हरियाणा: सैलजा पर सिमटा पूरा चुनाव, मिल रहे ऑफर पर ऑफर, किसे नफा और किसे नुकसान
हरियाणा विधानसभा चुनाव प्रचार से कांग्रेस नेता कुमारी सैलजा के दूरी बनाए रखने के चलते राजनीति गरमा गई है. कांग्रेस हाईकमान और भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने सैलजा को लकेर जहां सैलजा को लेकर खामोशी इख्तियार कर रखी है तो बीजेपी से लेकर बसपा तक इस बात का मुद्दा बनाने में जुटी है. बीजेपी नेता व केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल, अर्जुन मेघवाल ही नहीं बसपा के कार्डिनेटर आकाश आनंद ने कुमारी सैलजा को अपने दलों में आने का ऑफर दिया है. इस तरह हरियाणा का पूरा चुनाव कुमारी सैलजा के मुद्दे पर सिमट गया है.
कांग्रेस की दिग्गज नेता और पार्टी की दलित चेहरा माने जाने वाली कुमारी सैलजा 12 सितंबर से साइलेंट मोड में है. विधानसभा चुनाव प्रचार में अभी तक नहीं उतरी है, जिसे विपक्षी दल कांग्रेस के खिलाफ चुनाव में सियासी हथियार बनाने में जुटे हैं. बसपा और बीजेपी की तरफ से सैलजा को ऑफर पर ऑफर देकर चुनावी एजेंडा सेट किए जाने लगे हैं. अब बसपा प्रमुख मायावती ने कुमारी सैलजा के बहाने दलित नेताओं और अपने समुदाय को साधने का बड़ा सियासी दांव चला है. ऐसे में देखना है कि चुनाव में किसे नफा और किसे नुकसान पहुंचता है?
चुनाव में दलित वोटों की अहम भूमिका
हरियाणा में इस बार के विधानसभा चुनाव में दलित वोटों को काफी निर्णायक माना जा रहा है. कांग्रेस का पूरा दारोमदार जहां दलित मतों पर टिका है तो वहीं विपक्ष की रणनीति है कि लोकसभा में कांग्रेस को मिले दलित वोटों में सेंध लगाई जाए. कुमारी सैलजा की नाराजगी को बीजेपी से लेकर बसपा तक दलित स्वाभिमान से जोड़ रही है. बीजेपी के कद्दावर नेता और केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर से लेकर मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी और अनिल विज तक लगातार कह रहे हैं कि दलित होने की वजह से ही कांग्रेस ने कुमारी सैलजा का अपमान किया है.
सैलजा को लेकर बोली बीजेपी
केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कुमारी सैलजा को लेकर कहा कि कांग्रेस की परंपरा ही दलितों का अपमान करने की है. बीजेपी किसी भी नेता का अपमान बर्दाश्त नहीं करती, न ही अपशब्दों के प्रयोग को बढ़ावा देती है. उन्होंने कहा कि जिस प्रकार से भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके समर्थकों ने कुमारी सैलजा का अपमान किया है, उसे जनता कभी नहीं भूलेगी, कांग्रेस को खामियाजा भुगतना पड़ेगा. इसी तरह बीजेपी के सभी नेता सैलजा को लेकर बोल रहे हैं.
“सैलजा के लिए BSP के दरवाजे खुले”
वहीं, आकाश आनंद से लेकर बसपा प्रमुख मायावती भी कुमारी सैलजा के बहाने दलित समुदाय को साधने का दांव चल रहे हैं. आकाश ने कहा कि कुमारी सैलजा के लिए बसपा के दरवाजे हमेशा के लिए खुले हैं. कांग्रेस दलित नेताओं को सम्मान नहीं करती है. अब मायावती ने भी कुमारी सैलजा को नसीहत देते हुए कांग्रेस पर जोरदार हमला बोला है. उन्होंने कहा कि देश में अभी तक के हुए राजनीतिक घटनाक्रमों से यह साबित होता है कि कांग्रेस और अन्य जातिवादी पार्टियां दलित समाज के नेताओं और वोट को बुरे वक्त में सिर्फ इस्तेमाल करती हैं और फिर उन्हें दरकिनार कर देती हैं. दलित नेताओं को अपने मसीहा डा.अंबेडकर से प्रेरणा लेकर खुद ही ऐसी पार्टियों से अलग हो जाना चाहिए. साथ ही समाज को दूर रखना चाहिए.
