मकर संक्रांति पर क्यों की जाती है घोड़ों की पूजा, जानें- क्या है रहस्य और मान्यता
मकर संक्रांति के मौके पर पूरे देश उत्साह और खुशी का माहौल रहता है, क्योंकि देश भर में मकर संक्रांति का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. भारत के कई शहरों में मकर संक्रांति के दिन पतंगबाजी की जाती है और इन शहरों में राजस्थान और गुजरात के कुछ शहर शामिल हैं. गुजरात में तो उत्तरायण के रूप में इस पर्व को मनाया जाता है और इस दिन पतंगबाजी की जाती है. इस मौके पर पतंग महोत्सव भी होता है और कई लोग पतंग उड़ाते हैं.
बुंदेलखंड में मकर संक्राति के पर्व को एक अनूठी परंपरा से मनाया जाता है. यहां मिट्टी के घोड़ों की पूजा करके इस पर्व की शुरुआत होती है और मिट्टी के घोड़ों से बाजार सजे रहते हैं और लोग घोड़ों की खरीदारी भी करते हैं और मकर संक्रांति के मौके पर उनकी पूजा भी करते हैं. इस परंपरा के बारे में बुजुर्गों का मानना है कि घोड़ों की पूजा इसलिए की जाती है. कि मकर संक्रांति के दिन से सूर्य देव के घोड़ों ने विश्राम के बाद दोबारा तेज रफ्तार पकड़ी थी. इसलिए परंपरा है कि घोड़ों की पूजा संकेत देती है कि अब घोड़े फिर से दौड़ने के लिए तैयार हैं.
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, इस दिन सूर्य देव जब धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में आते हैं, तो उनके रथ में भी एक परिवर्तन होता है. मकर संक्रांति से सूर्य देव के वेग और प्रभाव में भी वृद्धि होती है. मकर संक्रांति से खरमास भी खत्म हो जाता है और शुभ कार्यों के लिए बृहस्पति ग्रह भी मजबूत स्थिति में आ जाता है.
क्यों मनाया जाता हैं ये पर्व?
जब खरमास लगता है तो सूर्य देव की गति धीमी हो जाती है और बृहस्पति की स्थिति कमजोर हो जाती है. इसलिए मांगलिक कार्य रोक दिए जाते हैं. खरमास से जुड़ी एक पौराणिक कथा है, जिसमें बताया गया है कि इस समय में सूर्य देव के रथ के सातों घोड़े विश्राम करने लगते हैं और उनकी जगह रथ में खर यानी गधे जुड़ जाते हैं, इससे सूर्य देव की गति कम हो जाती है. मकर संक्रांति पर सूर्य देव के रथ से ये खर निकल जाते हैं और फिर सातों घोड़े सूर्य देव के रथ में जुड़ जाते हैं. इससे सूर्य देव का वेग और प्रभाव बढ़ जाता है इसीलिए पूरे देश में मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है.