G7 का सदस्य नहीं इजराइल, फिर ईरान हमले के बाद क्यों बुलाई गई आपात बैठक?
इजराइल पर ईरान के हमले के बाद अमेरिका ने G7 देशों की आपात बैठक बुलाई. बुधवार को हुई इस बैठक में ईरान के हमले की निंदा की गई साथ ही कहा गया कि इजराइल को प्रतिक्रिया देने का अधिकार है. लेकिन अमेरिका ने इसके लिए एक लक्ष्मण रेखा भी खींच दी है, अमेरिका ने कहा है कि अगर इजराइल ईरान की न्यूक्लियर फैसिलिटीज पर हमला करता है तो अमेरिका उसका साथ नहीं देगा.
G7 में शामिल अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, फ्रांस, कनाडा, इटली और जर्मनी ने मिडिल ईस्ट में तनाव को कम करने के लिए कूटनीतिक समाधान पर जोर दिया. लेकिन सवाल उठता है कि इजराइल तो G7 समूह का हिस्सा नहीं है फिर भी इन देशों ने इस मुद्दे पर इतनी तेज़ी क्यों दिखाई? दरअसल मध्य पूर्व में जारी संघर्ष के प्रभाव से कोई देश अछूता नहीं है, और अगर ये संघर्ष और बढ़ता है तो इसका असर और भयावह हो सकता है. G7 देशों की इस बेचैनी के 5 बड़े कारण हैं.
पहला: इजराइल के साथ G7 देशों के अच्छे संबंध
अमेरिका और इजराइल की दोस्ती तो जगजाहिर है, लेकिन G7 में शामिल बाकी के तमाम देशों के साथ इजराइल के संबंध अच्छे रहे हैं. अमेरिका की तरह ब्रिटेन भी इजराइल को बड़ी मात्रा में हथियार बेचता रहा है. इसके अलावा अप्रैल में हुए ईरान के हमले को नाकाम करने में ब्रिटेन ने इजराइल का साथ दिया था. इसके अलावा कनाडा, फ्रांस, इटली, जापान और जर्मनी भी इजराइल के बड़े सहयोगियों में से एक हैं. फ्रांस के लिए यह दोहरी चिंता का विषय है क्योंकि क्षेत्र में अशांति बढ़ेगी तो लेबनान में हालात और खराब होंगे जो कि वह बिल्कुल नहीं चाहता.
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दूसरा: तनाव बढ़ा तो महायुद्ध का खतरा
ईरान और इजराइल दोनों की सैन्य ताकत मजबूत है. ईरान के पास दुनिया खतरनाक ड्रोन्स और बैलिस्टिक मिसाइलें मौजूद हैं तो वहीं इजराइल के पास अमेरिका के दिए हाईटेक हथियार. दोनों की बीच अगर ये तनाव बढ़ा तो ये मिडिल ईस्ट को महायुद्ध के मुहाने पर ले जाएगा, क्योंकि दोनों देशों की सीधी जंग होने की स्थिति में पश्चिमी देशों के इसमें शामिल होने की संभावना होगी. वहीं अगर ईरान के बचाव में रूस और चीन उतर गए तो फिर जंग से होने वाली मानवीय और आर्थिक नुकसान की कल्पना भी नहीं की जा सकती.
तीसरा: इजराइल के लिए रेड लाइन खींचना
G7 देशों ने बैठक में ईरान के हमले की निंदा की है, साथ ही ये भी कहा है कि इस हमले के जवाब में इजराइल को प्रतिक्रिया देने का अधिकार है. लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति ने इजराइल के लिए एक रेड लाइन तय कर दी है. बाइडेन ने कहा है कि अगर इजराइल ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम पर हमला करता है तो वह उसका साथ नहीं देंगे. दरअसल ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम को निशाना बनाने से होने वाले नुकसान को रोकना बेहद मुश्किल होगा.
चौथा: ईरान को कड़ा संदेश देना
G7 देश ईरान पर और अधिक प्रतिबंध लगाने की तैयारी में हैं, नए प्रतिबंधों के जरिए ईरान को कड़ा संदेश देने की कोशिश होगी कि ये तमाम शक्तियां इजराइल के साथ मजबूती से खड़ी हैं. अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों की वजह से ईरान की अर्थव्यवस्था की रफ्तार काफी धीमी पड़ चुकी है, ऐसे में मुमकिन है कि ईरान, इजराइल के साथ किसी तरह का बड़ा टकराव नहीं चाहेगा.
पांचवां: तीसरा युद्ध स्पॉन्सर कर पाना मुश्किल
मौजूदा समय में दुनिया में दो मोर्चों पर बड़े युद्ध जारी हैं, एक ओर ढाई साल से जारी रूस-यूक्रेन युद्ध तो दूसरी ओर गाजा वॉर. दोनों ही युद्ध में अमेरिका समेत कई देश सीधे तौर पर शामिल तो नहीं हैं लेकिन किसी एक पक्ष को स्पॉन्सर जरूर कर रहे हैं. अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी उन देशों में से हैं जिन्होंने यूक्रेन को भारी मात्रा में घातक हथियार मुहैया कराए हैं. वहीं अमेरिका और ब्रिटेन इजराइल को भी सैन्य मदद करते रहे हैं. ऐसे में इन देशों के लिए एक और युद्ध को स्पॉन्सर करना मुश्किल होगा.
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