177 विकेट लेने वाले गेंदबाज का हुआ निधन, सिर्फ 6 महीने में खत्म हो गया था इंटरनेशनल करियर

ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट से जुड़ी एक बुरी खबर सामने आई है. ऑस्ट्रेलिया और न्यू साउथ वेल्स के पूर्व तेज गेंदबाज फ्रैंक मिसन का निधन हो गया है. उन्होंने 85 साल की उम्र में आखिरी सांस ली. फ्रैंक मिसन का घरेलू करियर काफी शानदार रहा है, लेकिन इंटरनेशनल क्रिकेट में वह काफी कम समय के लिए ही नजर आए थे. अकिलीज की चोट के कारण उनका इंटरनेशनल करियर 6 महीने भी नहीं चल सका था. हालांकि इस दौरान उन्होंने वेस्टइंडीज के खिलाफ एक टेस्ट सीरीज और इंग्लैंड के खिलाफ एशेज सीरीज में हिस्सा लिया था.
फ्रैंक मिसन का हुआ निधन
फ्रैंक मिसन अपनी फिटनेस के लिए जाने जाते थे. उन्होंने 20 साल की उम्र में भी अपने फर्स्ट क्लास करियर की शुरुआत कर ली थी. 1958-59 सीजन न्यू साउथ वेल्स के लिए डेब्यू करते हुए उन्होंने अपने पहले ही मैच में 6 विकेट लिए थे. इसके बाद उन्हें वेस्टइंडीज के खिलाफ 1960-61 की मशहूर घरेलू सीरीज डेब्यू का मौका मिला. उन्होंने मेलबर्न में वेस्टइंडीज के खिलाफ सीरीज के दूसरे टेस्ट मैच डेब्यू किया था. इस मैच में उन्होंने कुल 2 विकेट हासिल किए थे.
1961 की एशेज सीरीज में लिया हिस्सा
फ्रैंक मिसन को 1961 के एशेज दौरे के लिए भी ऑस्ट्रेलिया की टीम में चुना गया था. इस सीरीज में उन्होंने कुल 2 मैच खेले. लेकिन अकिलीज की चोट के कारण उन्हें दौरे के बीच में ही परेशानी हुई और वह आगे नहीं खेल सके. यहीं उनका इंटरनेशनल करियर भी खत्म हो गया. दूसरी ओर उन्होंने अपने करियर में कुल 71 फर्स्ट क्लास मैच खेले थे. इस दौरान फ्रैंक मिसन ने 31.13 की औसत से 177 विकेट हासिल किए थे. उन्होंने 1958 से 1964 तक फर्स्ट क्लास क्रिकेट खेला था.
क्रिकेट न्यू साउथ वेल्स के मुख्य कार्यकारी ली जर्मेन ने मिसन के निधन पर उन्हें श्रद्धांजलि दी. जर्मेन ने कहा, ‘हम फ्रैंक के परिवार और दोस्तों के प्रति अपनी हार्दिक संवेदना व्यक्त करते हैं, विशेष रूप से उन सभी के प्रति जो एनएसडब्लू पुरुष टीम और ऑस्ट्रेलियाई पुरुष टीम के सदस्य के रूप में उनके साथ खेले. फ्रैंक का करियर चोट के कारण छोटा रहा, जो कि एक विडंबना ही थी, क्योंकि उस समय उनका ध्यान स्वास्थ्य, आहार और फिटनेस पर था, जबकि खेल विज्ञान का इतना प्रचलन नहीं था. उनकी पांच टेस्ट कैप उनकी प्रतिभा और दृढ़ संकल्प की पहचान है और इसमें कोई संदेह नहीं है कि अगर वह चोटिल नहीं होते तो वह अपने राज्य और देश के लिए और भी ज्यादा बार खेल सकते थे.’

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