World Meningitis Day : क्या होती है मेनिनजाइटिस बीमारी, कैसे करें इससे बचाव
इस साल 5 अक्टूबर को वर्ल्ड मेनिनजाइटिस डे मनाया जा रहा है. इसका मकसद लोगों को मेनिनजाइटिस बीमारी के बारे में जागरूक करना होता है. इस बीमारी की शुरुआत में पहचान और इलाज जरूरी है नहीं तो यह दिव्यांगता का कारण बन सकती है. इस साल इस बीमारी को लेकर थीम ‘लाइट द रोड अहेड’ रखी गई है. WHO का लक्ष्य 2030 तक मेनिनजाइटिस को खत्म करने का है. WHO के आंकड़ों के मुताबिक, दुनियाभर में हर साल 25 लाख लोगों को मेनिनजाइटिस होता है. लेकिन फिर भी लोगों में इसको लेकर जागरूकता का अभाव है. ऐसे में आपके लिए यह जानना जरूरी है कि मेनिनजाइटिस बीमारी क्या होती है क्यों होती है और इसके लक्षण व बचाव क्या हैं.
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, दिमाग और रीढ़ की हड्डी को प्रोटेक्ट करने वाली झिल्लियों में आई सूजन को मेनिनजाइटिस कहते. यह बीमारी बच्चों और किसी भी उम्र के लोगों को हो सकती है. लेकिन नवजात शिशु और छोटे बच्चों में इसका रिस्क अधिक होता है. डॉक्टर बताते हैं किमेनिनजाइटिस एक गंभीर बीमारी है जो कुछ घंटों के अंदर ही खतरनाक हो सकती है. इसके लक्षण भी फ्लू की तरह ही होते हैं. इससे लोगों को कंफ्यूजन होता है कि ये फ्लू हो सकता है. हालांकि मेननिनजाइटिस में मरीजों को अचानक तेज बुखार आना, गर्दन में अकड़न, मतली या उल्टी या कंफ्यूजन भी हो जाता है. अगर समय पर इन लक्षणों की पहचान और इलाज न हो तो मरीज को दिव्यांगता हो सकती है.
बहरापन भी हो जाता है
मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स गुरुग्राम में न्यूरोलॉजी विभाग के क्लिनिकल डायरेक्टर व एचओडी डॉक्टर कपिल अग्रवाल बताते हैं कि बैक्टीरियल मैनिंजाइटिस का अगर इलाज न हो तो बहरापन हो सकता है. कुछ मामलों में ब्रेन की सूजन के कारण मिर्गी हो सकती है. गंभीर मामलों में ऑप्टिक नर्व डैमेज हो सकती हैं, जिससे अंधापन भी होने का खतरा रहता है इसके अलावा कुछ मामलों में लोगों को मनोवैज्ञानिक समस्याएं जैसे एंग्जायटी, डिप्रेशन का भी रिस्क होता है. हालांकि मेनिजाइटिस से आसानी से बचाव हो जाता है. जागरूकता बढ़ाने और टीकाकरण से इस बीमारी को काबू में किया जा सकता है.
ये है वैक्सीन
एमएमआर वैक्सीन से खसरा, कण्ठमाला, और रूबेला जैसी बीमारियों से बचाव होता है. यह टीका यह कुछ तरह के वायरल मैनिंजाइटिस से बचाता है. बच्चों को एक साल की उम्र में एमआर वैक्सीन की पहली खुराक देनी चाहिए और फिर तीन साल की उम्र दूसरी डोज लगवा सकते हैं.