सांस लेने में हो रही है परेशानी, हो सकता है इस बीमारी का लक्षण, जानिए कारण और बचाव के तरीके

आज के अनहेल्दी लाइफस्टाइल और प्रदूषण भरे वातावरण में रहने की मजबूरी सांस से संबंधित कई बीमारियों का खतरा बढ़ा रही हैं. इन्हीं में से एक है एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम जिसमें मरीज को सांस लेने में परेशानी से लेकर कई अन्य तरह के लक्षण दिखाई देते हैं. ये सिंड्रोम आपके लंग्स पर असर डालता है जिससे लंग्स की हवा पहुंचाने वाले रास्ते में फ्लूइड जमना शुरू हो जाता है. जिसकी वजह से लंग्स में हवा का प्रवेश बंद हो जाता है. जिससे खून में ऑक्सीजन की कमी होनी शुरू हो जाती है जिसे हाइपोक्सिया कहते हैं. आइए जानते हैं क्या है एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम.
मणिपाल अस्पताल में रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग में डॉ. अनुषा सीएम बताती हैं कि दरअसल, एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम वो स्थिति होती है जिसमें लंग्स में फ्लूइड के जमने से हवा का प्रवेश बंद हो जाता है जिससे खून में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है. ये बेहद जानलेवा स्थिति हो जाती है जब इसकी वजह से शरीर के अंगों को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती और शरीर के कम ठीक से काम करना बंद कर देते हैं. आज इस सिंड्रोम के मरीज काफी ज्यादा देखे जा रहे हैं और आईसीयू में आने वाले 10 प्रतिशत मामले इसी समस्या के पाए जाते हैं. एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम की 3 स्टेजिस हैं जिसमें ऑक्सीडेटिव, प्रोलाइफरेटिव और फ़ाइब्रोटिक
एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम क्यों होता है
एआरडीएस मुख्यत: इंफेक्शन, ट्रॉमा, ज्यादा दवा लेने से, ब्लड क्लॉट होने से, ब्लड ट्रांसफ्यूजन, पेनक्रियाज में सूजन, निमोनिया और सांस संबंधी बीमारी होने के कारण होता है.
एआरडीएस के लक्षण
• सांस लेने में कठिनाई
• लगातार खांसी रहना
• सीने में तकलीफ होना
• हार्ट बीट तेज होना
• थकान
• भ्रम की स्थिति पैदा होना
एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम के खतरनाक लक्षण क्या हैं
• रक्त के थक्के जमना
• सिकुड़े हुए फेफड़े
• भ्रम की स्थिति होना
• शरीर के कई अंग खराब हो जाना
• मांसपेशियों में कमजोरी
• फेफड़े में फाइब्रोसिस
• चिंता और अवसाद जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं
इलाज क्या है
इस बीमारी से ग्रस्त मरीजों को अक्सर सांस लेने में तकलीफ के कारण वेंटिलेशन की जरूरत होती है, जिसकी वजह से उन्हें ठीक से सांस दिलाई जा सके. इसके साथ ही खून में ऑक्सीजन की पूर्ति करना होता है जिससे शरीर के सभी अंगों तक ऑक्सीजन की सप्लाई हो सके. इस सिंड्रोम में लंग्स इतने ज्यादा प्रभावित हो जाते हैं कि पेशेंट को रिकवरी में 3 महीने से 3 साल तक का समय लग सकता है. इसलिए डॉक्टर यही परामर्श देते हैं कि इस तरह के लक्षण दिखाई देने पर तुरंत अपनी जांच करानी चाहिए ताकि इस बीमारी का समय रहते पता लगाया जा सके क्योंकि बीमारी का पता जितना जल्द लगेगा इसका इलाज उतनी ही जल्दी संभव हो पाएगा.

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