इस साउथ अमेरिकन देश की गरीबी देख भूल जाएंगे पाकिस्तान, गर्त में पहुंची अर्थव्यवस्था
साउथ अमेरिका के एक बेहद प्रसिद्ध देश ने गरीबी के मामले में पाकिस्तान को भी पीछे छोड़ दिया है. अब तक हम और आप पाकिस्तान की गरीबी और महंगाई के किस्से सुनते आ रहे हैं लेकिन कभी साउथ अमेरिका की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था रह चुके मुल्क की हालात पाकिस्तान से भी खस्ताहाल हो रही है. जहां पाकिस्तान में गरीबी करीब 40 फीसदी के आस-पास है तो इस देश में गरीबी 50 फीसदी का आंकड़ा पार कर चुकी है.
दरअसल हम बात कर रहे हैं अर्जेंटीना की. यह साउथ अमेरिका के दक्षिणी छोर पर बसा है, इसकी समुद्री सीमा पूरब में अटलांटिक महासागर से मिलती हैं. अगर आपने कभी अर्जेंटीना का नाम नहीं भी सुना है, तो इस देश के महान फुटबॉल प्लेयर लियोनल मेसी का नाम तो आपने जरूर सुना ही होगा. अर्जेंटीना की आबादी करीब 4 करोड़ 73 लाख है, यह एक ऐसा देश है जो प्राकृतिक रीसोर्सेस से भरा हुआ है और इसके पास पढ़ा लिखा वर्कफोर्स है. फिर भी यह देश इस वक्त भयानक आर्थिक तंगी से जूझ रहा है.
अर्जेंटीना में 52.9 फीसदी गरीबी
अर्जेंटीना के मौजूदा हालात की बात करें तो देश की आधी से ज्यादा आबादी गरीब है. INDEC स्टेटिस्टिक्स एजेंसी की ओर से गुरुवार को जारी की गई रिपोर्ट के मुताबिक देश में इस साल की पहली छमाही में गरीबी 52.9 फीसदी पहुंच गई है. जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 41.7 फीसदी था. इन आंकड़ों से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि बीते एक साल में अर्जेंटीना में गरीबी कितनी तेजी से बढ़ी है, रिपोर्ट के मुताबिक अर्जेंटीना में हर 5 में से एक व्यक्ति गरीब है.
अर्जेंटीना में क्यों बने इतने बुरे हालात ?
वैसे तो अर्जेंटीना की बदहाली की वजह इतिहास के पन्नों में दर्ज है, लेकिन इस मुल्क को इतनी बुरी स्थिति में पहुंचाने के पीछे बीते 2 से 3 दशक की राजनीति जिम्मेदार है. 1810 में ही आजादी हासिल करने वाले इस देश में करीब एक शताब्दी बाद भारी आर्थिक मंदी आई. 1930 में आए आर्थिक संकट के बाद सेना ने चुनी हुई सरकार के तख्तापलट कर दिया, सेना की नीतियों ने अर्जेंटीना को आर्थिक तौर पर पीछे धकेल दिया.
लंबे समय तक चली सियासी उठापटक के बाद साल 1983 में अर्जेंटीना में दोबारा लोकतंत्र की वापसी हुई. नई सरकार ने देश को आर्थिक तंगी के बुरे दौर से निकालने की कोशिश की, कुछ हद तक इसमें सफलता भी मिली लेकिन साल 2010 में अर्जेंटीना सरकार के एक फैसले ने देश को बड़ा नुकसान पहुंचाया.
2010 में एक फैसले से बड़ा नुकसान
दरअसल तत्कालीन क्रिस्टीना फर्नांडीज की सरकार देश के सेंट्रल बैंक के रिजर्व फंड का इस्तेमाल कर्ज चुकाने में करने लगी. इसके लिए सरकार ने सेंट्रल बैंक के चीफ को बाहर का रास्ता दिखा दिया था, क्योंकि उन्होंने सरकार को फंड ट्रांसफर करने से इनकार कर दिया था, इसकी कीमत उन्हें अपने पद से इस्तीफा देकर चुकानी पड़ी. विशेषज्ञों के मुताबिक यहीं से अर्जेंटीना की अर्थव्यवस्था ऐसे गर्त में गई कि इसे अब सुधारा नहीं जा सका है.
खस्ताहाल अर्थव्यवस्था, छप्पर फाड़ महंगाई और गरीबी के चलते अर्जेंटीना के लोगों का पारंपरिक राजनीतिक से मोहभंग हो गया. साल 2023 के चुनाव में लोगों ने कम राजनीतिक अनुभव वाले दक्षिणपंथी-पूंजीवादी जेवियर मिलई को अवसर दिया.
दक्षिणपंथी राष्ट्रपति ने किए थे बड़े-बड़े वादे
अर्जेंटीना के मौजूदा राष्ट्रपति मिलई ने दिसंबर 2023 में सत्ता की बागडोर संभाली, वह अर्थव्यवस्था में सुधार और महंगाई से निजात दिलाने के लिए बड़े-बड़े दावे कर जनता का विश्वास हासिल करने में कामयाब रहे लेकिन ताजा आंकड़ों से स्पष्ट है कि उनकी सरकार में अर्थव्यवस्था ज्यादा बुरे दौर से गुजर रही है.
दरअसल दिसंबर में पदभार ग्रहण करने के बाद से मिलई सरकार ने बजट घाटे को खत्म करने और महंगाई को नियंत्रित करने के उद्देश्य से बेहद कड़े फैसलों को लागू करना शुरू कर दिया. उनकी सरकार ने परिवहन, ईंधन और ऊर्जा के लिए सब्सिडी में कटौती की, जबकि हज़ारों सरकारी कर्मचारियों की नौकरी चली गई.
सालाना महंगाई दर दुनिया में सबसे ज्यादा
वहीं दिसंबर में जब मिलई ने पदभार संभाला, तो पेसो को 50 प्रतिशत से अधिक डिवैल्यूड (अवमूल्यन) कर दिया, जिससे मासिक महंगाई दर 25.5% तक बढ़ गई. सरकार के इस कदम ने, गंभीर बजट कटौती के अलावा, लोगों की खरीद शक्ति को भी प्रभावित किया. मिलई सरकार के इन प्रयासों ने लोगों को और गरीब बना दिया. हालांकि जुलाई में अर्जेंटीना में मासिक महंगाई दर 4.0 प्रतिशत तक गिर गई, जो 2.5 वर्षों में सबसे कम है, लेकिन इसका 263.4 प्रतिशत का वार्षिक आंकड़ा दुनिया में सबसे अधिक में से एक है.