Laapataa Ladies में ऐसा क्या है, कि भारत इसे Oscars में भेज रहा!

जब सिनेमा समाज से दूर जाकर कहानियां दिखाता है, तब वो सपने बेचने लगता है. आज कल लोगों को ये सपने बड़े हसीन लग रहे हैं, ऐसी फिल्में चल भी रही हैं. लेकिन मेरा हमेशा से मानना रहा है कि सिनेमा वो होता है जो समाज के बारे में बात करे और किरण राव ने उनकी फिल्म ‘लापता लेडीज’ के जरिए ये बात करने की कोशिश की थी. उन्होंने एक बहुत ही खूबसूरत फिल्म बनाई और लोगों ने भी इसे पसंद किया. अब ये फिल्म साल 2025 के ऑस्कर अवार्ड्स के लिए भारत की तरफ से ऑफिशियल एंट्री कर रही है. अब इस बारे में विस्तार से बात करते हैं कि लापता लेडीज में ऐसा क्या है? जो भारत इसे ऑस्कर में बतौर ऑफिशियल एंट्री भेज रहा है.
एक तरफ जहां बॉलीवुड साउथ फिल्मों के रीमेक और पैन इंडिया फिल्म बनाने में व्यस्त था, वहां 14 साल बाद किरण राव ने एक ऐसी फिल्म बनाई, जिसमें हमारी मिट्टी की खुशबू है. इस फिल्म में उन्होंने एक सरल कहानी बड़ी ही सहजता से लोगों के सामने पेश करने की कोशिश की है, जो बिना ज्ञान दिए भी बहुत कुछ सिखाकर जाती है. ये कहानी है दो दुल्हनों की, नई-नई शादी करके एक ट्रेन से अपने ससुराल जाते समय कुछ ऐसा हो जाता है कि दुल्हनें बदल जाती हैं. एक दुल्हन के लिए ये आपदा होती है तो शादी के अनचाहे बंधन में बंधने वाली दूसरी दुल्हन के लिए ये सिच्युएशन ‘आपदा में अवसर’ बन जाती है. इस फिल्म में वो कुछ भी नहीं होता जो आप सोचते हो, लेकिन फिर भी ये उत्तर प्रदेश के छोटे से गांव की कहानी मुंबई के थिएटर में बैठकर फिल्म देखने वाले लोगों का भी खूब मनोरंजन करती है और शायद यही बात है कि ये फिल्म इंडिया की तरफ से ऑस्कर के लिए ऑफिशियल एंट्री बन गई है.

लापता लेडीज की खासियत
‘लापता लेडीज’ में एक तरफ दहेज जैसी कुप्रथा के बारे में बात की गई है वहीं दूसरी तरफ ये फिल्म अपनी बहू को सिर आंखों पर बिठाने वाले परिवार की कहानी भी बताती है. इस कहानी में वो दूल्हा भी है, जो एक पत्नी के निधन के बाद दहेज के लिए दूसरी शादी कर रहा है और इस कहानी में एक वो दूल्हा भी है, जो अपनी खोई हुई पत्नी को ढूंढने के लिए जमीन-आसमान एक कर रहा है. इस फिल्म में एक ऐसी दुल्हन भी है, जो आगे पढ़ने के लिए, खुद के पैर पर खड़े होने के लिए आपदा में मिले अवसर का फायदा उठाने की कोशिश करती है, वही इस फिल्म में एक ऐसी दुल्हन भी है, जो सिर्फ अपने पति के पास जाना चाहती है, उसका घर संभालना चाहती है. यहां का पुलिस वाला भी कुछ ऐसा ही है. ये फिल्म बिलकुल हमारी जिंदगी की तरह है, जिसमें चीजें सिर्फ ब्लैक एंड व्हाइट नहीं होती, इसमें बाकी रंग भी होते हैं.
कैसी है किरण राव की ये फिल्म?
इंडिया को एक नजरिये के साथ देखने वालों के लिए ये फिल्म एक सही जवाब है, क्योंकि इसके एक पहलू में ये दिखाया गया है जो वो हमारे देश के बारे में सोचना चाहते हैं और दूसरे पहलू में वो बताया गया है, जो हम उन्हें हमारे देश के बारे में बताना चाहते हैं. इस फिल्म में कही पर भी कोई किरदार कोई जबरन मैसेज नहीं देता, न ही कोई किरदार हमें बड़े-बड़े डायलॉग के साथ ज्ञान देने की कोशिश करता है. फिर भी ये फिल्म हमें बताती है कि हमारी बेटियों को उनकी जिंदगी उनकी सोच के हिसाब से जीने का अधिकार है, हमें उन्हें आत्मनिर्भर बनाना चाहिए. ये कहानी हिंदी सिनेमा के समाज के साथ के उस रिश्ते को मजबूत बनाने की कोशिश करती है, जो साउथ की फिल्मों की आंधी में कमजोर हो गया था.

क्या कहते हैं जानू बरुआ?
12 नेशनल अवार्ड जीत चुके 72 साल के जानू बरुआ ने इस साल फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया की जूरी टीम को लीड किया है. लापता लेडीज को भारत की ऑफिशियल एंट्री के तौर पर भेजने के FFI के निर्णय की पुष्टि करते हुए उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में कहा है कि जूरी को उस एक सही फिल्म का चुनाव करना था, जो हमारे देश को रीप्रेजेन्ट करती हो. इस फिल्म के जरिए हमारे सोशल सिस्टम और यहां की संस्कृति को पेश करना जरूरी था. फिल्म में भारतीयता होना बहुत जरूरी था और लापता लेडीज वही फिल्म थी, जिसकी हमें तलाश थी. इससे अच्छी फिल्म भी हो सकती है, लेकिन हमें दी गई 29 फिल्मों की लिस्ट में से ही हमें किसी एक फिल्म का चुनाव करना था.
मिट्टी की कहानी
कई जगह पर ये कहा जा रहा है कि इस फिल्म को इंटरनेशनल मार्केट की समझ नहीं है. लेकिन मैं यहां ये याद दिलाना चाहती हूं कि रिलीज होने से पहले ‘लापता लेडीज’ को टोरंटो जैसे इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में स्टैंडिंग ओवेशन मिली है और क्यों हम ऑस्कर में उनके लिए बनाई हुई फिल्में भेजें? ये फिल्म इंडिया के वो दो चित्र उनके सामने पेश करेगी, एक जिसे वो देखना चाहते हैं और एक जिसे हम दिखाना चाहते हैं. वैसे भी हमारी मिट्टी से जुड़ी कहानी दुनिया को दिखाने में शर्म कैसी?

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