सैलजा ने क्यों बनाई प्रचार से दूरी
सिरसा से सांसद कुमारी सैलजा हरियाणा में कांग्रेस की सबसे बड़ी दलित चेहरा मानी जाती हैं. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस टिकट बंटवारे में हुड्डा खेमे को ही अहमियत मिली है और सैलजा अपने 8 से 10 करीबी नेताओं को ही टिकट दिला सकी हैं. इतना ही नहीं वो अपने ओएसडी डॉ. अजय चौधरी को भी टिकट नहीं दिला पाईं. ऐसे में हुड्डा खेमे के समर्थकों की ओर से की गईं टिप्पणियों से सैलजा नाराज मानी जा रहीं और चुनाव प्रचार से दूरी बनाए हुए हैं. ऐसे में बसपा और बीजेपी ने कुमारी सैलजा के बहाने दलित वोटों को साधने का दांव चला है.
हरियाणा में करीब 21 फीसदी दलित मतदाता हैं. राज्य की कुल 90 में से दलित समाज के लिए 17 विधानसभा सीटें सुरक्षित हैं, लेकिन सियासी प्रभाव उससे कहीं ज्यादा है. कुमारी सैलजा के चुनावी कैंपेन से दूरी बनाए रखने के चलते दलित समुदाय में भी नाराजगी बढ़ सकती है. दलित वोटर किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत राज्य में रखते हैं. ऐसे में कुमारी सैलजा अगर कांग्रेस से दूरी बनाए रखती हैं तो कांग्रेस का चुनावी गेम बिगड़ सकता है, क्योंकि कांग्रेस जाट-दलित समीकरण के सहारे ही सत्ता का वनवास खत्म करना चाहती है. अब बसपा से लेकर बीजेपी तक ने सैलजा को मुद्दा बना दिया है.
सैलजा का किन सीटों पर प्रभाव
कुमारी सैलजा का सियासी प्रभाव पंचकूला, अंबाला, यमुना नगर , हिसार और सिरसा की 20 विधानसभा सीटों पर है. सैलजा की नाराजगी से इन सीटों पर पार्टी का समीकरण गड़बड़ा सकता है. ये सारी सीटें कांग्रेस की पारंपरिक सीटें रही हैं, क्योंकि, सिरसा से कुमारी सैलजा इस बार लोकसभा चुनाव जीती हैं और उनकी नारजगी का लाभ बसपा और बीजेपी उठाना चाहती हैं. इसीलिए उन्हें अपनी पार्टी में आने का खुला ऑफर दे रही है.
बीजेपी को क्या होगा लाभ
बीजेपी को कोटे के अंदर कोटे में आरक्षण देने से कई सीटें पर लाभ हो सकता है. दलित बहुल इन 15-20 सीटों पर बीजेपी की स्थिति अच्छी नहीं कही जा रही है. सैलजा अगर पार्टी में शामिल होती हैं तो इन सीटों पर बीजेपी अच्छा कर सकती है. चुनाव से ठीक पहले बीजेपी की हरियाणा सरकार ने दलित समुदाय को मिल रहे 20 फीसदी आरक्षण को दो हिस्सों में बांटकर बड़ा सियासी दांव चला है.
हरियाणा का जातीय समीकरण
हरियाणा में दलित समुदाय में सबसे बड़ा प्रभाव रविदास का है, जो दलित समाज में 50 फीसदी से भी ज्यादा हैं. रविदासी के अलावा बाल्मिकी और अन्य दूसरे दलित समुदाय हैं. रविदासी दलित पूरी तरह से कांग्रेस के साथ हैं. अन्य दलित समुदाय अलग-अलग दलों के साथ बिखरे हुए हैं. ऐसे में हरियाणा की राजनीति पर रविदासी समुदाय का दबदबा है. हरियाणा की बीजेपी सरकार ने दलित आरक्षण को दो हिस्सों में बांट दिया है, जिसमें 10% रविदासी और 10% गैर-रविदासी दलित जातियों को दिया है. गैर-रविदासी जातियों में 36 जातियां दलितों की आती हैं. सैलजा भी इसी वंचित जाति से आती हैं.
कुमारी सैलजा ऐसे ही कांग्रेस के चुनाव प्रचार से दूरी बनाए रखती हैं तो बीजेपी को इससे डबल फायदा हो सकता है. बीजेपी हरियाणा में जाट बनाम दलित का दांव चल सकती है. इस तरह कांग्रेस के साथ लोकसभा चुनाव में गया दलित वोट का लाभ उसे कुछ मिल सकता है. इसी तरह बसपा अपने कोर वोटबैंक को अपने पाले में लाने की कवायद में है, जिसके चलते ही आकाश आनंद से लेकर मायावती तक कुमारी सैलजा का मुद्दा बना रही है. इस तरह दलित वोटों को साधने का सियासी दांव चल रहे हैं, लेकिन इस शह-मात के खेल में अब नतीजे ही बताएंगे किसे सियासी नफा और किसे सियासी नुकसान होता है?