अरब देशों के बीच कैसे जन्मा दुनिया का इकलौता यहूदी देश, एक पन्ने से रखी गई इजराइल की नींव!

मिडिल ईस्ट का एक हिस्सा लंबे समय से तनाव और अशांति से जूझ रहा है. दुनिया के नक्शे पर 14 मई 1948 को उभरने वाला देश इजराइल बीते एक साल से हमास के खिलाफ जंग लड़ रहा है, वहीं उत्तरी मोर्चे पर उसे लेबनान के हिजबुल्लाह की चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है. लेकिन क्या आपको मालूम है कि अरबों की धरती के बीच एकलौते यहूदी मुल्क की स्थापना कैसे हुई?
इजराइल की नींव पहले विश्व युद्ध के दौरान एक पन्ने के घोषणापत्र से रखी गई, तारीख थी 2 नवंबर और साल 1917. इस दिन ब्रिटेन ने फिलिस्तीनी सरजमीं पर पहली बार यहूदी राष्ट्र का समर्थन किया. इसके करीब डेढ़ साल बाद 3 मार्च 1919 को तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन ने भी यहूदी होमलैंड की मांग का समर्थन किया. जल्द ही अमेरिकी संसद ने भी बालफोर डिक्लेरेशन के समर्थन में प्रस्ताव पारित कर दिया.
क्या था बालफोर घोषणापत्र?
ब्रिटेन के तत्कालीन विदेश मंत्री आर्थर बालफोर ने यहूदी समुदाय के एक बड़े नेता बैरन लियोनेल वॉल्टर रॉथ्सचाइल्ड को बालफोर घोषणापत्र भेजा, 67 शब्दों के बालफोर डिक्लेरेशन में जो मुख्य बात लिखी थी वो थी- ‘ब्रिटेन के सम्राट की सरकार यहूदियों के लिए फिलिस्तीन में एक अलग राष्ट्र बनाने के पक्ष में हैं. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए जो कुछ भी जरूरी होगा वो किया जाएगा.’
ब्रिटेन के कब्जे में था फिलिस्तीनी हिस्सा
इस समय फिलिस्तीनी धरती पर ब्रिटेन का कब्जा था और फिलिस्तीन का प्रशासन ब्रितानी हुकूमत के हाथों में था. तत्कालीन विदेश मंत्री आर्थर बालफोर यहूदियों के समर्थक थे और उनका मानना था कि सरकार को भी यहूदियों का खुलकर साथ देना चाहिए. जल्द ही बालफोर ने उस समय के बड़े यहूदी नेताओं को भी इस प्रस्ताव के लिए मना लिया था.
बालफोर ने इस घोषणापत्र को सबसे पहले यहूदी नेता वॉल्टर रॉथ्सचाइल्ड को भेजा था जो काफी धनी थे और उन्होंने 19वीं सदी के आखिर में फिलिस्तीन में बड़े पैमाने पर जमीन खरीदी और यहूदी बस्तियों को बसाने में काफी निवेश किया. वह मिडिल ईस्ट में अलग इजराइल राष्ट्र बनाने के सबसे बड़े पक्षधर थे. इसके विपरीत ब्रिटेन में यहूदियों की आधिकारिक संस्था बोर्ड ऑफ डेप्यूटीज के सदस्य इस मुद्दे पर एकमत नहीं थे, शायद यही वजह थी बालफोर ने घोषणापत्र सीधे रॉथ्सचाइल्ड को भेजा न कि ‘बोर्ड ऑफ डेप्यूटीज’ को.
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यहूदियों के खिलाफ बढ़ती हिंसा से मिला बल
साल 1925 में रॉथ्सचाइल्ड ब्रिटेन में यहूदियों की आधिकारिक संस्था बोर्ड ऑफ डेप्यूटीज के अध्यक्ष बन गए, इसके बाद यहूदियों के लिए अलग राष्ट्र के गठन की मांग और कोशिशें तेज़ होने लगी. इस दौरान यूरोप में यहूदियों के खिलाफ हिंसा बढ़ती जा रही थी, जगह-जगह उन्हें निशाना बनाया जा रहा था. जर्मनी में हिटलर के शासन के दौरान यहूदियों के नरसंहार ने अलग यहूदी मुल्क की मांग को बल दिया. 1939 से 1945 तक चले द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इजराइल के गठन के प्रयास तेज़ हो गए, 14 मई 1948 को फिलिस्तीन क्षेत्र से ब्रिटेन का कब्जा खत्म होने के साथ ही इजराइली नेताओं ने अलग इजराइल देश के गठन का ऐलान कर दिया. बताया जाता है कि इस घोषणा के महज 11 घंटे के भीतर ही अमेरिका, इजराइल को मान्यता देने वाला पहला देश बन गया.
अलग फिलिस्तीन-इजराइल बनाने का प्रस्ताव
हालांकि इजराइल के गठन से पहले साल 1947 में संयुक्त राष्ट्र में ‘टू नेशन समाधान’ का समर्थन किया गया था. यानी इजराइल और फिलिस्तीन दो अलग-अलग राष्ट्र बनाने को मंजूरी दी गई. साथ ही मुसलमानों, यहूदियों और क्रिश्चंस के लिए पवित्र माने जाने वाले विवादित क्षेत्र येरुशलम को एक अंतरराष्ट्रीय शहर बनाया गया. जिससे तीनों समुदायों के बीच के तनाव को कम किया जा सके, लेकिन अरब देश इस प्रस्ताव के खिलाफ थे.
मिडिल ईस्ट में क्यों बसाया गया इजराइल?
दरअसल इजराइल जिस जगह पर बसा है उसे प्रॉमिस लैंड कहा जाता है. यहूदियों की मान्यता है कि ये जमीन का वो हिस्सा है जो ईश्वर ने उनके पूर्वज अब्राहम और उनके वंशजों को देने का वादा किया था. संयुक्त राष्ट्र की स्पेशल कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में मिडिल ईस्ट के इस हिस्से में यहूदी देश के लिए धार्मिक और ऐतिहासिक दलीलें दी जिसे UN ने स्वीकार कर लिया.
भले ही इजराइल के गठन में कई सालों का संघर्ष और कई घटनाएं शामिल हों लेकिन माना जाता है कि 1917 के बालफोर डिक्लेरेशन में ही इजराइल के गठन की नींव पड़ गई थी. इस घोषणापत्र में ब्रिटेन की हुकूमत ने यहूदियों को अलग देश देने का वादा कर दिया और फिलिस्तीनी सरजमीं से उनकी ऐतिहासिक जुड़ाव को मान्यता दे दी. जिससे मध्य पूर्व क्षेत्र में यहूदी राष्ट्र के दावे को बल मिला.
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