उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने विद्वेषी शक्तियों के समागम पर जताई चिंता, कही ये बात

भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि न्यायपालिका या विधायिका द्वारा कार्यकारी शक्ति का प्रयोग लोकतंत्र और संविधान की प्रक्रियाओं के अनुरूप नहीं है. धनखड़ ने दिल्ली में इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (IIC) में डॉ करण सिंह के सार्वजनिक जीवन में 75 वर्षों की उपलब्धियों के उपलक्ष्य में आयोजित सम्मान समारोह के दौरान ये बातें कहीं. इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने बौद्धिक समुदाय और अकादमिया से अपील की कि वे राष्ट्रीय संवाद को उत्प्रेरित करें, ताकि संविधान की आत्मा के प्रति सम्मान सुनिश्चित किया जा सके.
जगदीप धनखड़ ने कहा,डॉ करण सिंह ने सात दशकों में राष्ट्र के उत्थान को देखा है और इस दिशा में अनेक तरीकों से योगदान दिया है. वर्तमान में देश एक अभूतपूर्व आर्थिक उभार में है और विकास की ओर अग्रसर है, जो 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने के लिए अच्छी स्थिति में है, यदि इससे पहले नहीं.”
विद्वेषी शक्तियों का समागम एक गहरी चिंता का विषय
उन्होंने कहा किभारत के प्रति भीतर और बाहर से विद्वेषी शक्तियों का समागम एक गहरी चिंता का विषय है. इसी प्रकार, देशद्रोही नारे भी हैं, ऐसे में इन विषाक्त शक्तियों को निष्प्रभावित करने के लिए राष्ट्रीय मनोबल को प्रभावित करने के लिए समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है.

उपराष्ट्रपति ने कहा किनिस्संदेह, कार्यकारी शासन विशेष रूप से कार्यपालिका का है, जैसे कि विधायिका का विधायी कार्य और अदालतों का निर्णय. न्यायपालिका या विधायिका द्वारा कार्यकारी शक्ति का प्रयोग लोकतंत्र और संविधान की प्रक्रियाओं के अनुरूप नहीं है. यह एक स्थापित स्थिति है, क्योंकि कार्यपालिका शासन के लिए अकेले जिम्मेदार है और विधायिका के प्रति उत्तरदायी है और अदालतों के माध्यम से न्यायिक समीक्षा के द्वारा उत्तरदायी है.
उपराष्ट्रपति ने बौद्धिक समुदाय और अकादमिया से की अपील
उन्होंने कहा किन्यायपालिका द्वारा कार्यकारी शासन न्यायशास्त्रीय और क्षेत्राधिकारिक रूप से संवैधानिक पवित्रीकरण से परे है. हालांकि, यह पहलू लोगों का सक्रिय ध्यान केंद्रित कर रहा है, जो उनके दृष्टिकोण में ऐसे अनगिनत उदाहरणों को दर्शाता है.

उन्होंने कहा कि यह महत्वपूर्ण पहलू आपके स्तर पर गहन विचार का आह्वान करता है (डॉ. करण सिंह), आप जैसे कुछ लोग, बौद्धिक समुदाय और अकादमिया. यह प्रभावशाली वर्ग, लोकतंत्र का सबसे शक्तिशाली हथियार, लोगों को प्रेरित और प्रोत्साहित करने के लिए आवश्यक है कि वे स्वस्थ और ज्ञानवर्धक राष्ट्रीय संवाद को उत्प्रेरित करें ताकि संविधान की आत्मा के प्रति सम्मान सुनिश्चित किया जा सके. इससे लोकतंत्र के विकास और संविधान की भावना और आत्मा के पोषण में सम्पूर्ण योगदान होगा.

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