ताशकंद में लिखी गई एक नई दास्तान, तरक्की इबारत लिखेंगे भारत और उज्बेकिस्तान

आप जब भारतीय इतिहास के पन्नों को पलटना शुरू करेंगे, तो उसके कई चैप्टर उज्बेकिस्तान में खुलेंगे, क्योंकि दोनों देशों के बीच के संबंध कारोबार से लेकर सांस्कृतिक स्तर पर काफी पुराने हैं. यहां तक की हमारी साझा विरासत भी है. इन्हीं संबंधों को आगे बढ़ाते हुए अब उज्बेकिस्तान में एक नई दास्तान लिखी गई है, जिससे आने वाले समय में दोनों देश तरक्की की एक नई इबारत लिखेंगे.
भारत और उज्बेकिस्तान ने शुक्रवार को द्विपक्षीय निवेश संधि (बीआईटी) पर हस्ताक्षर किए हैं. इस संधि का मकसद दोनों देशों के बीच आपसी निवेश को बढ़ावा देना और निवेशकों के बीच विश्वास को बढ़ाना है.
निर्मला सीतारमण पहुंची ताशकंद
इस संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण खुद ताशकंद की यात्रा पर गई हैं. बीआईटी पर चर्चा के बाद भारत सरकार की ओर से निर्मला सीतारमण ने और उज्बेकिस्तान सरकार की ओर से वहां के उप प्रधानमंत्री खोदजायेव जमशेद अब्दुखाकिमोविच ने ताशकंद में हस्ताक्षर किए. ये संधि दोनों देशों के निवेशकों को एक-दूसरे के यहां निवेश करने पर उचित सुरक्षा का भरोसा देने का काम करती है.
क्यों खास है ये निवेश संधि?
भारत सरकार की ओर से जारी एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि मौजूदा अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों के समय में ये संधि दोनों देशों के निवेशकों को ना सिर्फ सुरक्षा देने का काम करेगी. बल्कि ये विवाद की स्थिति में मध्यस्थता के माध्यम से विवाद का निपटान करने का भी भरोसा देती है. विवादों के समाधान के लिए इस संधि में एक इंडिपेंडेंट प्लेटफॉर्म डेवलप करने की बात कही गई है, ये निवेशकों के साथ भेदभाव नहीं करने का भी भरोसा देती है.
इस संधि में निवेश को जब्त होने से बचाने, ट्रांसपरेंसी, ट्रांसफर और नुकसान की भरपाई का प्रावधान है. हालांकि बयान के मुताबिक निवेशक और निवेश को सुरक्षा देते समय सरकार के रेग्युलेशन के अधिकार के संबंध में संतुलन बनाए रखा गया है. बीआईटी पर हस्ताक्षर करना आर्थिक सहयोग बढ़ाने और अधिक मजबूत निवेश वातावरण बनाने के लिए दोनों देशों की साझा प्रतिबद्धता को दर्शाता है. इस संधि से आपसी निवेश में बढ़ोतरी होने की उम्मीद है, जिससे दोनों देशों में व्यवसायों और अर्थव्यवस्थाओं को लाभ होगा.

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