद्योगिक गतिविधियों की वजह से बढ़ते प्रदूषण के चलते भारत में भी पीएम 2.5 का स्तर सामान्य से कहीं ज्यादा रहा.
भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों में भले ही जियो पॉलिटिकल मतभेद हो लेकिन जब प्रदूषण से निपटने की बात आती है तो तीनों देश खुद को एक ही नाव में पाते हैं. 2023 में, भारत वैश्विक स्तर पर तीसरे सबसे प्रदूषित देशों की लिस्ट में शामिल है. IQAir नाम की रिपोर्ट में ये जानकारी दी गई है. जिसमें औसत पीएम 2.5 की मात्रा 54.4 (μg/m3) दर्ज की गई थी. ये विश्व स्वास्थ्य संगठन/ डब्ल्यूएचओ के तय मानक 5 μg/m3 से 10 गुना अधिक है.
प्रदूषण का भारतीय के उम्र पर भी असर
कई रिपोर्टस की मानें तो जीवन प्रत्याशा के लिहाज से भारतीय शहरों में मौजूद प्रदूषण लोगों के स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा है. जो हर भारतीय से उसके जीवन के औसतन 5.4 साल छीन रहा है. इसका सीधा मतलब है कि अगर देश की हवा साफ हो जाए तो उससे यहां रहने वाले हर इंसान के जीवन के औसतन पांच साल बढ़ जाएंगें. इसका सबसे ज्यादा फायदा तो दिल्ली-एनसीआर के क्षेत्रों में रहने वालों लोगों को मिलेगा, जो हर साल प्रदूषण से सबसे ज्यादा प्रभावित रहता है.
प्रदषित हवा से होने वाली मौते भी ज्यादा
अब एक प्रदूषित हवा के कारण होने वाली मौतों के आंकड़ों पर नजर डालते हैं. यह स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर रिपोर्ट 2024 के हवाले से है. जिसके मुताबिक वायु प्रदूषण के कारण साल 2021 में दुनियाभर में 81 लाख लोगों की मौत हुई. सबसे ज्यादा चीन में 23 लाख मौतें और भारत में 21 लाख लोगों की मौत हुई. इतना ही नहीं, भारत में एयर पॉल्यूशन 5 साल से कम उम्र के लगभग 1 लाख 69 हजार 400 बच्चों की मौत की वजह बना.

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