हरियाणा में कैसे अपने ही अपनों का बिगाड़ रहे खेल, क्या बीजेपी और कांग्रेस प्लान-B के तहत बागियों पर नहीं ले रही एक्शन?
हरियाणा में पांच साल पहले बीजेपी सत्ता में वापसी करने में जरूर कामयाब रही थी. मगर, अपने दम पर बहुमत हासिल नहीं कर पाई थी. बीजेपी के बहुमत की राह में उसके ही नेता रोड़ा बन गए थे. खासकर बीजेपी के वो नेता, जिन्हें पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो बागी होकर चुनाव मैदान में उतरे थे. इनमें से चार जीतने में भी कामयाब रहे थे. इस बार विधानसभा चुनाव में दो दर्जन से ज्यादा नेता बागी होकर मैदान में उतरे हैं. इसके चलते मुकाबला रोचक हो गया है. कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही अपने-अपने बागी नेताओं पर एक्शन लेकर निष्कासन की कार्रवाई करने के बजाय प्लान-बी के तहत काम कर रही है. ताकि चुनाव नतीजे आने के बाद उन्हें साधा जा सके.
हरियाणा विधानसभा चुनाव में अपनों की बगावत ने प्रमुख राजनीतिक दलों को तपिश बढ़ा दी है. बीजेपी के 19 बागी नेताओं ने 15 विधानसभा सीटों पर टेंशन बढ़ा रखी है तो कांग्रेस के 29 बागी नेता 20 विधानसभा सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर किस्मत आजमा रहे हैं. इस तरह बीजेपी और कांग्रेस के लिए उसके अपने ही नेता चुनौती बन गए हैं. बतौर निर्दलीय चुनावी में उतरे ये बागी करीब दो दर्जन सीटों पर दोनों ही प्रमुख दलों के अधिकृत प्रत्याशियों के लिए सियासी खतरा बने हुए हैं. देखना है कि इस बार बागी नेता किसका खेल बनाते हैं और किसका गेम बिगाड़ने का काम करते हैं?
बीजेपी के 19 बागियों ने नहीं छोड़ा चुनावी मैदान
बीजेपी की तमाम कोशिशों के बावजूद 19 बागियों ने चुनावी मैदान नहीं छोड़ा है. बीजेपी के बागी नेताओं में उद्योगपति सावित्री जिंदल भी हैं, जिन्हें हिसार विधानसभा क्षेत्र से टिकट देने से इनकार कर दिया गया था. जिंदल और गौतम सरदाना पार्टी उम्मीदवार डॉ. कमल गुप्ता के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं. इसके अलावा बीजेपी के बागी नेताओं में रानिया से रणजीत सिंह, तोशाम से शशि रंजन परमार, गन्नौर से देवेंद्र कादयान, पृथला से नयन पाल रावत और दीपक डागर, लाडवा से संदीप गर्ग, भिवानी से प्रिया असीजा, रेवाडी से प्रशांत सन्नी, सफीदों से बच्चन सिंह और जसवीर देशवाल, बेरी से अमित, महम से राधा अहलावत, झज्जर से सतबीर सिंह, पूंडरी से दिनेश कौशिक, कलायत से विनोद निर्मल और आनंद राणा और इसराना से सत्यवान शेरा ने ताल ठोक रखी है.
29 नेताओं ने बढ़ा रखी है कांग्रेस की टेंशन
वहीं, कांग्रेस में 29 नेताओं ने करीब 20 विधानसभा क्षेत्रों में टेंशन बढ़ा रखी है. कांग्रेस के बागी नेताओं में पृथला से नीटू मान, पटौदी से सुधीर चौधरी, कोसली से मनोज, कलायत से सतविंदर, अनीता ढुल, दीपक और सुमित, पानीपत (ग्रामीण) से विजय जैन, पानीपत (शहरी) से रोहिता रेवड़ी, भिवानी से अभिजीत, गुहाला से नरेश धांडे और डालूराम, गोहाना से हर्ष छिकारा, झज्जर से संजीत, जींद से प्रदीप गिल, उचाना कला से वीरेंद्र घोघड़िया और दिलबाग सांडिल, बहादुरगढ़ से राजेश जून, बरवाला से संजना सातरोड और नीलम अग्रवाल, बड़ौदा से कपूर नरवाल, अंबाला कैंट से चित्रा सरवारा, पुंडरी से रणधीर गोलन,सज्जन ढुल, सतबीर और सुनीता बतान का भवानीखेड़ा से सतबीर रतेरा, तिगांव से ललित नागर और बल्लभगढ़ से शारदा राठौड़ चुनाव लड़ रहे हैं.
