शराब के स्टोर खुलवाए, नाच-गाना कराया…फिर भी नहीं धुल रहा सऊदी अरब का ‘दाग’
सऊदी अरब की लाख कोशिशों के बावजूद उसे UN की मानवाधिकार संस्था में जगह नहीं मिल पाई है. बुधवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा के 193 देशों ने 47 सदस्यों वाली मानवाधिकार परिषद के लिए 18 नए सदस्यों को चुना. लेकिन इसमें एशिया पैसिफिक क्षेत्र से सऊदी अरब को जगह नहीं मिल पाई है.
दरअसल भौगोलिक प्रतिनिधित्व तय करने के लिए क्षेत्रीय समूहों को मानवाधिकार काउंसिल में जगह दी जाती है. किसी क्षेत्र से तय सीटों से अधिक कैंडिडेट होने पर वोटिंग के जरिए उन्हें चुना जाता है. इस बार 18 नए सदस्यों में एशिया पैसिफिक क्षेत्र के लिए 5 सीटें थीं लेकिन सऊदी समेत 6 देशों ने इसके लिए दावेदारी की थी.
सऊदी प्रशासन की कोशिश नाकाम
वहीं कुछ ह्यूमन राइट्स संगठनों ने सऊदी अरब पर अधिकारों के उल्लंघन का गंभीर आरोप लगाते हुए अभियान चलाया था जिसके बाद बुधवार को वह संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार परिषद में जगह बनाने में नाकाम रहा. दरअसल सऊदी अरब पर लगातार मानवाधिकार का उल्लंघन करने का आरोप लगता रहा है. हालांकि बीते कुछ वर्षों से सऊदी प्रशासन अपनी छवि सुधारने की कोशिश में जुटा है. इसी साल क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने राजधानी रियाद में पहली शराब दुकान खोलने की मंजूरी दी थी.
इसके अलावा महिलाओं को ड्राइविंग का अधिकार दिया गया, यही नहीं इस्लामिक परंपरा और कानून के खिलाफ जाकर म्यूजिक कॉन्सर्ट कराए गए, जिसकी मुस्लिम जगत में काफी आलोचना भी हुई थी. वहीं 2034 में सऊदी फुटबॉल के सबसे बड़े महाकुंभ फीफा वर्ल्ड कप की मेजबानी भी करने जा रहा है.
UN डायरेक्टर ने की सऊदी अरब की आलोचना
इन सब प्रयासों के बावजूद उसे UN के मानवाधिकार संस्था में सीट नहीं मिल पाई है. वोटिंग से पहले UN के डायरेक्टर ने सऊदी अरब की आलोचना की. उन्होंने कहा कि सऊदी अरब मानवाधिकार परिषद के लिए काम करने के योग्य नहीं है.
उन्होंने मानवाधिकार संगठनों की एकत्रित की गई रिपोर्टों का जिक्र किया. इन रिपोर्टों में सऊदी बॉर्डर गार्ड्स द्वारा की गई ओपन फायरिंग, 2022 और 2023 में यमन-सऊदी बॉर्डर पर सैंकड़ों इथोपियन शरणार्थी और असायलम मांगने वालों की हत्या का जिक्र है. इसके अलावा 2018 में इस्तांबुल में सऊदी उच्चायोग में सऊदी के पत्रकार जमाल खाशोगी की हत्या के मामले में जिम्मेदारी तय न करने का भी दस्तावेजीकरण किया गया है.
HRW में UN के डायरेक्टर ने कहा कि, ‘ऐसी सरकार जो मानवता के खिलाफ अपराध करती है या इसी तरह के अत्याचार करती है और जुर्म करने वालों को सजा से बचाने की कोशिश करती हो, उसे UN के सबसे प्रमुख मानवाधिकार संस्था में जगह नहीं दी जानी चाहिए.’
UN डायरेक्टर के इन आरोपों पर सऊदी अरब के यूएन मिशन की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई है. हालांकि पिछले साल एक सऊदी अरब की ओर से संयुक्त राष्ट्र को भेजे गए एक पत्र में इस तरह के आरोपों से इनकार किया गया था.
सऊदी अरब को मिले सबसे कम वोट
मानवाधिकार परिषद में जगह पाने के लिए इस साल सिर्फ एशिया पैसिफिक ग्रुप के 6 देशों ने 5 सीटों के लिए संयुक्त महासभा में चुनाव लड़ा. इनमें से थाईलैंड को 177 वोट, साइप्रस और कतर को 167, साउथ कोरिया को 161, मार्शल आइसलैंड को 124 वोट मिले हैं, यह पांचों देश अब मानवाधिकार परिषद का हिस्सा होंगे. वहीं सऊदी अरब को 117 वोट मिले जिसकी वजह से वह एक बार फिर इस संस्था का सदस्य नहीं बन पाया.
UNHRW के लिए 18 नए सदस्य चुने गए
इसके अलावा बाकी के क्षेत्रों से 13 देशों को बिना किसी प्रतिस्पर्धा के चुना गया. कुल मिलाकर 18 नए सदस्यों का तीन साल का कार्यकाल 1 जनवरी 2025 से शुरू होगा. इसमें अफ्रीका से बेनिन, कॉन्गो, इथोपिया, गाम्बिया और केन्या को जगह मिली है. वहीं लैटिन अमेरिका और कैरिबियाई देशों के समूह में से बोलीविया, कोलंबिया और मैक्सिको इसका हिस्सा बनने में कामयाब रहे. वहीं सेंट्रल और ईस्टर्न यूरोप से चेक रिपब्लिक और नॉर्थ मैकेडोनिया इस संस्था के सदस्य बने हैं.
इसके अलावा वेस्टर्न और बाकी ग्रुप जिसे WEOG के नाम से जाना जाता है से आईसलैंड, स्पेन और स्विट्जरलैंड को जगह मिली है क्योंकि अमेरिका ने सितंबर के आखिर में ही घोषणा कर दी थी कि वह इस परिषद में दूसरा टर्म नहीं चाहता है.
क्यों जरूरी है मानवाधिकार परिषद ?
संयुक्त राष्ट्र की जेनेवा आधारित यह संस्था दुनियाभर के देशों में मानवाधिकार के मामलों पर नजर रखती है. नॉर्थ कोरिया, ईरान और म्यांमार जैसे देशों में स्वतंत्र जांचकर्ता नियुक्त कर उत्पीड़न और वहां के हालातों के बारे में रिपोर्ट जारी करती है. यह संस्था यूक्रेन जैसे देशों में फैक्ट-फाइंडिंग मिशन भेजती है जिससे मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों की जांच की जा सके.
संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार परिषद की स्थापना 2006 में की गई थी. मानवाधिकार कमीशन के कुछ सदस्यों के खराब रिकॉर्ड के चलते उसे UNHRC से रिप्लेस कर दिया गया. हालांकि इस नए परिषद की भी आलोचना की जाती रही है, माना जाता है कि कुछ देश खुद को और अपने सहयोगियों को सुरक्षित करने के लिए इसका हिस्सा बनना चाहते हैं.