शुभंकर को बंगाल अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस ने ममता के आगे किया सरेंडर? जानें अब क्या करेंगे अधीर

लोकसभा चुनाव में पराजय के बाद शनिवार रात को बंगाल प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अधीर रंजन को हटा दिया गया. उनकी जगह शुभंकर सरकार को बंगाल कांग्रेस का नया अध्यक्ष बनाया गया है. शुभंकर सरकार को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाये जाने के बाद बंगाल की राजनीति के समीकरण पर सवाल उठने लगे हैं. यह सवाल किये जा रहे हैं कि अधीर की तरह क्या वह भी तृणमूल कांग्रेस का विरोध करेंगे या फिर अच्छे रिश्ते कायम रखेंगे?
शुभंकर सरकार के वामपंथियों के साथ रिश्ते कैसे होंगे? पांच बार सांसद रह चुके अधीर रंजन चौधरी का भविष्य क्या होगा? उनके सामने क्या विकल्प हैं? शुभंकर सरकार की नियुक्ति के बाद इस तरह से सवाल उठने लगे हैं.
वैसे शुभंकर सरकार ममता बनर्जी के साथ गंठबंधन के समर्थन रहे हैं और जब अधीर चौधरी ने लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस के साथ गंठबंधन का विरोध किया था, तो शुभंकर सरकार ने समर्थन किया था और ममता के प्रति नरमी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी से उनकी नजदीकी उन्हें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी दिलाई है.
प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद शुभंकर सरकार रविवार को प्रदेश कांग्रेस कार्यालय विधान भवन पहुंचें. कांग्रेस कार्यालय में प्रवेश करते ही कांग्रेस समर्थकों ने शुभंकर सरकार का फूल-मालाओं से स्वागत किया. इस अवसर पर शुभंकर सरकार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि राज्य में तृणमूल कांग्रेस से ही उनका मुकाबला है.
क्या कांग्रेस को मजबूत कर पाएंगे शुभंकर?
उन्होंने कहा कि मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी, सोनिया गांधी, वणुगोपाल, सबने फैसले लिए, जिम्मेदारी दी. हम जननायक राहुल गांधी के फैसले को गंभीरता से लेंगे और प्रदेश की जनता की आशाओं और आकांक्षाओं को पूरा करेंगे। प्रदेश कांग्रेस को मजबूत और संगठित करने के लिए काम करेंगे.
शुभंकर ने सरकार से कहा, ”मैंने कांग्रेस के हर नेतृत्व से बात की है. मुझे लगता है कि पश्चिम बंगाल के लोग कांग्रेस को चाहते हैं. पूर्व अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी, प्रदीप भट्टाचार्य अपने अनुभव से मेरा मार्गदर्शन करेंगे. मैं आने वाले दिनों में टीम को मजबूत करने की कोशिश करूंगा यही बड़ी बात है.”
शुभंकर को अध्यक्ष बनाये जाने के मायने
लेकिन शुभंकर सरकार की नियुक्ति और अधीर चौधरी की विदाई ने कई सवाल छोड़ दिया है. राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार पार्थ मुखोपाध्याय कहते हैं कि अधीर चौधरी पांच बार के सांसद रहे हैं. एक बयान जारी कर जिस तरह से उन्हें अध्यक्ष पद से हटा दिया गया. यह उनका अपमान है.
उनका कहना है कि प्रदेश कांग्रेस की जिम्मेदारी एक ऐसे नेता को दी गई है, जिसने कभी एक चुनाव भी नहीं जीता है और अखिल भारतीय कांग्रेस के सचिव और बंगाल युवा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष के सिवा और कोई भी बड़ी जिम्मेदारी नहीं संभाली है और न ही बंगाल कांग्रेस में उनकी बहुत पकड़ है. ऐसे में शुभंकर सरकार नेमप्लेट में तब्दील हो चुकी कांग्रेस में क्या बदलाव ला पाएंगे या कांग्रेस के विभिन्न गुट उन्हें कितना स्वीकार कर पाएंगे. इसमें संदेह ही है.