2019 के चुनावी आंकडों पर एक नजर
2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के बहुमत हासिल करने के अरमानों पर उसके ही नेताओं ने पानी फेर दिया था. पिछली बार छह निर्दलीय विधायक चुनाव में जीतकर आए थे, जिनमें से चार बीजेपी के बागी नेता थे. बीजेपी ने जिन्हें टिकट नहीं दिया था, वो निर्दलीय चुनाव लड़े और विधायक बने थे. नयन पाल रावत फरीदाबाद की पृथला सीट से विधायक बने थे. सोमबीर सांगवान दादरी विधानसभा सीट से निर्दलीय जीते थे. बलराज कुंडू महम विधानसभा सीट से निर्दलीय जीतने में सफल रहे. रणधीर सिंह गोलन पुंडरी विधानसभा सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज की थी. ऐसे ही बादशाहपुर विधानसभा सीट पर निर्दलीय राकेश दौलताबाद ने जीत दर्ज की थी.
वहीं, रानिया विधानसभा सीट पर निर्दलीय रणजीत सिंह ने जीत दर्ज की थी. रंजीत सिंह कांग्रेस से बगावत कर मैदान में उतरे थे. 2009 से रंजीत सिंह इस सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ते रहे हैं. ऐसे ही गोपाल कांडा सिरसा विधानसभा सीट पर अपनी हरियाणा लोकहित पार्टी के तौर पर बढ़त बनाए हुए हैं. ये दोनों कांग्रेस से टिकट न मिलने के बाद निर्दलीय उतरे और जीतकर विधायक बने थे.
निर्दलीय विधायक बने थे बीजेपी का सहारा
2019 में बीजेपी अपने दम पर बहुमत का आंकड़ा हासिल नहीं कर सकी थी. इसके बाद निर्दलीय विधायक ही उसके लिए सहारा बने थे. यही वजह है कि इस बार बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही अपने बागी नेताओं पर एक्शन लेने से बच रही है. इन बागियों पर निष्कासन की कार्रवाई नहीं करने पर पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के वकील हेमंत कुमार ने सवाल उठाया है. हेमंत ने कहा कि निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले ये उम्मीदवार अभी भी अपनी पार्टी का हिस्सा हैं और दोनों पार्टियों ने बागी उम्मीदवारों को लेकर प्लान ‘बी’ बना रखा है.
राजनीति में देखा गया है कि जब चुनाव में कोई पार्टी का नेता बागी होकर चुनाव में निर्दलीय या फिर किसी दूसरी पार्टी से उतरता है तो उसे पार्टी छह साल के लिए निष्कासित कर देती है. 2019 विधानसभा चुनाव में इस तरह के बागियों को पार्टी से निष्कासित किया गया था. इस बार दोनों पार्टियां एहतियात बरत रही हैं. माना जा रहा है कि कांग्रेस और बीजेपी अपने-अपने बागियों पर एक्शन लेने से इसीलिए बच रही हैं ताकि सरकार बनाने में अगर जरूरत पड़े तो ये नेता काम आ सकें. इस बार जिस तरह का मुकाबला है, उसे देखते हुए लग रहा है कि सरकार बनाने के लिए निर्दलीय विधायकों की जरूरत पड़ सकती है. ऐसे में माना जा रहा है कि रणनीति के तहत बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही बागी नेताओं पर एक्शन से कतरा रही हैं.