ममता के रास्ते में कांटा बने थे अधीर
पार्थ मुखोपाध्याय का कहना है कि अधीर चौधरी लगातार तृणमूल कांग्रेस और ममता बनर्जी का विरोध कर रहे थे. अधीर चौधरी का तर्क था कि कांग्रेस को खत्म करने का काम तृणमूल कांग्रेस और ममता बनर्जी कर रही हैं. तृणमूल कांग्रेस के साथ रहकर कांग्रेस का बंगाल में उत्थान नहीं हो सकता है. तृणमूल कांग्रेस न केवल कांग्रेस नेताओं पर अत्याचार करती है, बल्कि उसके नेताओं को भी तोड़ रही है. वह लगातार कांग्रेस को कमजोर कर रही है. अधीर चौधरी के विरोध के कारण ही लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के बीच गठबंधन नहीं हो पाया था. ऐसे में कांग्रेस नेतृत्व में प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर ऐसे व्यक्ति को बैठाया है, जो न केवल ममता बनर्जी से समझौते का पक्षधर है, बल्कि राजनीतिक कद भी अधीर रंजन चौधरी जैसा नहीं है.
तृणमूल के सामने क्या कांग्रेस ने कर दिया है सरेंडर?
ऐसे में कांग्रेस नेतृत्व आसानी से अपनी बात मनवा पाएगा. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की जिस तरह से ताकत बढ़ी है और प्रस्तावित विधानसभा चुनाव हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड से कांग्रेस को आशा है कि उसकी ताकत बढ़ेगी. ऐसे में कांग्रेस को राष्ट्रीय राजनीति में तृणमूल कांग्रेस को जरूरत होगी और शुभंकर सरकार को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस ने आगे की रणनीति की पृष्ठभूमि तैयार की है कि भविष्य में यदि कांग्रेस को तृणमूल कांग्रेस की जरूरत हो तो वह आसानी से मिल जाए. क्योंकि कांग्रेस नेतृत्व का मानना है कि फिलहाल बंगाल में कांग्रेस अपने बूते पर विस्तार नहीं कर सकती है. उसे तृणमूल कांग्रेस की जरूरत है. लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने जीत हासिल कर यह साबित भी कर दिया है.
क्या करेंगे अब अधीर? जानें विकल्प
वहीं, प्रदेश कांग्रेस के पद से हटाये जाने के बाद अधीर चौधरी रविवार को हावड़ा में आरजी कर रेप मामले में विरोध करते हुए दिखे और अपने पुराने रूख के मद्देनजर ममता बनर्जी की सरकार पर जमकर हमला बोला. ऐसे में राजनीतिक विश्वलेषकों का कहना है कि अधीर चौधरी चुनाव में पराजित हुए हैं. अधीर चौधरी कट्टर ममता विरोधी रहे हैं और वह लेफ्ट में नहीं लौट सकते हैं.
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार से लेकर सांसद समिक भट्टाचार्य अधीर चौधरी को लेकर सहानुभूति दिखा चुके हैं और कह चुके हैं कि वह गलत पार्टी में हैं. ऐसे में वर्तमान में अधीर चौधरी के सामने एक तरफ खाई है और दूसरी तरफ कुआं हैं. या तो कांग्रेस में रहकर वह हाशिये पर रहे या फिर भाजपा का दामना थाम कर राजनीति की मुखधारा में लौटे. हालांकि अधीर क्या फैसला करते हैं. यह भविष्य में ही तय होगा.
शुभंकर को अध्यक्ष बनाये जाने पर जानें क्या बोले अधीर
यह पूछे जाने पर कि क्या वह नियुक्ति पर कुछ कहना चाहते हैं, चौधरी ने कहा, ”मैं कुछ नहीं कहना चाहता. कोई भी अध्यक्ष बन सकता है. प्रदेश पार्टी अध्यक्ष चुनने का अधिकार पार्टी आलाकमान को है. यदि उसने एक पार्टी अध्यक्ष का चयन किया, तो कोई मुद्दा क्यों होगा? मुझे कोई आपत्ति नहीं है.
वहीं, वामपंंथियों के साथ कांग्रेस के संबंध को लेकर लेफ्ट पार्टियों की निगाहें टिकी हुई है. हालांकि सीपीएम केंद्रीय समिति के सदस्य सुजन चक्रवर्ती कहते हैं कि राष्ट्रीय कांग्रेस एक अखिल भारतीय पार्टी है. वे पार्टी कैसे चलाएंगे, अध्यक्ष कौन होगा, यह वे खुद तय कर सकते हैं. ज्यादा सोचना, ज्यादा राय देना, चिंता करना हमारा काम नहीं है.

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